शब्द का अर्थ
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					दिवांध					 :
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					वि० [सं० दिवा-अंध, स० त०] जिसे दिन में दिखाई न देता हो। पुं० १. एक प्रकार का रोग, जिसमें मनुष्य को दिन के समय दिखाई नहीं देता। दिनौंधी। २. उल्लू जिसे दिन में दिखाई नहीं देता।				 | 
			
			
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					दिवांधकी					 :
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					स्त्री० [सं० दिवान्ध+क (स्वार्थ)—ङीष्] छछूँदर।				 | 
			
			
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					दिवा					 :
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					पुं० [सं०√दिव् (चमकना)+का०] १. दिन। दिवस। २. एक वर्णवृत्त, जिसे मालिनी और मदिरा भी कहते हैं। पुं०=दीया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					दिवाकर					 :
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					पुं० [सं० दिवा√कृ (करना)+द्यच्] १. सूर्य। २. आक। मदार। ३. कौआ। ४. एक प्रकार का पौधा और उसका फूल।				 | 
			
			
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					दिवा-कीर्ति					 :
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					पुं० [ब० स०] १. नापित। नाई। हज्जाम। २. उल्लू। ३. चांडाल।				 | 
			
			
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					दिवा-कीर्त्य					 :
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					पुं० [स० त०] गवानयन यज्ञ में विषुव संक्रांति के दिन गाया जानेवाला एक सामगान।				 | 
			
			
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					दिवाचर					 :
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					वि० [सं० दिवा√चर् (गति)+ट] दिन में विचरण करनेवाला। पुं० १. चिड़िया। पक्षी। २. चांडाल।				 | 
			
			
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					दिवाटन					 :
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					पुं० [सं० दिवा√अट् (घूमना)+ल्यु—अन] काक। कौआ।				 | 
			
			
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					दिवातन					 :
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					पुं० [सं० दिवा+ट्यु—अन, तुर्ट आगम] एक दिन काम करने पर मिलनेवाला पारिश्रमिक या मजदूरी। वि० पूरे एक दिन का। दिन भर का।				 | 
			
			
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					दिवान					 :
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					पुं०=दीवान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					दिवाना					 :
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					स०=दिलाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=दिवाना (पागल)।				 | 
			
			
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					दिवा-नाथ					 :
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					पुं० [ष० त०] दिन के स्वामी, सूर्य।				 | 
			
			
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					दिवानी					 :
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					स्त्री० [देश०] एक प्रकार का पेड़, जो बरमा में अधिकता से होता है। इसकी लकड़ी से मेज, कुर्सियाँ आदि बनती है। स्त्री०=दीवानी।				 | 
			
			
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					दिवा-पुष्ट					 :
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					पुं० [स० त०] सूर्य।				 | 
			
			
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					दिवाभिसारिका					 :
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					स्त्री० [सं० दिवा-अभिसारिका, स० त०] साहित्य में वह नायिका जो दिन के समय श्रृंगार करके प्रिय से मिलने संकेत स्थान पर जाय।				 | 
			
			
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					दिवा-भीत					 :
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					वि० [स० त०] दिन (अर्थात् दिन के प्रकाश) से डरनेवाला। पुं० १. चोर। २. उल्लू।				 | 
			
			
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					दिवा-मणि					 :
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					पुं० [ष० त०] १. सूर्य। २. आक। मदार।				 | 
			
			
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					दिवा-मध्य					 :
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					पुं० [ष० त०] मध्याह्र। दोपहर।				 | 
			
			
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					दिवार					 :
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					स्त्री०=दीवार।				 | 
			
			
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					दिवा-रात्र					 :
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					क्रि० वि० [द्व० स० अच्] दिन-रात। हर समय।				 | 
			
			
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					दिवारी					 :
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					स्त्री० [हिं० दीवाली] १. कुआर-कार्तिक में विशेषतः दीवाली के अवसर पर गायेजानेवाले एक तरह के लोक गीत। (बुंदेल) २. दीपमालिका। दीवाली।				 | 
			
			
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					दिवाल					 :
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					वि० [हिं० देना+वाल (प्रत्य०)] देनेवाला। जो देता हो। जैसे—यह एक पैसे की दीवाल नहीं है। (बाजारू) स्त्री०=दीवार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					दिवालय					 :
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					पुं०=देवालय (मंदिर)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)				 | 
			
			
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					दिवाला					 :
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					पुं० [हिं० दिया+बालना=जलाना] १. महाजन या व्यापारी की वह स्थिति जिसमें वह विधिवत् यह घोषित करता है कि मेरे पास अब यथेष्ट धन नहीं बचा है, और इसलिए मैं लोगों का ऋण चुकाने में असमर्थ हूँ। क्रि० प्र०—बोलना। विशेष—ऐसी स्थिति में लेनदार न्याय की दृष्टि से या तो उससे कुछ भी वसूल नहीं कर सकते या उसके पास जो थोड़ा-बहुत धन बचा होता है, वही सब लेनदार अपने-अपने हिस्से के मुताबित बाँट लेते हैं। मुहावरा—दिवाला निकालना या मारना=दिवालिया बन जाना। ऋण चुकाने में असमर्थ हो जाना। २. किसी पदार्थ का कुछ भी बचा न रह जाना। पूर्ण अभाव। जैसे—उनकी अक्ल का तो दिवाला निकल गया है।				 | 
			
			
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					दिवालिया					 :
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					वि० [हिं० दिवाला+इया (प्रत्य०)] जिसने दिवाला निकाला हो। जिसके पास ऋण चुकाने के लिए कुछ भी न बच रहा हो।				 | 
			
			
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					दिवाली					 :
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					स्त्री० [देश०] वह तस्मा या पट्टी, जिसे खींचकर खराद, सान आदि चलाई जाती है। स्त्री०=दीवाली।				 | 
			
			
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					दिवा-स्वप्न					 :
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					पुं० [स० त०] अकर्मण्य, निराश या विफल व्यक्ति का बैठे-बैठे तरह-तरह के हवाई किले बनाना या मंसूबे बाँधना और यह सोचना कि इस बार हम यह करेगें हम वह करेगें अथवा आगे चलकर हमारा यों उत्थान होगा और हम यों सुखी होंगे आदि आदि। (डे ड्रीम)				 | 
			
			
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