शब्द का अर्थ
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निमंत्रण :
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पुं० [सं०√मंत्र (बुलाना)+ल्युट्–अन्] [वि० निमंत्रित] १. किसी को किसी काम के लिए आदरपूर्वक बुलाने की क्रिया या भाव। आग्रहपूर्वक यह कहना कि आप अमुक कार्य के लिए अमुक समय पर हमारे यहाँ पधारें। २. ब्राह्मणों को भोजन कराने के लिए अपने यहाँ बुलाने की क्रिया या भाव। ३. विवाह आदि शुभ अवसरों पर लोगों को आदरपूर्वक अपने यहाँ बुलाने की क्रिया या भाव। न्योता। क्रि० प्र०–देना।–भेजना।–मानना। |
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निमंत्रण-पत्र :
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पुं० [ष० त०] वह पत्र जिसमें यह लिखा रहता है कि आप अमुक समय पर हमारे यहाँ आने की कृपा करें। |
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निमंत्रना :
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स० [सं० निमंत्रण] निमंत्रण देना। समादर बुलाना। |
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निमंत्रित :
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भू० कृ० [सं० नि√मंत्र+क्त] जिसे किसी काम या बात के लिए निमंत्रण दिया गया हो या मिला हो। बुलाया हुआ। आहूत। |
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निम :
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पुं० [सं०] शलाका। शंकु। स्त्री०=नीम (पेड़)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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निमक :
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पुं०=नमक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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निमकी :
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स्त्री० [फा० नमक] १. नीबू का अचार। २. छोटी टिकिया के आकार का एक प्रकार का नमकीन मोयनदार पकवान। वि=नमकीन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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निमकौड़ी :
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स्त्री० [हिं० नीम+कौड़ी] नीम का फल जिसमें उसका बीज रहता है और जो देखने में प्रायः कौड़ी की तरह का होता है. |
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निमग्न :
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वि० [सं० नि√मग्न् (डूबना)+क्त] [स्त्री० निमग्ना] १. डूबा हुआ। मग्न। २. कार्य, विचार आदि में पूर्ण रूप से तन्मय। लीन। |
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निमछड़ा :
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पुं० [हिं० छाँड़ना] १. ऐसा समय जिसमें कोई काम न हो। २. छुट्टी। |
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निमज्जक :
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वि० [सं० नि√मज्ज+ण्वुल्–अक] गोता या डुबकी लगाकर स्नान करनेवाला। |
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निमज्जन :
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पुं० [सं० नि√मज्ज्+ल्युट्–अक] १. गोता लगाकर किया जाने वाला स्नान। २. किसी वस्तु को किसी तरल पदार्थ में डुबोने की क्रिया या भाव। (इम्मर्शन) ३. किसी बात या विषय में अच्छी तरह मग्न या लीन होना। |
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निमज्जना :
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अ० [सं० निमज्जन] गोता लगाकर स्नान करना। |
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निमज्जित :
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भू० कृ० [सं० नि√मज्ज्+क्त] १. जो नहा चुका हो; विशेषतः गोता लगाकर नाहाया हुआ। २. डूबा हुआ। ३. डुबाया हुआ। |
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निमटना :
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अ०=निपटना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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निमटाना :
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स०=निबटाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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निमटेरा :
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पुं०=निपटारा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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निमत :
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वि० [हिं० नि+सं० मत्त] १. जो मत्त न हो। २. जिसका होश ठिकाने हो। |
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निमता :
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वि० [हिं० नि+सं० मत्त] १. जो मत्त न हो। २. जो उन्मत्त न हो। फलतः धीर और शांत। |
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निमद :
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पुं० [सं० नि√मद् (हर्ष)+अप्] स्पष्ट किन्तु मंद उच्चारण। |
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निमरी :
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स्त्री० [देश०] मध्यभारत में होनेवाली एक तरह की कपास। |
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निमाज :
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स्त्री०=नमाज। (देखें)। पुं०=नवाज। |
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निमाज़ी :
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वि०=नमाजी। (देखें) |
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निमान :
