शब्द का अर्थ
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नक्षत्र :
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वि० [सं०√नक्ष् (गति)+अत्रन्] जो क्षत न हो। पुं० १. रात के समय आकाश में दिखाई पड़नेवाले सभी चमकते हुए पिंड या तारे अथवा उनमें से प्रत्येक तारा या सितारा। २. विशिष्ट रूप से, वे २७ तारक पुंज जो पृथ्वी की परिक्रमा करते समय चंद्रमा के भ्रमण-मार्ग में पड़ते हैं; और जिनके रूप-रेखाओं के आधार पर कुछ विशिष्ट आकृतियाँ मानकर ये सत्ताइस नाम रखे गये हैं।—अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वा-फाल्गुनी, उत्तरा-फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, विशाषा अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वभाद्रपद, उत्तर भाद्रपद और रेवती। विशेष—आधुनिक ज्योतिषयों का मत है कि इन २७ तारकपुंजों में सब मिलाकर लगभग सवा दौ सौ तारे हैं जो वास्तव में हैं तो बहुत बड़े-बड़े, परन्तु वे हमारे सौर जगत् से बहुत दूर पर स्थिति होने के कारण हमें बहुत ही छोटे तारों के रूप में और बिलकुल स्थिर दिखाई देते हैं। इन्हीं नक्षत्रों में से कुछ नक्षत्रों के नाम पर हमारे यहाँ के १२ महीनों के नाम रखे गए हैं। पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा जिस नक्षत्र पर रहता है, उसी नक्षत्र के नाम पर उस महीने का नाम रखा गया है। यथा—महीने का चैत्र नाम इसलिए पड़ा है कि उसकी पूर्णिमा को चंद्रमा प्रायः चित्रा नक्षत्र पर रहता है। इसी प्रकार पूर्णिमा के दिन उसके विशाखा, ज्येष्ठा आदि नक्षत्रों पर रहने के कारण वैशाख, ज्येष्ठ आदि नाम पड़े हैं। नक्षत्रों के संबंध में ध्यान रखने की एक और बात है। जिन उक्त तारों के बीच से होकर चलता हुआ सूर्य भी दिखाई देता है। सूर्य का भ्रमणमार्ग जिन १२ राशियों में विभक्त है, वे भी वस्तुतः उक्त तारों के ही वर्गीकरण हैं। अन्तर यही है कि नक्षत्र उन तारों के अपेक्षया छोटे वर्ग है; और राशियाँ उनके बड़े वर्गों के रूप में हैं, इसी-लिए राशियों में दो-दो, तीन-तीन नक्षत्र आ जाते हैं। ३. सत्ताइस मोतियों की माला। ४. मोती। |
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नक्षत्र-कल्प :
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पुं० [ष० त०] अर्थर्ववेद का एक परिशिष्ट जिसमें चंद्रमा की स्थिति आदि का वर्णन है। |
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नक्षत्र-कांति-विस्तार :
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पुं० [सं० नक्षत्र-कांति, ष० त० नक्षत्रकांति, विस्तार, ब० स०] सफेद ज्वार। |
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नक्षत्र-गण :
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पुं० [ष० त०] कुछ विशिष्ट नक्षत्रों के अलग-अलग समूह या गण। (फलित ज्योतिष) |
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नक्षत्र-चक्र :
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पुं० [ष० त०] १. सत्ताइस नक्षत्रों का वह चक्र जिसमें से होकर चंद्रमा २७-२८ दिनों में पृथ्वी की परिक्रमा करता है। २. राशिचक्र। ३. तांत्रिकों का एक प्रकार का चक्र जिसके अनुसार दीक्षा के समय नक्षत्रों आदि के विचार से गुरु यह निश्चय करता है कि शिष्य को कौन सा मंत्र दिया जाय। |
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नक्षत्र-चिंतामणि :
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पुं० [उपमि० स०] एक प्रकार का कल्पित रत्न जिसके संबंध में यह प्रसिद्ध है कि उससे माँगी हुई चीजें प्राप्त हो जाती हैं। |
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नक्षत्र-दर्श :
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पुं० [सं० नक्षत्र√दृश् (देखना)+अण्] १. वह जो नक्षत्र देखता हो। २. ज्योतिषी। |
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नक्षत्र-दान :
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पुं० [सं० त०] पुराणानुसार भिन्न-भिन्न नक्षत्रों के उद्देश्य से किया जानेवाला भिन्न-भिन्न पदार्थों का दान। |
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नक्षत्र-नाथ :
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पुं० [ष० त०] चन्द्रमा। |
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नक्षत्र-पति :
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पुं० [ष० त०] चंद्रमा। |
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नक्षत्र-पत्र :
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पुं० [सं० नक्षत्र√पा (रक्षा)+क] चंद्रमा। |
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नक्षत्र-पथ :
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पुं० [ष० त०] नक्षत्रों के चलने का मार्ग। |
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नक्षत्र-पद-योग :
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पुं० [ष० त०] जन्मकुंडली का वह योग जब सूर्य जन्म राशि से छठे स्थान पर या मेष राशि में होता है और चंद्रमा वृष राशि में। |
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नक्षत्र-पुरुष :
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पुं० [सुप्सुपा० स०] विभिन्न नक्षत्रों को विभिन्न शारीरिक अंगों के रूप में मानकर उनके आधार पर बननेवाला कल्पित पुरुष। |
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नक्षत्र-माला :
