शब्द का अर्थ
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छत :
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स्त्री० [सं० छत्र] १. वह वास्तु-रचना जिससे कमरा ढका होता है। पाटन। २. उक्त रचना का ऊपरी या निचला तल या भाग। जैसे–(क) छत की मिट्टी डालना। (ख) छत में झाड़-फानूस टाँगना। ३. किसी चीज को ऊपर से ढकनेवाला भाग। पुं० [सं० क्षत] घाव। व्रण। वि०=क्षत। क्रि० वि० [सं० सन्] रहते हुए आछत। |
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छतगीर :
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पुं० [हिं० छत+फा० गीर] १. कमरे में ऊपरवाली छत के साथ प्रायः उसे ढकने के लिए तथा तानी जानेवाली चाँदनी। २. पलंग के पायों से बाँधकर खड़े किए हुए बाँसों आदि पर तानी जानेवाली चाँदनी। |
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छतगीरी :
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स्त्री०=छतगीर। |
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छतना :
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स० [हिं० छत] छत डालना या बनाना। कमरा या घर छाना। अ० छाया जाना। छत आदि से युक्त होना। अ० [सं० क्षत] घाव होना। अ० [सं० सत्] वर्त्तमान रहना। अ० [?] अदृश्य होना। पुं० [हिं० छाता] बड़े-बड़े पत्तों का बनाया हुआ छाता। |
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छतनार :
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वि० [हिं० छाता या छतना] [स्त्री० छतनारी] (वृक्ष) जिसकी शाखाएँ छत्र की तरह चारों ओर दूर तक फैली हुई हों। |
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छतराना :
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अ० [सं० छत्रक] १. छत्रक या खुमी की तरह चारों ओर फैलना। जैसे–दाद छतराना। २. अधिक विस्तार से युक्त होना। जैसे–घाव छतराना। |
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छतरी :
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स्त्री० [सं० छत्र] १. चारों ओर से खुले हुए स्थान के ऊपर का मंडप। २. किसी पूज्य व्यक्ति का समाधि-स्थल जिसके ऊपर मंडप बना हुआ हो। ३. कबूतरों के बैठने के लिए बाँस की पट्टियों का टट्टर। ४. खुम। ५. दे० ‘छाता’। ६. एक प्रकार का बहुत बड़ा छाता जिसकी सहायता से हवाई-जहाज पर से कूदकर सैनिक नीचे उतरते हैं (पैराशूट)। पद–छतरी फौज=छतरियों के सहारे हवाई जहाजों से उतरनेवाली सेना। |
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छतलोट :
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स्त्री० [हिं० छत+लोटना] छत पर पेट के बल लेटकर इधर-उधर लोटते हुए की जानेवाली कसरत या व्यायाम। |
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छतवंत :
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वि० [सं० क्षत+वंत] जिसे क्षत या घाव लगा हो। घायल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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छताँ :
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क्रि० वि० [हिं० आछत का एक प्रांतिक रूप] विद्यमानता में। रहते हुए। उदाहरण–देह छताँ तुम मिलहु कृपा करि आरतिवंत कबीर।–कबीर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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छता :
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पुं० १ =छाता। २.=छत्ता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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छति :
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स्त्री०=क्षति।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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छतिया :
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स्त्री०=छाती। |
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छतियाना :
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अ० [हिं० छाती] १. छाती से लगाना। २. छाती पर या उसके पास लाना या लाकर रखना। जैसे–गोली चलाने के लिए बंदूक छतियाना। |
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छतिवन :
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पुं० [सं० छत्रपर्ण] एक प्रकार का बड़ा पेड़ जिसके कुछ अंग दवा के काम आते हैं। |
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छतीस :
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पुं० [सं० क्षितिश] राजा। उदाहरण–और दसा परहरी छतीस।–गोरखनाथ। |
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छतीसा :
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वि० [हिं० छत्तीस] [स्त्री० छतीसी] १. बहुत ही चतुर। चालाक। २. ढोंगी। उदाहरण–आए हौ पठाय बा छतीसे छलिया के इतै।–रत्नाकर। ३. व्यभिचारी। |
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छतुरी :
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स्त्री०=छतरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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छतौना :
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पुं=छाता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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छत्त :
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स्त्री०=छत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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छत्तर :
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पुं० १. दे० ‘छत्र’। २. दे० ‘अन्नसत्र’। |
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छत्ता :
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पुं० [सं० छत्र] १. छाता। छतरी। २. राजा का छत्र। ३. गली आदि की ऊपरी छत। ४. बर्रे, मधुमक्खियों आदि द्वारा निर्मित मोम की वह रचना जिसमें वे स्वयं रहती अंडे देती और शहद जमा करती हैं। ५. वह पौधा या वृक्ष जिसकी शाखाएँ छितरी या फैली हुई हों। ६. कमल की बीजकोश। |
