शब्द का अर्थ
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					चिरक					 :
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					स्त्री० [हिं० चिरकना] बहुत जोर लगाने पर होनेवाला जरा सा पाखाना। मल-कण।				 | 
			
			
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				समानार्थी शब्द- 
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					चिरक-ढाँस					 :
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					स्त्री० [हिं० चिरकना+ढाँसना] १ कुकरखाँसी। ढाँसी। २. वह अवस्था जिसमें मनुष्य प्रायः कुछ न कुछ रोगी बना रहता है। ३. नित्य होता रहनेवाला या प्रायः बना रहनेवाला झगड़ा।				 | 
			
			
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					चिरकना					 :
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					अ० [अनु०] बहुत कष्ट से और थोड़ा-थोड़ा मल-त्याग करना, (कोष्ठ-बद्धता का लक्षण)।				 | 
			
			
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					चिरकार					 :
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					वि० [सं० चिर√कृ (करना)+अण्] हर काम में बहुत देर लगाने वाला। दीर्घ-सूत्री।				 | 
			
			
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					चिरकारिक					 :
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					वि० [सं० चिरकारिन+कन्] =चिरकार।				 | 
			
			
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					चिरकारी(रिन्)					 :
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					वि० [सं० चिर√कृ (करना)+णिनि] [स्त्री० चिरकारिणी] चिरकार। (दे०)।				 | 
			
			
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					चिरकालिक					 :
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					वि० [सं० चिर-काल+ठन्-इक] १. बहुत दिनों से चला आता हुआ। पुराना। २. बहुत दिनों तक बना रहनेवाला।				 | 
			
			
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					चिरकालीन					 :
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					वि० [सं० चिरकाल+ख-ईन] चिरकालिक।				 | 
			
			
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					चिरकीन					 :
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					वि० [फा०] १. कोष्ठबद्धता के कारण थोड़ा-थोड़ा मल-त्याग करनेवाला। २. बहुत अधिक कुत्सित, गंदा या मैला।				 | 
			
			
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					चिरकुट					 :
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					पुं० [हिं० चिरना+कुटना] फटा-पुराना कपड़ा। चिथड़ा।				 | 
			
			
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					चिरक्रियता					 :
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					स्त्री० [सं० चिरक्रिय+तल्-टाप्] चिर-क्रिय होने की अवस्था या भाव। दीर्घसूत्रता।				 | 
			
			
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