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फूल  : पुं० [सं० फुल्ल] १. पौधों और वृक्षों का वह प्रसिद्ध अंग जो कुछ नियत ऋतुओं मे गोल या लम्बी पंखुड़ियों के योग से गाँठों आदि के रूप में बना होता है। कुसुम। पुष्प। सुमन। (फ्लावर)। विशेष—वनस्पति-विज्ञान की दृष्टि से इसे पेड़-पौधों की जननेंद्रिय कह सकते हैं, क्योंकि फल उत्पन्न करनेवाला मूल तत्त्व या शक्ति इसी में निहित होती है। भिन्न-भिन्न फूलों के आकार-प्रकार और रूप-रंग भिन्न होते हैं और प्रत्येक वर्ग के फूल में प्रायः अलग प्रकार की और विभिन्न गंध या सुगंध भी होती है। लोक में फूल अपनी कोमलता, सुंदरता और हलकेपन के लिए प्रसिद्ध है। क्रि० प्र०—चुनना।—झड़ना।—निकलना।—फूलना।—लगना।—लोढ़ना। पद—फूल सा=बहुत सी सुन्दर, सुकुमार या हलका। फूलों की चादर=फूलो से गूँथ कर चादर की तरह का बनाया हुआ वह जाल जो मुसलमान पीरों आदि की कब्रों पर चढ़ाते हैं। फूलों की छड़ी-दे० फूल छड़ी। फूलों की सेज-वह पलंग या शय्या जिस पर सजावट और कोमलता के लिए फूलों की पंखुड़ियों फैलाई या बिछाई गयी हों। (श्रृंगार की एक सामग्री) मुहावरा—(पेड़-पौधों में) पूल आना- शाखाओं आदि मे फूल उत्पन्न होना या निकलना। फूल उतरना-पेड-पौधों में से फूलों का झड़कर या तोड़े जाने पर इस प्रकार अलग होना कि काम में आ सके। जैसे—बेले की इस क्यारी में रोज सेरों फूल उतरते हैं। फूल चुनना=वृक्षों के फूल तोड़कर इकट्ठा करना। (किसी के मुँह से) फूल झड़ना-मुँह से बहुत ही मनोहर और मीठी बातें निकलना, बहुत ही प्रिय-भाषी होना। फूल सूँघकर रहना-बहुत ही कम खाना। अत्यन्त अल्पाहारी होना। जैसे—आप खाते तो क्या हैं फूल सूँघकर रहते हैं २. किसी चीज पर अंकित कियेया और किसी प्रकार बनाये हुए फूल के आकार के बेल-बूटे या नक्काशी। ३. फूल के आकार-प्रकार की बनायी हुई कोई चीज या रचना। जैसे—(क) कान या नाक में पहनने का फूल। (ख) मथानी के डंडे के सिरे पर का फूल, कागज या चाँदी सोने के फूल। मुहावरा—(किसी के गालों पर) फूल पड़ना=बोलने, हँसने आदि के समय गालों पर छोटे गोलाकार गड्ढे से बनना जो सौन्दर्यसूचक होते हैं। जैसे—जब यह बच्चा मुस्कराता है तब इसके गालों पर फूल पड़ते हैं। ४. किसी ऐसी चीज जो देखने में वृक्षों के आकार-प्रकार की हो। जैसे—चार फूल मेथी (सूखे हुए दाने) दस फूल लौंग। ५. किसी प्रकार के चूर्ण का वह रूप जिसके दाने या रवे फूल की तरह खिले हुए और अलग हों। जैसे—आटे या चीनी के फूल। ६. किसी चीज का सत्त या सार। जैसे—फूल शराब-सुरासार। ७. किसी पतले या द्रव पदार्थ को सुखाकर जमाया हुआ पत्तर या रवा। जैसे—अजवायन के फूल देशी स्याही के फूल। ८. एक प्रकार की मिश्र धातु जो ताँबे और राँगे के मेल से बनती है। ९. दीपक की जलती हुई बत्ती पर पड़े हुए गोल दमकते दाने जो उभरे हुए मालूम होते हैं। गुल। क्रि० प्र०—झड़ना।—झाड़ना। मुहावरा—(दीपक को) फूल करना=दीआ बुझाना। १॰. शरीर पर पड़नेवाला वह लाल या सफेद धब्बा जो श्वेत कुष्ठ नामक रोग होने पर होता है। ११. स्त्रियों का वह रक्त जो मासिक धर्म में निकलता है। रज-पुष्प। क्रि० प्र०—आना। पद—फूल के दिन=स्त्री के रजस्वला होने के दिन। उदाहरण—स० महीने में कुढ़ाते थे मुझे फूल के दिन। बारे अब की तो मेरे टल गये मामूल के दिन।