| शब्द का अर्थ | 
					
				| भीड़					 : | स्त्री० [हिं० भिड़ना] १. किसी स्थान पर एक साथ तथा बिना किसी क्रम से जुटे लोगों की संज्ञा। क्रि० प्र०—लगना।—लगाना। मुहावरा—भीड़ छँटना=भीड़ में आये हुए लोगों का धीरे-धीरे इधर-उधर होना जिससे भीड़ कम हो। २. किसी चीज या बात की अधिकता। जैसे—काम की भीड़। आपत्ति। मुसीबत। संकट। उदाहरण—(क) जुग जुग भीर (भीड़) हरी संतन की।—मीराँ। (ख) तुम हरो जन की भीर (भीड़)।—मीराँ। क्रि० प्र०—कटना।—काटना।—पड़ना। ३. आगा-पीछा। असमंजस। उदाहरण—पर घर घालक लाज न भीरा।—तुलसी। | 
			
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				| भीड़न					 : | स्त्री० [हिं० भीड़ना] १. भीड़ने की क्रिया या भाव। २. मलने, लगाने या भरने की क्रिया। | 
			
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				| भीड़ना					 : | स० [हिं० भिड़ाना] १. मिलाना। २. लगाना। ३. मलना। ४. (दरवाजा) बन्द करना। ५. दे० ‘भिड़ाना’। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| भीड़-भड़क्का					 : | पुं० =भीड़-भाड़। | 
			
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				| भीड़-भाड़					 : | स्त्री० [हिं० भीड़+भाड़ अनु०] एक स्थान पर होनेवाला बहुत से मनुष्यों का जमाव। जन-समूह। भीड़। | 
			
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				| भीड़ा					 : | वि० [हिं० भिड़ना] [स्त्री० भीड़ी] सँकरा। तंग जैसे—भीड़ी गली। स्त्री०=भीड़। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| भीड़ी					 : | स्त्री०=भिड़ी। स्त्री०=भीड़। वि० भीड़ा की स्त्री रूप। | 
			
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