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वि० [सं० निम्न=गड्ढा] १. नीचा। २. ढालुआँ। पुं० १. नीचा या ढालुआँ स्थान। २. जलाशय। वि० [सं०] निमग्न।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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निमाना :
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वि० [सं० निम्न] [स्त्री० निमानी] १. जो नीचे की ओर हो। नीचा। २. जिसकी नति या प्रवृत्ति नीचे की ओर हो। ३. ढालुआँ। ४. नम और विनीत स्वभाववाला। ५. सबसे डर और दबकर रहनेवाला। दब्बू। स०=नवाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स० [सं० निर्माण] निर्माण करना। बनाना। रचना। उदा०–माझ खीनिम निमाइ।–विद्यापति। |
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निमानिया :
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वि० [हिं० न मानना] [भाव० निमानी] १. न माननेवाला। २. जो नियम, मर्यादा, विनय आदि का पालन न करता हो। मनमानी करनेवाला। निरंकुश। |
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निमानी :
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वि० [हिं० नि+मानना] निमानिया। (दे०)। स्त्री० मनमाना आचरण या व्यवहार। स्वेच्छाचार। |
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निमाल :
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वि०, पुं०=निर्माल्य। |
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निमि :
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पुं० [सं०] १. आँखों की पलकें झपकाने की क्रिया या भाव। निमेष। २. महाभारत के अनुसार एक ऋषि जो दत्तात्रेय के पुत्र थे। ३. राजा इक्ष्वाकु के एक पुत्र जिनसे मिथिला का विदेह-वंश चला था। |
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निमिख :
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पुं०=निमिष। |
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निमित्त :
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पुं० [सं० नि√मिद् (स्नेह)+क्त] [वि० नैमित्तिक] १. वह कार्य या बात जिससे किसी दूसरे कार्य या बात का साधन हो। २. व्यक्ति, जो नाम-मात्र के लिए कोई काम कर रहा हो, जब कि वह कार्य करवाने या प्रेरणाशक्ति देनेवाला और कोई होता है। ३. हेतु। ४. चिह्न। लक्षण। ५. शकुन। ६. उद्देश्य। लक्ष्य। ७. बहाना। मिस। अव्य० किसी काम या बात के उद्देश्य या विचार से। लिए। वास्ते। जैसे–पितरों के निमित्त दान देना। |
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निमित्तक :
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वि० [सं० निमित्त+कन्] जो निमित्त मात्र हो। पुं०=चुंबन। |
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निमित्त-कारण :
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पुं० [सं० कर्म० स०] न्याय में, वह चीज, बात या व्यक्ति जो किसी के घटित होने, बनने आदि का आधार या मूल कारण हो। |
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निमि-राज :
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पुं० [सं० ष० त०] निमिवंशीय राजा जनक। |
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निमिष :
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पुं० [सं० नि√मिष् (आँख खोलना)+क] १. पलकों का गिरना या बंद होना। आँखें मिचना। निमेष। २. काल या समय का उतना मान जितना एक बार पलक गिरने या झपकने में लगता है। ३. सुश्रुत के अनुसार पलकों में होनेवाला एक प्रकार का रोग। ४. खिले हुए फूलों का मुँह बन्द होना। ५. विष्णु। |
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निमिष-क्षेत्र :
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पुं० [सं० मध्य० स० या ष० त०] नैमिषारण्य। |
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निमिषांतर :
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पुं० [सं० निमिष-अंतर, ष० त०] पलक गिरने या मारने का समय। |
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निमिषित :
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भू० कृ० [सं० नि√मिष्+क्त] निमीलित। भिचा या मुँदा हुआ। |
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निमीलन :
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पुं० [सं० नि√मील् (बन्द करना)+ल्युट्–अन] १. पलक गिराना या झपकाना। २. उतना समय जितना एक बार पलक गिरने में लगता है। निमिष। ३. मनुष्य की आँखें सदा के लिए बंद होना। अर्थात् मरना। मौत। |
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निमीला :
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स्त्री० [सं० नि√मील्+अ–टाप्] निमीलिका। (दे०) |
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निमीलिका :
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स्त्री० [सं० निमीला+कन्, टाप्, ह्रस्व, इत्व] १. आँख झपकने या बंद करने की क्रिया या भाव। २. [नि√मील्+णिच्+वुल् अक, टाप्, इत्व।] छल। व्याज। |
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निमीलित :
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भू० कृ० [सं० नि√मील्+क्त] १. झपका, झपकाया या बंद किया हुआ। २. छिपा या छिपाया हुआ। ३. मरा हुआ। मृत। |
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निमुँहा :
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वि० [हिं० नि+मुँह] [स्त्री० निमुँही] १. जिसका या जिसे मुँह न हो। बिना मुँह का। २. जो कुछ कहने या बोलने के समय भी चुप रहता हो। ३. लज्जा आदि के कारण जिसे कुछ कहने का साहस न होता हो। ४. जो बिना कुछ कहे-सुने अत्याचार, कष्ट आदि सह लेता हो। उदा०–निमुँही जानके वो मुझको मार लेते हैं।–जान साहब। |
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निमूँद :
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वि० [हिं० नि+मुँदना] १. जो मुँदा या बंद किया हुआ न हो। २. मुदित। बंद। उदा०–कौड़ा आँसू मूँदि कसि, साँकर बरुनी सजल। कीने बदन निमूँद, दृग-मलिंग डारे रहत।–बिहारी। |
