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शब्द का अर्थ

लेंड़  : पुं० [सं० लेण्ड] मल की बँधी हुई कड़ी बत्ती। बँधा हुआ और सूखा मल (शौच के समय का)।
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लेंड़ी  : स्त्री० [हि० लेंड़] १. मल की बँधी हुई कड़ी छोटी बत्ती। २. दे० ‘मेंगनी’।
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लेंडुआ  : पुं० [देश] बच्चों का मतवाला। (देखें) नाम का खिलौना।
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लेंस  : पुं० [अं०] शीशे का ऐसा तल जो प्रकाश की किरणों को एकत्र या केन्द्रीभूत करता हो। जैसे—चश्मे का लेंस, फोटोग्राफी का लेंस।
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लेंहड़  : स्त्री० =लेहड़ा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लेंहड़ा  : पुं० [देश] जंगली जानवरों का झुंड। विशेषतः शेरों का झुंड।
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ले  : अव्य० [सं० लग्न, हिं० लग, लगि] तक। पर्यंन्त। अव्य० [हि० लेना] संबोधन के रूप में प्रयुक्त होनेवाला शब्द जिसका अर्थ होता है—(क) अच्छा ऐसा ही सही। जैसे—ले मै ही यहाँ से चला जाता हूँ। (ख) अब समझ में आया न। जैसे—ले कैसा फल मिला।
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लेइ  : अव्य० [सं० लग्न, हिं० लगि] तक। पर्यंन्त।
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लेई  : स्त्री० [सं० लेहिन, लेही या लेह्य] १. पानी में घुले हुए किसी चूर्ण को गाढा करके बनाया हुआ लसीला पदार्थ। जैसे—अवलेह, लपसी आदि। २. घुला हुआ आठा या मैदा जो आग पर पकाकर गाढ़ा और लसदार बना लिया जाता है और कागज आदि चिपकाने के काम आता है। ३. गाढ़ा घोला हुआ चूना और बरी या बालू और सीमेंट जो इमारत बनाते समय ईंटों आदि की जोड़ाई के काम आता है। गारा।
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लेई-पूँजी  : स्त्री० [हिं० स०] सारी धन संपति।
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लेओ  : स० हि० लेना क्रिया का विधि-वाला रूप। लो। उदाहरण—चूर्ण करो। गत संस्कारों को लेओ प्राण उबार।—पन्त।
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लेक्चर  : पुं० [अ०] व्याख्यान। वक्तृता। क्रि० प्र०—देना। मुहावरा—लेक्चर झाड़ना=लगातार कुछ समय तक बढ़-बढ़कर उपदेशात्मक बातें कहते चलना।
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लेक्चरबाज  : पुं० [अं+फा०] [भाव० लेकचरबाजी] १. उपदेशात्मक बातें दूसरों से कहते रहनेवाला व्यक्ति। २. प्रायः व्याख्यान देते रहनेवाला।
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लेक्चरबाजी  : स्त्री० [अं० लेक्चर+फा० बाजी] खूब या प्रायः लेक्चर देने की क्रिया (व्यंग)।
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लेक्चरर  : पुं० [अं०] लेक्चर या व्याख्यान देनेवाला। २. विश्व-विद्यालय का उप-प्राध्यापक।
