शब्द का अर्थ
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निशांत :
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वि० [सं० नि-शांत, प्रा० स०] १. (व्यक्ति) पूर्ण रूप से या बहुत अधिक शांत। २. (वातावरण या स्थान) जिसमें शांति न हो। पुं० १. निशा अर्थात् रात्रि का अंत। पिछली रात। रात का चौथा प्रहर। २. तड़का। प्रभात। ३. घर। मकान। |
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निशांध :
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वि० [सं० निशा-अन्ध, स० त०] जिसे रात को दिखाई न दे। जिसे रतौंधी हो। |
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निशांधा :
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स्त्री० [सं० निशा√अन्ध (दृष्टि-विघात)+अच–टाप्] जतुका लता। |
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निशांधी :
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स्त्री० [सं० निशा√अन्ध्+अच्–ङीष्] १. जतुका या पहाड़ी नामक लता। २. राजकुमारी। |
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निशा :
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स्त्री० [सं० नि√शो (क्षीण करना)+क–टाप्] १. रात्रि। रजनी। रात। २. हलदी। ३. दारू हलदी। ४. फलित ज्योतिष में, इन छः राशियों का समूह–मेष, वृष, मिथुन, कर्क, धनु और मकर। |
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निशाकर :
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वि० [सं० निशा√कृ (करना)+ट] निशा करनेवाला। पुं० १. चन्द्रमा। २. महादेव। शिव। ३. कुक्कुट। मुरगा। ४. कपूर। |
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निशा-केतु :
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पुं० [सं० ष० त०] चन्द्रमा। |
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निशाखातिर :
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स्त्री० [फा० निशा+अ० खातिर] किसी काम या बात के संबंध में मन में होनेवाला वह पूरा विश्वास जो किसी दूसरे के समझाने पर उत्पन्न होता है। |
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निशाख्या :
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स्त्री० [सं० निशा-आख्या, ब० स०] हलदी। |
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निशा-गृह :
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पुं० [सं० मध्य० स०] शयनागार। |
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निशाचर :
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वि० [सं० निशा√चर्(गति)+ट] रात के समय चलने या विचरण करनेवाला। पुं० १. राक्षस। २. गीदड़। ३. उल्लू। ४. साँप। ५. चकवा-पक्षी। चक्रवाक। ६. भूत, प्रेत आदि। ७. चोर। ८. महादेव। शिव। ९. चनेर नामक गंध-द्रव्य। १॰. बिल्ली। ११. एक प्रकार की ग्रंथिपर्णी या गठिवन। |
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निशाचर-पति :
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पुं० [सं० ष० त०] १. रावण। २. शिव। |
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निशाचरी :
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वि० [सं० निशाचर+ङीष्] १. निशाचर-संबंधी। निशाचर का। जैसे–निशाचरी माया। २. निशाचरों की तरह का। स्त्री० १. राक्षसी। २. कुलटा या व्यभिचारिणी। ३. अभिसारिका। नायिका। ४. केशिनी नामक गंध-द्रव्य। |
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निशा-चर्म :
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पुं० [सं० स० त०] अंधकार। अंधेरा। |
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निशा-जल :
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पुं० [सं० मध्य० स०] १. हिम। पाला। २. ओस। |
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निशाट :
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पुं० [सं० निशा√अट् (भ्रमण)+अच्] १. उल्लू। २. निशाचर। |
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निशाटक :
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पुं० [सं० निशा√अट्+ण्वुल्–अक] गूगल। |
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निशाटन :
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वि० [सं० निशा√अट्+ल्यु–अन] रात्रि को चलनेवाला। निशाचर। पुं० उल्लू। |
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निशात :
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वि० [सं० नि√शो (तेज करना)+क्त] १. सान पर चढ़ाकर तेज किया हुआ। २. ओर आदि लगाकर चमकाया हुआ। वि० [फा० नशात] १. आनंद। सुख। २. सुखभोग। |
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निशातिक्रम, निशात्मय :
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पुं० [सं० निशा-अतिक्रम, निशा-अत्यय, ष० त०] १. रात का बीतना। २. प्रातःकाल। |
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निशाद :
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वि० [सं० निशा√अद् (खाना)+अच्] रात को खानेवाला। पुं० निषाद। (दे०) |
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निशादि :
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वि० [सं० निशा-आदि, ब० स० या ष० त०] सायं। संध्या। |
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निशान :
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पुं० [फा०] १. चिह्न। लक्षण। २. ऐसा प्राकृत या आकस्मिक चिह्न या लक्षण जिससे कोई चीज पहचानी जाय या जिससे किसी घटना या बात का परिचय, प्रमाण या सूत्र मिले। ३. मोहर आदि की छाप। ४. झंडा या पताका जिससे किसी संप्रदाय, राज्य आदि की पहचान होती है। ५. प्राचीन काल में वह झंडा जो राजाओं की सवारियों के आगे चलता था। ६. कलंक। धब्बा। ७. वह चिह्न जो लेख्यों आदि पर अशिक्षित लोग अपने हस्ताक्षर के बदले बनाते हैं। जैसे–अगूँठे का निशान। ८. पता। ठिकाना। मुहा०–निशान-देना=सम्मान आदि तामील करने के लिए यह बताना कि यही असामी है। ९. निशाना। १॰. दे० ‘निशानी’। |
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निशान-कोना :
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पुं० [सं० ईशान+हिं० कोना] उत्तर और पूर्व का कोण। |