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निमूल :
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वि०=निर्मूल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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निमूहा :
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वि० [स्त्री० निमुँही]=निमुँहा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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निमेख :
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पुं०=निमेष। |
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निमेखना :
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स० [सं० निमेष] पलकें गिराना, झपकाना या मूँदना। |
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निमेट :
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वि० [हिं० नि+मिटना] जिसे मिटाया न जा सके। न मिटनेवाला। अमिट। उदा०–काह कहौं हौं ओहि सों जेई दुख कीन्ह निमेट।–जायसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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निमेष :
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पुं० [सं० नि√मिष+घञ्] १. आँख की पलक का गिरना या झपकना। २. उतना समय जितना एक बार पलक गिराने या झपकाने में लगता है। ३. आँख की पलकें फड़कने का रोग। ४. एक बार का चना। |
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निमेषक :
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पुं० [सं० निमेष+कन्] १. पलक। २. जुगनूँ। |
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निमेषकृत :
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स्त्री० [सं० निमेष√कृ (करना)+क्विप्, तुक्] बिजली। विद्युत्। |
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निमेषण :
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पुं० [सं० नि√मिष्+ल्युट्–अन] पलकें गिरना या गिराना। |
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निमोना :
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पुं० [सं० नवान्न] हरे चने या मटर को पीसकर बनाया जानेवाला एक प्रकार का सालन या रसेदार तरकारी। |
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निमोनिया :
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पुं० [अ०] अत्यधिक सरदी लगने के कारण होनेवाला एक प्रसिद्ध रोग, जिसमें फेफड़े में सूजन आ जाती है। |
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निमौनी :
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स्त्री० [सं० नवान्न] ऊख की फसल की कटाई आरंभ करने का दिन। |
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निम्न :
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वि० [सं० नि√म्ना (अभ्यास)+क] १. जो प्रसम, धरातल या स्तर से नीचा हो। २. जो अपेक्षाकृत कम ऊँचे स्तर पर हो। ३. जिसमें तीव्रता, वेग आदि साधारण से कम हो। जैसे–निम्न रक्त-चाप। पुं० चित्र-कला में दिखाया जानेवाला ऐसा स्थान, जो आसपास के स्थानों से नीचा या गहरा हो। |
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निम्नग :
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वि० [सं० निम्न√गम् (जाना)+ड] [स्त्री० निम्नगा] जो नीचे की ओर जाता हो। जिसका प्रवृत्ति नीचे की ओर हो। |
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निम्नगा :
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स्त्री० [सं० निम्नगा+टाप्] १. नदी। २. रहस्य संप्रदाय में, नाड़ी। |
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निम्नयोधी (धिन्) :
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वि० [सं० निम्न√युद्ध (लड़ना)+णिनि] किले के नीचे से या नीची जमीन पर ले लड़नेवाला। वि० दे० ‘स्थल योधी’। |
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निम्नांकित :
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वि० [सं० निम्न-अंकित, स० त०] १. जिसका अंकन नीचे हुआ हो। २. निम्नलिखित। |
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निम्नारण्य :
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पुं० [सं० निम्न-अरण्य, कर्म० स०] पहाड़ की घाटी। (कौ०) |
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निम्नोन्नत :
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वि० [सं० निम्न-उन्नत, द्व० स०] (स्थल आदि) जो कहीं से नीचा और कहीं से ऊँचा हो। ऊबड़-खाबड़। पुं० चित्र-कला में आवश्यकतानुसार दिखाई जानेवाली ऊँचाई और निचाई। नतोन्नत। उच्चित्र (रिलीफ) |
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निम्मन :
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वि० [देश०] बढ़िया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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निम्लुक्ति :
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स्त्री० [सं० नि√म्लुच् (गति)+क्तिन्] सूर्यास्त। |
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निम्लोच :
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पुं० [सं० नि√म्लुच्+घञ्] सूर्य का अस्त होना। |
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निम्लोचनी :
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स्त्री० [सं०] मानसरोवर के पश्चिम में स्थित वरुण की नगरी। |
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निम्लोचा :
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स्त्री० [सं०] एक अप्सरा का नाम। |
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