शब्द का अर्थ
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रण :
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पुं० [सं०√रण् (शब्द)+अप्] १. लड़ाई। युद्ध। जंग। पद—रण-क्षेत्र, रण-भूमि, रण-स्थल। २. रमण। ३. आवाज। शब्द। ४. गति। चाल। ५. दुंबा नामक भेड़। पुं० [सं० अरण्य] जंगल। वन। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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रण-क्षेत्र :
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पुं० [सं० ष० त०] युद्धभूमि। लड़ाई का मैदान। |
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रण-चंडी :
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स्त्री० [सं० मध्य० स०] रण-क्षेत्र में मार-काट करनेवाली देवी। |
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रण-छोड़ :
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पुं० [सं० रण+हिं० छोड़ना] श्रीकृष्ण का एक नाम जो इस कारण पड़ा था कि वे जरासन्ध के आक्रमण के समय व्रज छोड़कर द्वारका चले गये थे। |
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रणखेत :
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पुं० =रणक्षेत्र। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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रणत्कार :
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पुं० [सं०√रण्+शतृ=रणत्-कार, ष० त०] १. झनझनाहट। २. गुंजन (मधु-मक्खी का)। |
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रणधीर :
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पुं० [सं० स० त०] युद्ध में धैर्यपूर्वक लड़नेवाला अर्थात् बहुत बड़ा योद्धा। |
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रणन :
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पुं० [सं०√रण्+ल्युट-अन] शब्द करना। बजना। |
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रण-नाद :
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पुं० [ष० त०] युद्ध के समय होनेवाली योद्धाओं की गरज। |
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रण-प्रिय :
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पुं० [ब० स०] १. विष्णु २. बाज पक्षी। ३. उशीर। खस। |
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रण-भूमि :
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स्त्री० [ष० त०] लड़ाई का मैदान। |
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रणमंडा :
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स्त्री० [सं० रण-मंडन] पृथ्वी (डि०) |
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रण-मत्त :
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पुं० [स० त०] हाथी। वि० जो युद्ध करने के लिए उतावला हो रहा हो। |
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रण-रंग :
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पुं० [सं० रण-रण+कन्] १. व्यग्रता। घबराहट। व्याकुलता। २. पछतावा। पश्चात्ताप। |
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रण-रणक :
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पुं० [सं० रणरण+कन्] १. कामदेव का एक नाम। २. प्रबल कामना। ३. घबराहट। विकलता। |
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रणरोज (स्) :
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पुं० [सं० अरण्य-रोदन] वन में (जहाँ कोई सुननेवाला न हो) बैठकर व्यर्थ रोना जिसका कोई फल नहीं होता। अरण्य-रोदन। |
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रण-लक्ष्मी :
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स्त्री० [मध्य० स०] युद्ध में विजय दिलानेवाली एक देवी। विजय-लक्ष्मी। |
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रण-वाद्य :
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पुं० [ष० त०] युद्ध का बाजा। |
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रण-वीर :
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पुं० [स० त०] बहुत बड़ा योद्धा। |
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रण-वृत्ति :
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पुं० [ब० स०] योद्धा। वह जिसकी वृत्ति लड़ते रहने की हो। सैनिक। योद्धा। |
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रणसिंघा :
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पुं० [सं० रण+हिं० सिंघा] मध्ययुग में, युद्ध के समय बजाया जानेवाला नरसिंघा या तुरही नाम का बाजा। |
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रणसिंहा :
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पुं० =रणसिंघा। |
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रण-स्तंभ :
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पुं० [ष० त०] वह स्तंभ जो किसी रण में विजय प्राप्त करने के स्मारक में बना हो। विजय का स्मारक। |
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रण-स्थल :
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पुं० [ष० त०] लड़ाई का मैदान। |
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रण-स्वामी (मिन्) :
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पुं० [ष० त०] १. युद्ध का प्रधान संचालक या सेनापति। २. शिव। महादेव। |
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रण-हंस :
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पुं० [मध्य० स०] एक प्रकार का वर्णवृत्त का नाम जिसके प्रत्येक चरण में सगण, जगण, भगण और रगण होते हैं। |
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रणांगण :
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पुं० [रण-अंगण, ष० त०] लड़ाई का मैदान। |
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रणाजिर :
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पुं० [रण-अजिर, ष० त०] लड़ाई का मैदान। |
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रणि :
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स्त्री० [सं० रजनी] रात्रि। रात। (डिं०) (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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रणेचर :
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पुं० [सं० रणे√चर् (गति)+अच्, अलुक, स०] विष्णु। |
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रणेश :
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पुं० [रण-ईश, ष० त०] १. शिव। विष्णु। |
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रणोत्कट :
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पुं० [रण-उत्कट, स०त०] कार्तिकेय का एक अनुचर। वि० =रणोन्मत्त। |
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