शब्द का अर्थ
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नय :
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वि० [सं०√नी (ले जाना)+अच् ?] १. किसी को किसी ओर ले जानेवाला। २. मार्ग-दर्शक। ३. उचित। ठीक। वाजिब। पुं० [√नी+अप्] १. बरताव। व्यवहार। २. जीवन बिताने का ढंग। आचरण। ३. अच्छा और श्रेष्ठ आचरण। सदाचार। ४. दूरदर्शिता और बुद्धिमत्ता। ५. नम्रता। विनय। ६. न्यायपूर्वक और समझदारी से उचित या ठीक काम करने का ढंग या योग्यता। नीति। ७. प्रबंध, व्यवस्था और शासन करने का कोई व्यक्तिगत और कौशलपूर्ण ढंग या नीति। राजनीति। ८. अच्छी तरह काम करने के लिए बनाई गयी योजना। ९. दार्शनिक मत या सिद्धांत। १॰. एक प्रकार का खेल या जूआ। ११. विष्णु का एक नाम। १२. जैन दर्शन में प्रमाणों द्वारा निश्चित अर्थ या तत्व ग्रहण करने की वृत्ति जो सात प्रकार की कही गई है। यथा—नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र शब्द, समाभिरूढ़ और एवंभूत। स्त्री० [सं० नद या नदी] नदी। उदा०—केते औगुन जग करत नय वय चढ़ती बार।—बिहारी। |
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नय-ऋति :
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पुं०=नैर्ऋत।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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नयक :
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वि० [सं० नय+तुन्—अक] कुशल। चतुर। पुं० १. कुशल कार्यकर्ता। २. राजनीति में निपुण व्यक्ति। कुशल राजनीतिज्ञ। ३. नेता। |
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नयकारी :
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पुं० [?] १. नर्तकों के दल का नायक। नाचनेवालों का मुखिया। २. नाचनेवाला। नर्तक। |
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नयज्ञ :
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वि०=नीतिज्ञ। |
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नयण :
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पुं०=नयन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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नयन :
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पुं० [सं०√नी+ल्युट्—अन] १.किसी को कहीं या किसी ओर ले जाना की क्रिया या भाव। २. प्रबन्ध, व्यवस्था या शासन करने की क्रिया या भाव। ३. समय बिताने या व्यतीत करने की क्रिया या भाव। ४. आँखें या नेत्र जो हमें कहीं या किसी ओर ले जाने में सहायक होते हैं। |
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नयन-गोचर :
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वि० [ष० त०] १. जो आँखों में दिखाई देता हो। दिखाई देनेवाला। २. जो आँखों के सामने हो। समक्ष। |
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नयनच्छद :
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पुं० [ष० त०] आँख को ढकनेवाली पलक। |
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नयन-जल :
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पुं० [ष० त०] आँखों से बहनेवाला पानी अर्थात् आँसू। अश्रु। |
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नयनता :
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स्त्री० [हिं०] ‘नयन’ का भाव। उदा०—कुछ कुछ खुली नयनता से, कुछ रुकी मुस्कान से छीनते किस भाँति हो तुम धैर्य को।—पंत |
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नयन-पट :
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पुं० [ष० त०]=पलक। |
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नयन-पथ :
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पुं० [ष० त०] १. दृष्टि का मार्ग। २. वह सारा विस्तार जो किसी ओर देखने पर आँखों के सामने आता या होता है। |
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नयन-पुट :
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पुं० [ष० त०] वह कोटर या गड्ढा जिसमें आँख स्थित रहती हैं। |
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नयन-वारि :
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पुं० [ष० त०] नयन-जल। आँसू। |
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नयन-सलिल :
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पुं० [ष० त०] नयन-जल। आँसू। |
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नयनांबु :
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पुं० [नयन-अंबु, ष० त०] आँसू। |
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नयना :
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अ० [सं० नमन] १. झुकना। २. किसी के आगे नम्र या विनीत होना। स० १. झुकना। २. लाक्षणिक अर्थ में न रहने या देना या कम करना। उदा०—अंबर हरत द्रौपदी राखी ब्रह्म इन्द्र कौ मान नयौ।—सूर। पुं०=नयन। (आँख)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नय-नागर :
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वि० [सं० च० त०] १. नय अर्था्त नीतिशास्त्र में निपुण। नीतिज्ञ। २. चतुर। चालाक। |
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नयनाभिराम :
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वि० [सं० नयन-अभिराम, ब० स०] जो देखने में प्रिय तथा सुन्दर हो। |
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नयनिमा :
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स्त्री० [सं० नयन से] १. आँख का भाव। आँख पन। नेत्रता। २. चितवन। उदा०—कहाँ नयनिमा ने पाये ये फूलों के मादक शर।—पन्त। |
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नयनी :
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स्त्री० [सं० नयन] आँख की पुतली। वि० स्त्री० नयनों या आँखोंवाली। (यौ० के अन्त में) जैसे—मृग नयनी। |