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छत्ति :
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स्त्री० [सं० छत्र] चमड़े का वह कुप्पा जिस पर बैठकर प्राचीन काल में लोग नदी पार करते थे। |
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छत्तीस :
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[सं० षट्त्रिशत्, प्रा० छत्तीसंती, छत्तीसम्, बँ० सात्रीस, ओ० छत्रीस, पं० छती; सिं० छत्रीह, गु० छत्रीस; ने० छतिस्० मरा० छत्तीस] जो गिनती में तीस से छः अधिक हो। पुं० उक्त संख्या का सूचक अंक जो इस प्रकार लिखा जाता है।–३६। |
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छत्तीसगढ़ :
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पुं० [हिं० छत्तीस+सं० गढ़] आधुनिक मध्यप्रदेश का एक विभाग। |
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छत्तीसगढ़ी :
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स्त्री० [हिं० छत्तीसगढ़] छत्तीसगढ़ की बोली। |
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छत्तीसा :
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वि० [स्त्री० छत्तीसी, भाव० छत्तीसापन]=छ्तीसा। |
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छत्तेदार :
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वि० [हिं० छत्ता+फा० दार] १. जिसके ऊपर छत्र या छत्ता हो। २. मधुमक्खियों के छत्ते के आकार का। |
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छत्र :
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पुं० [सं० छद् (ढकना)+णिच्+ष्ट्रन्] १. छतरी। २. राजाओं या राज-सिंहासन के ऊपर लगाया जानेवाला बड़ा छाता। ३. कुकुरमुत्ता। ४. एक विष। ५. गुरु का दोषगोपन। पुं० [सं० छत्र] वह स्थान जहां गरीबों या दीन-दुखियों को धर्मार्थ भोजन कराया जाता है। |
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छत्रक :
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पुं० [सं० छत्र√कै(मालूम पड़ना)+क] १. एक प्रकार का छोटा उदभिज जिसका निचला भाग छड़ी की तरह पतला होता है और जिसका ऊपरी भाग खुले छाते की तरह फैला हुआ होता है। खुमी। (फंगस) २. कुकुरमुत्ता। ३. तालमखाने की जाति का एक पौधा। ४. कौडिल्ला (पक्षी) ५. मण्डप। ६. [छत्र+कन्] छत्ता। |
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छत्रकायमान :
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वि० [सं० छत्रक+क्यङ्+शानच्] छत्रक के रुप में होने या फैलनेवाला (फंगेटिव)। |
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छत्र-चक्र :
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पुं० [मध्य० स०] ज्योतिष में, एक प्रकार का चक्र जिससे शुभ-अशुभ फल जाने जाते हैं। |
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छत्र-छाँह :
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स्त्री०=छत्र-छाया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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छत्र-छाया :
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स्त्री० [ष० त०] छाया, ऐसा आश्रय जो छाते की तरह सुरक्षित रखनेवाला और सुखद हो। संरक्षण। |
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छत्र-धनी :
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पुं=छत्रधारी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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छत्र-धर :
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पुं० [छत्र√धृ (धारण)+अच्] १. वह राजा जो छत्र लगाता हो। २. राजा के ऊपर छत्र लगानेवाला सेवक। |
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छत्रधारी(रिन्) :
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वि० [सं० छत्र√ धृ+णिनि] छत्र-धर। |
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छत्रप :
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पुं०=क्षत्रप।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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छत्रपति :
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पुं० [ष० त०] बहुत बड़ा राजा। |
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छत्रपन :
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पुं० [सं० छत्रिय+पन(प्रत्य)] क्षत्रियत्व। |
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छत्र-बंध :
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पुं० [ब० स०] एक प्रकार का चित्रकाव्य जिसमें कविता के अक्षर विशिष्ट प्रकार से सजाने से छत्र या छाते की आकृति बन जाती है। |
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छत्र-भंग :
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पुं० [ष० त०] १. राजा का नाश या मृत्यु। २. ज्योतिष का एक योग जो राजा या उसके शासन के नाश का सूचक माना जाता है। ३. अराजकता। |
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छत्राक :
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पुं० [सं० छत्र+टाप्, छत्रा√ कै+क] कुकुरमुत्ते, खुमी आदि की जाति के उद्भिजों की सामूहिक संज्ञा। |
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छत्रिक :
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पुं० [सं० छत्र+ठन्-इक] छत्र धारण करनेवाला। राजा। |
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छत्री(त्रिन्) :
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वि० [सं० छत्र+इनि] छत्रयुक्त। पुं०=क्षत्रिय। |
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