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लेख  : पुं० [सं०√लिख् (लिखना)+घञ्] १. लिखे हुए अक्षर। २. लिखावट। ३. लिखी हुई बात, विचार या विषय। ४. दैनिक, मासिक आदि पत्रों में छपनेवाला सामयिक निबंध। जैसे—आज के अखबार में राजा जी का भी लेख है। ५. कोई ऐसी लिखी हुई आज्ञा या आदेश जो नियम या विधान के अनुसार किसी बड़े अधिकारी ने प्रचलित किया हो। (रिट्) ६. ताम्र-पत्रों, शिला-लेखों सिक्कों आदि में लिखी हुई बातें या विवरण। (इनस्क्रिप्सन) ७. लेखा। हिसाब। वि० =लेख्य। पुं० [सं० लेखर्षभ] देवता। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लेखक  : पुं० [सं०√लिख्+ण्वुलक—अक] [स्त्री० लेखिका] १. वह जो लिखता हो। लेखन कार्य करनेवाला। जैसे—कहानी लेखक, समाचार लेखक। २. वह जो मनोरंजन या जीविका के लिए कहानियाँ उपन्यास, लेख साहित्यिक ग्रन्थ आदि लिखता हो। साहित्य-जीवी। ३. किसी गद्य या कृति का रचयिता।
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लेखन  : पुं० [सं०√लिख्+ल्युट—अन] [वि० लेखनीय, लेख्य] १. अक्षर आदि लिखने का कार्य। अक्षर-विन्यास। अक्षर बनाना। २. अक्षर आदि लिखने की विद्या या कला। ३. तूलिका से चित्र आदि अंकित करने की क्रिया या विद्या। चित्रांकन। ४. किसी रूप में किसी प्रकार के चिन्ह आदि अंकित करना। जैसे—नख-लेखन=नाखूनों से खरोचकर किसी प्रकार की आकृति या चिन्ह बनाना। ५. हिसाब करना। लेखा लगाना। कूतना। ६. कै या वमन करना। छर्दन। ७. ताड़-पत्र और भोजपत्र जिन पर प्राचीनकाल में लेख आदि लिखे जाते थे। ८. वैद्यक में वह क्रिया जिससे शरीर के अन्दर की धातुएँ तथा मल या विकार या तो पतले करके शरीर के बाहर निकाले जाते या अन्दर ही अन्दर सुखाये जाते हैं। ९. उक्त प्रकार की क्रियाएँ करनेवाली दवा या ओषधि। १॰. वैद्यक के शस्त्र द्वारा कोई दूषित अंग काटना या छेदना। चीर-फाड़। ११. खाँसी नामक रोग।
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लेखन-वस्ति  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] वैद्यक में पिचकारी की सहायता से शरीर के अन्दर की धातुओं और वातादि दोषों को पतला करने की क्रिया।
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लेखन-सामग्री  : स्त्री० [सं० ष० त०] लिखने के काम आनेवाली चीजें या सामग्री। जैसे—कागज, कलम, स्याही आदि (स्टेशनरी)।
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लेखनहार  : वि० [हि० लेखन+हिं० हार (प्रत्यय)] लिखनेवाला। उदाहरण—आपुहि कागद आपु मसि आपुहि लेखनहार।—कबीर।
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लेखना  : स० [सं० लेखन] १. अक्षर, चित्र या चिन्ह बनाना। लिखना। २. लेखा या हिसाब करना। गणित की क्रिया करना। ३. किसी को गिनती के योग्य या महत्त्वपूर्ण समझना। ४. मन ही मन कोई बात सोचना-समझना या निश्चित करना। ५. प्राप्त या भोग करना। उदाहरण—स्वर्ग का लाभ यहीं मै लेखूँ।—मैथिलीशरण गुप्त।
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लेखनिक  : पुं० [सं० लेखन+ठन्-इक] १. लेखक। २. पत्रवाहक। ३. वह निरक्षर या असमर्थ जो लेख आदि पर स्वयं हस्ताक्षर न करके दूसरों से उन पर अपना नाम लिखवाता हो।
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लेखनिका  : स्त्री० [सं० लेखनिक+टाप्]=लेखनी।
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लेखनी  : स्त्री० [सं० लेखन+ङीष्] वह वस्तु जिससे लिखे या अक्षर बनावें। वर्ण तूलिका। कलम। मुहावरा—लेखनी उठाना=कुछ लिखना आरम्भ करना। लेखनी चलाना=लिखना।
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लेखनीय  : वि० [सं०√लिख् (लिखना)+अनीयर्] लिखे जाने के योग्य।
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लेख-पत्र  : पुं० [सं० ष० त०] १. लिखित पत्र। लिखा हुआ कागज। २. दस्तावेज। लेख्य।