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नयनू :
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पुं० [नवनीत] १. मक्खन। २. पुरानी चाल की एक प्रकार की बूटीदार मलमल। |
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नयनोत्सव :
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पुं० [सं० नयन-उत्सव, ब० स०] १. ऐसी सुन्दर वस्तु जिसे देखने से नेत्रों को बहुत सुख मिले। २. दीपक। दीया। |
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नयनौषध :
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पुं० [सं० नयन-औषध, ष० त०] पुष्पकसीस। पीला। कसीस। |
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नयर :
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पुं०=नगर। |
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नय-वाद :
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पुं० [सं० ष० त०] एक दार्शनिक वाद या सिद्धांत जिसमें यह माना जाता है कि आत्मा एक भी है और अनेक भी। |
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नयवादी (दिन्) :
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पुं० [सं० नयवाद+इनि] १. नयवाद का अनुयायी या ज्ञाता। २. नीतिज्ञ। ३. राजनीतिज्ञ। |
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नयशाली (लिन्) :
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वि० [सं० नय√शाल् (शोभित होना)+ णिनि]=नय-शील। |
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नय-शास्त्र :
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पुं० [ष० त०]=राजनीति शास्त्र। |
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नय-शील :
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वि० [सं० ब० स०] १. जो झुक सकता या झुकाया जा सकता हो। २. बुद्धिमान। विचारशील ३. नीतिज्ञ। ४. नम्र। विनीत। ५. विजयी। |
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नया :
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वि० [सं० नव] [स्त्री० नयी, नई] १. जिसका असित्व पहले न रहा हो, बल्कि जो अभी हाल में निकला, बना या हुआ हो। जो कुछ ही समय पहले प्रस्तुत हुआ हो। नवीन। जैसे—शहर में बहुत से नये मकान बने हैं। मुहा०—(कोई पदार्थ) नया कर देना=खराब या नष्ट कर डालना। निकम्मा या रद्दी बना देना। (मंगल भाषित रूप में प्रायः स्त्रियों द्वारा प्रयुक्त) जैसे—इस लड़के को जो कपड़ा दो वह दो दिन में नया करके रख देता है, अर्थात् जला देता, फाड़ डालता या मैला कर देता है। २. जिसकी उत्पत्ति या उपज अभी हाल में हुई हो। नई पैदावार में का। जैसे—नया आलू, नया चावल, नया पान। मुहा०—(अनाज या फल) नया करना=प्रस्तुत ऋतु में होने वाला अनाज, या पहले पहल खाना। जैसे—इस साल हमने आज ही गोभी नई की है; अर्थात पहले-पहल खाई है। ३. जिसका आविर्भाव, रचना या सृजन हुए अधिक समय न बीता हो। थोड़े दिनों का। हाल का। ताजा। जैसे—नई जवानी, नया नियम, नई सभ्यता। ४. जिसका अस्तित्व या सत्ता तो पहले से रही हो, परंतु जिसका अधिकार, ज्ञान या परिचय हाल में प्राप्त हुआ हो। जैसे—(क) वे मकान छोड़कर किसी नये मकान में चले गये हैं। (ख) ज्योतिषी नित्य नये तारों का पता लगाते रहते हैं। (ग) हमारे लिए तो यह अनुभव (या विचार) नया ही है। ५. जो पहले किसी के उपयोग या व्यवहार में न आया हो। जिससे पहले किसी ने काम न लिया हो। जैसे—यह लड़का रोज नये कपड़े पहनना चाहता है। ६. जो पहले था, उससे भिन्न और उसके स्थान पर आनेवाला दूसरा। जैसे—(क) अब नये अधिकारी आकर इस विषय का निर्णय करेंगे। (ख) विद्यालय में कई नये अध्यापक आये हैं। मुहा०—(कोई पुराना पदार्थ) नया करना या कर देना=टूट-फूट जाने अथवा निकम्मे या रद्दी हो जाने पर उसके स्थान पर दूसरा नया लाकर रखना। जैसे—आपका जो शीशा हमसे टूट गया है, वह हम नया कर देंगे। ७. परिवर्तन, मरम्मत, सुधार आदि करके ऐसे रूप में लाया हुआ जो पहले से बिलकुल भिन्न जान पड़े। नये अथवा हाल के बने हुए के समान। जैसे—(क) दो हजार रुपये खरच करो तो यह मकान बिलकुल नया हो जायगा। (ख) दस रुपए में घड़ी-साज ने घड़ी बिलकुल नई कर दी है। (ग) इस बार की धुलाई में यह कोट बिलकुल नया हो गया है। ८. जो किसी काम में अथवा किसी पद या स्थान पर पहले-पहल आकर लगा हो। जैसे—(क) नये आदमी को काम सँभालने और समझने में कुछ समय लगता ही है। (ख) इस यंत्र का नया पुरजा कुछ खड़खड़ करता है। ९. जो एक बार बहुत कुछ नष्ट या समाप्त होने की दशा में पहुँचकर भी फिर से बना या काम में आने के योग्य हुआ हो। जैसे—इस बीमारी में लड़के की नई जिंदगी हुई है या नया जीवन मिला है। १॰. जिसका क्रम या चक्र फिर से चलने लगा हो। जैसे—नया चंद्रमा, नया वर्ष। ११. जो अपने वर्ग के दूसरों की तुलना में अभी हाल का या औरों के बाद का हो और जिसका नामकरण किसी पूर्ववर्ती के अनुकरण पर हुआ हो। (प्रायः बस्तियों, मुहल्लों आदि के नामों के संबंध में) जैसे—नई दिल्ली, नई बस्ती, नया बाजार। १२. ऐसा अजनबी या पराया जो पहले कभी न देखा गया हो। जैसे—नये आदमी को देखकर कुत्ते भूँकने लगते हैं (या लड़के घबरा जाते हैं)। विशेष—यह शब्द सभी अर्थों में ‘पुराना’ का विपर्याय है। |
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नयापन :
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पुं० [हिं० नया+पन (प्रत्य०)] १. नये होने की अवस्था या भाव। नवीनता। नूतनत्व। २. कोई ऐसा नवीन गुण या विशेषता, जिसके फलस्वरूप किसी चीज में कोई चमत्कार य सौन्दर्य उत्पन्न हो जाय। |
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नयाम :
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पुं० [फा० नियाम] तलवार की म्यान। कोष। |
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