—रंगीन। १२. स्त्रियों का गर्भाशय। १३. घुटने या पैर की गोल हड्डी। चक्की। टिकिया। १४. शव जलाने के बाद मृत शरीर की बची हुई हड्डियाँ जो प्रायः इकट्ठी करके किसी पवित्र जलाशय या नदी में फेंकी या प्रवाहित की जाती है। क्रि० प्र०—चुनना। स्त्री० [हिं० फूलना] १. वृक्षों आदि के फूलने की अवस्था, क्रिया या भाव। फुलावट। २. मन में फूलने अर्थात् प्रफुल्लित होने की अवस्था या भाव। प्रसन्नता। प्रफुल्लता। उदाहरण—मृग नैनी दृग की फरक, उर उछाह तन फूल।—बिहारी। वि० (रंगों के संबंध में) साधारण से कम गहरा। हलका। (यौ० पदों के आरम्भ में नीम और हवा की तरह प्रयुक्त) जैसे—इस साड़ी का रंग गुलाबी तो नहीं हाँ फूल गुलाबी कहा जा सकता है।
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फूलकारी  : स्त्री० [हिं० फूल+फा० कारी] १. बेल-बूटे बनाने का काम। २. दे० ‘फूलकारी’।
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फूलगोभी  : स्त्री० [हिं० फूल+गोभी] एक प्रकार का पौधा जिसमें बड़े फूल के आकार का बँधा हुआ ठोस पिंड होता है। यह तरकारी के काम आती है। गोभी।
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फूल-छड़ी  : स्त्री० [हिं०] १. श्रृंगार, सजावट आदि के काम आनेवाली वह छड़ी जिसके चारों ओर बहुत से फूल टाँके या बाँधे गये हों। २. चित्रों मूर्तियों आदि में उक्त प्रकार का चित्रण या लक्षण।
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फूलझाड़  : पुं० [हिं०] काँस आदि की (फूलों के आकार की) सीकों का बना हुआ झाड़ू जिससे महीन धूल बहुत अच्छी तरह साफ होती है।
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फूल-डोल  : पुं० [वि० फूल+डोल] चैत्र शुल्क एकादशी को मनाया जानेवाला एक उत्सव जिसमें देवता की मूर्ति को फूलों के हिंडोले में रखकर झुलाते हैं।
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फूल ढोंक  : पुं० [?] १. प्रायः हाथ भर लम्बी एक प्रकार की मछली जो भारत के सभी प्रांतों में पायी जाती है।
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फूलदान  : पुं० [हिं० फूल+फा० दान (प्रत्यय)] मिट्टी, धातु शीशे आदि का वह पात्र जिसमें शोभा के लिए फूल, गुलदस्ते आदि लगाकर रख जाते हैं। गुलदान।
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फूलदार  : वि० [हिं० फूल+दार (प्रत्य=)] जिस पर बेल-बूटे बने हों अर्थात् फूलकारी का काम हुआ हो।
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फूलना  : अ० [हिं० फूल+ना (प्रत्यय)] १. पौधों, वृक्षों आदि का फूलों से युक्त होना। पुष्पित होना। जैसे—वह पौधा बसंत में फूलता है। मुहावरा—(किसी व्यक्ति का) फूलना-फलना=लाक्षणिक रूप में, धन-धान्य संतति आदि से परिपूर्ण और सुखी रहना। सब तरह से बढ़ना और सम्पन्न होना। २. कली का सम्पुट इस प्रकार खुलना कि उसकी पंखुड़ियाँ चारों ओर से पूरे फल का रूप धारण कर लें। ३. लाक्षणिक रूप में बहुत अधिक आनन्द या उल्लास से युक्त होना। बहुत प्रसन्न या मगन होना। मुहावरा—फूले अंग न समाना=आनन्द का इतना अधिक उद्देग होना कि बिना प्रकट किये रहा न जाय। अत्यन्त आनंदित होना। फूले फिरना या फूले-फूले फिरना=बहुत अधिक आनंद, उत्साह या उमंग से भरकर निश्चिन्त भाव से उधर-उधर घूमना। उदाहरण—स्वतंत्र सिरताज फिरत कूकत कै फूले।