शब्द का अर्थ
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नासा :
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स्त्री० [सं०√नास्+अ–टाप्] [वि० नास्य] १. नासिका। नाक। २. नाक के दोनों छेद। नथना। ३. दरवाजे में चौखट के ऊपर की लकड़ी। ३. अजूसा। वासक। |
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समानार्थी शब्द-
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नासाख़त :
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पुं० दे० ‘नक-घिसनी’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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नासाग्र :
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पुं० [सं० नासा+अग्र ष० त०] नाक का अगला नुकीला अंश या भाग। |
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नासा-ज्वर :
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पुं० [मध्य० स०] नाक में एक प्रकार की गाँठ होने के फल-स्वरूप चढ़नेवाला बुखार। |
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नासानाह :
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पुं० [सं०] एक तरह का रोग जिसमें कफ से नथने रुँधे रहते हैं। |
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नासा-परितोष :
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पुं० [ष० त०] नासाशोष रोग। |
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नासा-पाक :
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पुं० [ष० त०] नाक का वह चमड़ा जो छेदों के किनारे परदे का काम देता है। नथना। |
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नासा-योनि :
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पुं० [ब० स०] वह नपुंसक जिसे घ्राण करने पर उद्दीपन हो। सौगंधिक नपुंसक। |
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नासालु :
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पुं० [सं०] कायफल। |
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नासा-वंश :
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पुं० [उपमि० स०] नाक की हड्डी। |
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नासा-वेष :
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पुं० [ष० त०] १. नथ आदि पहनने के लिए नाक में छेद करने की रसम। २. उक्त काम के लिए नाक के अगले भाग में किया हुआ छेद। |
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नासामणि :
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पुं० [सं०] संगीत में, कर्नाट की पद्धति का एक राग। |
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नासा-शोष :
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पुं० [ष० त०] एक रोग जिसमें नाक में कफ जम तथा सूख जाता है। |
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नासा-स्राव :
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पुं० [ष० त०] नाक में से कफ या पानी निकलना। |
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