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निशानची :
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वि० [फा०] १. बढ़िया निशाना लगानेवाला। पुं० जुलूस या राजा आदि की सवारी के आगे-आगे झंडा लेकर चलनेवाला व्यक्ति। |
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निशान-देही :
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स्त्री० [फा० निशाँ देही] १. किसी का पता-ठिकाना बतलाना। २. न्यायालय के सम्मन आदि की तामील के लिए चपरासी के साथ जाकर यह बतलाना कि यही वह आदमी है जिसे सम्मन दिया जाना चाहिए। प्रतिवादी की पहचान कराना। |
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निशान-पट्टी :
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स्त्री० [फा० निशान+हिं० पट्टी] १. चेहरे की गठन और रूप रंग का वर्णन। हुलिया। |
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निशान-बरदार :
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पुं० [फा०] झंडा हाथ में लेकर जुलूस, सवारी आदि के आगे चलनेवाला व्यक्ति। |
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निशाना :
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पुं० [फा० निशानः] १. वह वस्तु या बिंदु जिस पर शस्त्र से आघात किया जाय। क्रि० प्र०–करना।–बनाना। २. किसी पदार्थ को लक्ष्य बनाकर उसकी ओर किसी प्रकार का वार करने की क्रिया। वार। मुहा०–निशाना बाँधना=निशाना साधना। (देखें नीचे) निशाना मारना या लगाना=(क) ठीक लक्ष्य पर वार करना। (ख) ठीक लक्ष्य पर वार करने का अभ्यास करना। ३. मिट्टी आदि का वह ढेर या और कोई पदार्थ, जिस पर निशाना साधा जाय ४. वह जिसे लक्ष्य बनाकर कोई उग्र या विकट आघात या क्रिया की जाय। जैसे–किसी की नजर का निशाना, किसी के ताने या व्यंग्य का निशाना। |
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निशा-नाथ :
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पुं० [सं० ष० त०] १. चंद्रमा। ३. कपूर। |
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निशानी :
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स्त्री० [फा०] १. वह चीज जो किसी घटना या व्यक्ति का स्मरण करनेवाली हो। स्मृति-चिह्न। यादगार। जैसे–(क) यही लड़का भाई साहब की निशानी है। (ख) विधवा के पास यही अँगूठी उसके पति की निशानी बच रही है। क्रि० प्र०–देना।–रखना। २. पहचान का चिह्न। निशान। |
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निशा-पति :
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पुं० [ष० त०] १. चंद्रमा। २. कपूर। |
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निशा-पुत्र :
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पुं० [ष० त०] नक्षत्र आदि आकाशीय पिंड। |
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निशापुष्प :
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पुं० [सं० निशा√पुष्प् (खिलना)+अच्] कुमुदनी। कोई। |
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निशा-बल :
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पुं० [ब० स०] मेष, वृष, मिथुन, कर्क, धन और मकर ये छः राशियाँ जो रात के समय अधिक बलवती मानी जाती हैं। (फलित ज्योतिष) |
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निशा-भंगा :
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स्त्री० [ब० स०, टाप्] दुग्धपुच्छी नामक पौधा। |
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निशा-मणि :
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पुं० [ष० त०] १. चंद्रमा। २. कपूर। |
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निशामन :
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पुं० [सं० नि√शम् (शांति)+णिच्+ल्युट्–अन] १. दर्शन। देखना। २. आलोचना। ३. श्रवण। सुनना। |
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निशा-मुख :
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पुं० [ष० त०] संध्या काल। |
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निशा-मृग :
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पुं० [मध्य० स०] गीदड़। श्रृगाल। |
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निशा-रत्न :
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पुं० [ष० त०] १. चंद्रमा। २. कपूर। |
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निशा-रुक :
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पुं० दे० ‘निशासक’। |
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निशा-वन :
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पुं० [ब० स०] सन का पौधा। |
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निशावसान :
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पुं० [निशा-अवसान, ष० त०] निशा के समाप्त होने का समय। प्रभात का समय। |
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निशा-विहार :
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पुं० [ब० स०] राक्षस। |
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निशासक :
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पुं० [सं०] संगीत में एक प्रकार का रूपक ताल जिसमें दो लघु और दो गुरु मात्राएँ होती हैं। |
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निशास्ता :
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पुं० [फा० नशास्तः] १. गेहूँ का सार। २. कपड़ों में लगाया जानेवाला कलफ या माड़ी। |
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निशाहस :
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पुं० [सं० निशा√हस् (हँसना)+अच्] कुमुदनी। |
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निशा-हासा :
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स्त्री० [ब० स०, टाप्] शेफालिका। |
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निशाह्वा :
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स्त्री० [सं० निंशा-आह्वा, ब० स०, टाप्] १. हलदी। २. जतुका नामक लता। |
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