शब्द का अर्थ
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नाभि :
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स्त्री० [सं०√नह (बंधन)+इञ्, भ आदेश] १. जरायुज जंतुओं के पेट के बीचो-बीच वह छोटा गड्ढा, जिससे गर्भावस्था में जरायु नाल जुड़ा रहता है। ढोंटी। धुन्नी। तुन्नी। तुंदी। २. कस्तूरी। ३. उक्त प्रकार का कोई छोटा गड्ढा। ४. पहिए के बीच का वह गड्ढा जिसमें धुरा पहनाया या बैठाया जाता है। नाह। विशेष–यद्यपि संस्कृत में नाभि इस अंतिम या तीसरे अर्थ में पुं० है, फिर भी हिंदी में इस अर्थ में यह स्त्री० रूप में ही प्रयुक्त होता है। पुं० १. किसी चीज का केंद्र या मध्य-भाग। ऐसा भाग जिसके चारों ओर वस्तुएँ आकर इकट्ठी होती या हुई हों। २. प्रधान या मुख्य व्यक्ति। नेता। मुखिया। ३. परम स्वतन्त्र और बहुत बड़ा राजा। ४. वह पारस्परिक संबंध जो एक ही कुल, गोत्र या परिवार में उत्पन्न होने पर होता है। ५. क्षत्रिय। ६. महादेव। शिव। ७. भागवत के अनुसार आग्नीध्र राजा के पुत्र जिनकी पत्नी मेरु देवी के गर्भ से ऋषभ देव की उत्पत्ति हुई थी। ८. राजा प्रियव्रत के एक पौत्र का नाम। |
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नाभि-कंटक :
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पुं० [ष० त०] नाभि का उभरा हुआ या मांसल अंश। निकली हुई तुंदी। |
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नाभिका :
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स्त्री० [सं० नाभि√कै (मालूम पड़ना)+क–टाप्] १. नाभि के आकार का छोटा गड्ढा। २. कटभी (वृक्ष)। |
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नाभिगुलक :
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पुं० [सं०] नाभिकंटक। |
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नाभि-गोलक :
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पुं० [ष० त०] नाभिकंटक। (दे०) |
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नाभि-छेदन :
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पुं० [ष० त०] गर्भ से निकले हुए जरायुज जीवों का जरायु नाल काटने की क्रिया या भाव। नाल काटना। |
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नाभिज :
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वि० [सं० नाभि√जन् (उत्पत्ति)+ड] नाभि से उत्पन्न। पुं० ब्रह्मा। |
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नाभि-नाड़ी :
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स्त्री० [ष० त०] नाभि की नाड़ी जो गर्भ काल में माता की रसवहा नाड़ी से जुड़ी रहती है। |
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नाभि-पाक :
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पुं० [ष० त०] नाभि पकने का रोग। |
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नाभिल :
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वि० [सं० नाभि+लच्] १. नाभि से युक्त। जिसमें नाभि हो। २. (जीव) उभरी हुई नाभिवाला। |
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नाभि-वर्द्धन :
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पुं० [ष० त०] नाभि बढ़ाना अर्थात् काटना। (मंगलभाषित) |
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नाभि-वर्ष :
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पुं० [ष० त०] जंबूद्वीप का वह भाग (आधुनिक भारत) जो राजा नाभि को उनके पिता राजा आग्नीध्र ने दिया था। विशेष–नाभि के पौत्र भरत हुए जिसके नाम से हमारे देश का नाम भारत हुआ। |
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नाभि-संबंध :
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पुं० [ष० त०] व्यक्तियों का वह पारस्परिक संबंध जो उनके किसी एक गोत्र में जन्म लेने पर होता है। |
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