शब्द का अर्थ
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					ग्रंथि					 :
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					स्त्री० [सं० Öग्रंथ+इन्] १. धागें, रस्सी आदि में पड़ने या डाली जानेवाली गाँठ। २. गाँठ के आकार की कोई कड़ी गोलाकार रचना या वस्तु। ३.वायु आदि के विकार कारण शरीर के किसी अंग में बननेवाली गाँठ। ४. शरीर के अंदर कोषाणुओं के योग से बनी हुई कई प्रकार की गाँठों में से हर एक। विशेष–ये ग्रंथियाँ शरीर के भिन्न-भिन्न भागों में अनेक आकार-प्रकार की होती हैं और इनमें से ऐसे तरल तत्त्व या रस निकलते हैं जो शरीर की रक्षा और वृद्धि के लिए उपयोगी होते या अनुपयोगी तत्त्वों को शरीर के बाहर निकालते हैं। जैसे–बीज ग्रंथि, लस ग्रंथि आदि (दे०) ५. कोई बाँधने वाली चीज। बंधन। ६. आध्यात्मिक या धार्मिक क्षेत्र में वे बातें जो मनुष्य को इस संसार के साथ बाँधे रहती हैं और उसे आध्यात्मिक दिशा में जाने से रोकती है। ७. कुटिलता। टेढ़ापन। ८. आलू। ९. पिपरामूल। १॰. भद्रमुस्तक। ११. ग्रंथिपर्णी। गठिवन।				 | 
			
			
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					ग्रंथिक					 :
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					पुं० [सं० ग्रंथ+ठक्-इक] १. पिपरामूल। २. ग्रंथिपर्णी। गठिवन। ३. गुग्गुल। ४. करील। ५. ज्योतिषी। ६. सहदेव पाण्डव। का वह नाम जो उन्होंने अज्ञातवास के समय धारण किया था।				 | 
			
			
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					ग्रंथित					 :
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					भू० कृ० [सं० ग्रंथ+इतच्] १. जिसमें गाँठ लगी हो। २. गाँठ लगाकर बाँधा हुआ। ३. गूथा हुआ।				 | 
			
			
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					ग्रंथि-दूर्व्वा					 :
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					स्त्री० [मध्य० स०] गाडर दूब।				 | 
			
			
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					ग्रंथि-पत्र					 :
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					पुं० [ब० स०] चोरक नामक गंध-द्रव्य।				 | 
			
			
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					ग्रंथि-पर्ण					 :
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					पुं० [ब० स०] गठिवन का पेड़।				 | 
			
			
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					ग्रंथिपर्णी					 :
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					स्त्री० [सं० ग्रंथिपर्ण+ङीष्] गाडर दूब।				 | 
			
			
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					ग्रंथि-फल					 :
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					पुं० [ब० स०] १. कैथ का पेड़ या फल। २. मैनफल।				 | 
			
			
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					ग्रंथि-बंधन					 :
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					पुं० [ष० त०] १. गाँठ बाँधकर अथवा ऐसी ही और किसी क्रिया से दो या अधिक चीजें एक साथ करना या लगाना। २. विवाह के समय वर और कन्या के कपड़ों के पल्लों को गाँठ देकर आपस में बाँधने की क्रिया जो पारस्परिक घनिष्ठ, संबंध स्थापित करने की सूचक होती हैं। गँठ-बंधन।				 | 
			
			
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					ग्रंथि-मूल					 :
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					पुं० [ब० स०] ऐसी वनस्पतियाँ जो गाँठों के रूप में होती हैं। कंद। जैसे–गाजर, मूली, शलजम आदि।				 | 
			
			
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					ग्रंथि-मोचक					 :
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					पुं० [ष० त०] गिरहकट। जेब-कतरा।				 | 
			
			
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					ग्रंथिल					 :
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					वि० [सं० ग्रंथि+लच्] जिसमें गाँठ या गाँठे हों। गाँठदार। पुं० १. करील का वृक्ष। २. पिपरामूल। ३. अदरक। आदी। ४. विकंकत वृक्ष। ५. चौलाई का साग। ६. आलू या ऐसा ही और कोई गोल कंद। ७.चोरक नामक गंध-द्रव्य।				 | 
			
			
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					ग्रंथिला					 :
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					स्त्री० [सं० ग्रन्थिल+टाप्] १. गाडर दूब। २. माला दूब। ३. भद्रमुस्तक। भद्रमोथा।				 | 
			
			
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