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स्त्री० [मध्य० स०] वह हार जिसमें सत्ताइस मोती हों। |
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नक्षत्र-याजक :
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पुं० [ष० त०] ग्रहों और नक्षत्रों आदि के दोषों की मंत्र-जाप आदि की सहायता से शांति करानेवाला ब्राह्मण। |
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नक्षत्र-योग :
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पुं० [ष० त०] नक्षत्र के साथ ग्रहों का योग। |
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नक्षत्र-योनि :
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स्त्री० [ष० त०] वह नक्षत्र जो विवाह के लिए निषिद्ध हो। |
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नक्षत्र-राज :
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पुं० [ष० त०] नक्षत्रों के स्वामी, चंद्रमा। |
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नक्षत्र-लोक :
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पुं० [ष० त०] १. सितारों की दुनिया। २. पुराणानुसार एक लोक जो चंद्रलोक के ऊपर स्थित माना गया है। |
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नक्षत्र-वीथि :
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स्त्री० [ष० त०] नक्षत्रों में गति के अनुसार तीन-तीन नक्षत्रों के बीच का कल्पित मार्ग। |
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नक्षत्र-वृष्टि :
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स्त्री० [ष० त०] तारे का टूटना। उल्कापात। |
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नक्षत्र-व्यूह :
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पुं० [ष० त०] फलित ज्योतिष में वह चक्र जिसमें यह दिखलाया जाता है कि किन-किन पदार्थों, जातियों आदि का कौन-कौन नक्षत्र स्वामी है। |
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नक्षत्र-व्रत :
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पुं० [मध्य० स०] पुराणानुसार किसी विशिष्ट नक्षत्र के उद्देश्य से किया जानेवाला ऐसा व्रत जिसमें उसके स्वामी की आराधना की जाती है। |
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नक्षत्र-शूल :
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पुं० [उपमि० स०] कुछ विशिष्ट नक्षत्रों का किसी विशिष्ट दिशा में रहने का ऐसा काल या समय जिसमें यात्रा आदि निषिद्ध हो। |
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नक्षत्र-संधि :
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स्त्री० [ष० त०] ग्रहों का नक्षत्र के पूर्व से उत्तर पक्ष में प्रविष्ट होने की संधि या समय। |
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नक्षत्र-सत्र :
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पुं० [मध्य० स०] वह यज्ञ जो नक्षत्रों के उद्देश्य से विशेषतः दुष्ट ग्रहों की शांति के लिए किया जाय। |
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नक्षत्र-साधन :
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पुं० [ष० त०] किसी नक्षत्र में किसी ग्रह के रहने का समय जानने के लिए की जानेवाली गणना। |
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नक्षत्र-सूचक :
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पुं० [ष० त०] ऐसा व्यक्ति जो बिना शास्त्रों का अध्ययन किये ही ज्योतिषी बन बैठा हो। |
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नक्षत्र-सूची (चिन्) :
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पुं० [सं० नक्षत्र√सूच् (बताना)+णिनि] =नक्षत्र-सूचक। |
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नक्षत्रामृत :
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पुं० [नक्षत्र-अमृत, स० त०] किसी विशिष्ट दिन में किसी विशिष्ट नक्षत्र का होनेवाला उत्तम योग जो यात्रा आदि के लिए शुभ माना जाता है। |
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नक्षत्रिय :
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वि० [सं० नक्षत्र+घ+इय] १. नक्षत्र-संबंधी। २. सत्ताइस (नक्षत्रों की संख्या के आधार पर)। |
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नक्षत्री :
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वि० [सं० नक्षत्र+हिं० ई (प्रत्य०)] १. जिसकी जन्मकुंडली में अच्छे नक्षत्र हों। अच्छे नक्षत्रों में जन्म लेनेवाला। २. बहुत बड़ा भाग्यवान्। पुं० [सं० नक्षत्रिन्] १. चंद्रमा। २. विष्णु। |
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नक्षत्रेश :
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पुं० [नक्षत्र-ईश, ष० त०] १. चंद्रमा। २. कपूर। |
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नक्षत्रेश्वर :
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पुं० [नक्षत्र-ईश्वर, ष० त०] नक्षत्रों का स्वामी, चंद्रमा। |
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नक्षत्रेष्टि :
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पुं० [नक्षत्र-इष्टि, मध्य० स०] नक्षत्रों की तुष्टि के निमित किया जानेवाला यज्ञ। |
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