—दीनदयाल गिरि। ४. लाक्षणिक रूप में, मन में विशेष अभिमान या गर्व का अनुभव करना। जैसे—अपनी प्रशंसा सुनकर वह फूल जाता है। ५. किसी वस्तु के भीतरी अवकाश में किसी चीज के भर जाने के कारण उसका ऊपरी या बाहरी तल बहुत अधिक उभर आना या ऊँचा हो जाना। जैसे—(क) हवा भरने से गेंद फूलना। (ख) वायु के विकार होना या बहुत अधिक भोजन करने पर पेट फूलना। ६. किसी बात-व्यवहार से अभिमान रोष आदि के कारण किसी से रूठना या कुछ समय के लिए विरक्त होना। जैसे—हम उनके यहाँ नहीं जायँगें, आज-कल वे हमसे फूल हुए हैं। ७. आघात, आंतरिक विकार आदि के कारण शरीर के किसी अंग का कुछ उभर आना। सूजना। जैसे—इतने जोर का तमाचा लगा कि गाल फूल गया है। ८. किसी व्यक्ति का असाधारण रूप से मोटा या स्थूल होना। जैसे—उसका शरीर बादी से फूला है।
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फूल-पत्ती  : स्त्री० [हिं०] १. वे फूल-पत्ते जो देवी-देवताओं को चढ़ाने जाते हैं। २. वनस्पति-विज्ञान में किसी फूल का प्रत्येक दल अथवा पत्ती के आकार का अंग। (फ्लॉवर लीफ)।
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फूल-पान  : वि० [हिं० फूल+पान] (फूल या पान के समान) बहुत ही कोमल। नाजुक।
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फूल-बत्ती  : स्त्री० [हिं०] देवताओं की आरती आदि के लिए बनायी जानेवाली रूई की एक प्रकार की बत्ती जिसके नीचे का भाग खिले हुए फूल की तरह गोलाकार फैला हुआ होता है।
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फूल-बाग  : पुं० [हिं० +अ०] वह छोटा बागीचा जिसमें केवल फूलों के पौधें हों।
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फूल-बिरंज  : पुं० [हिं० फूल+बिरंज] एक प्रकार का बढ़िया धान।
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फूल-भाँग  : स्त्री० [हिं० फूल+भाँग] हिमालय में होनेवाली एक प्रकार की भाँग। फुलंगो।
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फूलमती  : स्त्री० [हिं० फूल+मती (प्रत्यय)] एक देवी जो शीतला रोग की अधिष्ठात्री मानी जाती है।
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फूल-वाला  : वि० [हिं० फूल+वाला (प्रत्यय)] १. फूलों से युक्त। २. फूलों अर्थात् बेल-बूटों का काम जिस पर हुआ हो। पुं० [स्त्री० फूलवाली] माली, विशेषतः फूल बेचनेवाला व्यक्ति।
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फूल-शराब  : स्त्री० दे० ‘सुरासार’।
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फूल-सँपेल  : वि० [हिं० फूल+साँप] बैल या गाय जिसका एक सींग दाहिनी ओर और दूसरा बाईं ओर गया हो।
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फूल-सुँघनी  : स्त्री०=फूल-सुँघनी।
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फूला  : पुं० [हिं० फूलना] १. भूने हुए अनाज की खील। २. पक्षियों को होनेवाला एक प्रकार का रोग। ३. गन्ने का रस पकाने का बड़ा कड़ाहा। ४. फूली (आँख का रोग)।
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फूली  : स्त्री० [हिं० फूल] १. सफेद दाग जो आँख की पुतली पर पड़ जाता है जिससे दृष्टि में बाधा होती है। २. एक प्रकार की सज्जी। ३. एक प्रकार की रूई।
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