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फँसना  : अ० [सं० पाश, हिं० फाँस] १. पाश अर्थात् फंदे में पड़ना और फलतः कसा जाना। २. किसी प्रकार के जाल में इस प्रकार अटकना कि उससे छुटकारा या मुक्ति न हो सके। ३. किसी चीज में किसी दूसरी चीज का इस प्रकार चले जाना अटकना या उलझना कि सहज में वह बाहर न निकल सकती हो। जैसे—बोतल में काग फँसना। ४. एक चीज में दूसरी चीज का उलझकर अटक जाना। जैसे—काँटों में पल्ला फँसना। ५. लाक्षणिक अर्थ में अधिक अथवा विकट कामों में इस प्रकार व्यस्त रहना कि उससे अवकाश या छुटकारा मिलने की जल्दी आशा न हो। जैसे—झंझट या मुकदमें में फँसना। ६. किसी की चिकनी-चुपड़ी या छलपूर्ण बातो में आना और छला जाना। ७. पर-पुरुष या पर-स्त्री के प्रेम में पड़ने के कारण उससे ऐसा अनुचित संबंध स्थिर होना जो जल्दी छूट न सके।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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