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लेखपाल  : पुं० [सं० लेख√पाल् (रक्षा)+णिच्+अण्०] वह सरकारी कर्मचारी जो गाँवों के खेतों और उनकी उपज, लगान आदि का लेखा रखता हो। (पुराने पटवारियों की नई संज्ञा)।
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लेख-प्रणाली  : स्त्री० [सं० ष० त०] लिखने की शैली या ढंग।
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लेखर्षभ  : पुं० [सं० लेख-ऋषभ, स० त०] देवताओं में श्रेष्ठ, इन्द्र।
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लेख-शैली  : स्त्री० [सं० ष० त०] लिखने की वह विशिष्ट शैली (देखें) जो लेखक की विशेषताओं से युक्त होती है।
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लेखहार  : पुं० [सं० लेख√हृ (हरण)+अण्] चिट्ठी ले जानेवाला। पत्रवाहक।
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लेखा  : पुं० [सं० लेख, हिं० लिखना] १. वह लेख जो आय-व्यय की धन-राशि आदि से संबंध रखनेवाले अंकों या संख्याओं से युक्त होता है। हिसाब (एकाउन्ट) २. इस बात का विचार कि कुल चीजें कितनी और किस अनुपात में हैं। जैसे—कितनी चीजें आई है, उन सब का लेखा तैयार करो। क्रि० प्र०—लगाना।—लिखना। मुहावरा—(किसी का) लेखा चुकाना=हिसाब करने पर जो बाकी निकलता हो, वह देकर चुकता करना। लेखा डालना=बही आदि में कोई नया खाता खोलना या बढ़ाना। नया खाता डालना। लेखा डेवढ़ करना= (क) हिसाब-चुकता करना। देन चुकाना। (ख) जमा या खर्च की मदें बराबर करके हिसाब पूरा करना। (ग) चौपट या नष्ट करना। (व्यंग्य) ३. राशियों, संख्याओं आदि के संबंध में किया जानेवाला अनुमान। कूत। ४. किसी के महत्त्व मान योग्यता आदि के संबंध में मन में किया जानेवाला विचार। मुहावरा—(किसी के) लेखे=किसी के ध्यान, विचार या समक्ष के अनुसार। जैसे—हमारे लेख उसका आना और न आना दोनों बराबर है। किसी लेखे=किसी ढंग, प्रकार या साधन से। किसी तरह। उदाहरण—सब कर मरनु बना एहि लेखे।—तुलसी। ५. जीवन-निर्वाह व्यवहार आदि के संबंध रखनेवाली दशा या स्थिति। जैसे—ऊँचे पर चढ़ देखा घर घर एकहि लेखा (कहा०)। स्त्री० [सं०√लिख् (लिखना)+अ+टाप्] १. लिपि। लिखावट। २. रेखा। जैसे—चन्द्र लेखा।
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लेखा-कर्म  : पुं० [सं० ष० त०] आय, व्यय आदि का हिसाब लिखने या रखने का काम (एकाउन्टेसी)।
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लेखाकार  : पुं० [सं०] वह जो किसी महाजनी, कोठी संस्था आदि के आय-व्यय या लेन-देन का लेखा लिखता हो। (एकाउन्टेन्ट)
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लेखागार  : पुं० [सं० लेखा-आगार] वह स्थान विशेषतः किसी राज्य या सरकार का वह स्थान जहाँ शासन तथा सार्वजनिक हित से संबंध रखनेवाले सब प्रकार के लेख्य इसलिए सुरक्षित रखे जाते हैं कि आवश्यकता पड़ने पर प्रमाण या साक्ष्य के रूप में उपस्थित किये जा सकें। (आकिव्ज)
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लेखा-चित्र  : पुं० [सं० मध्य० स०] अनेक रेखाओंवाला वह बड़ा चौकोर अंकन जो किसी घटना या व्यापार में होते रहनेवाले उतार-चढ़ाव या परिवर्तन अथवा कुछ तथ्यों के पारस्परिक संबंध का सूचक होता है। (ग्राफ) जैसे—जन्म-मरण, तेजी-मंदी, आयात-निर्यात आदि का लेखा चित्र।
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लेखाध्यक्ष  : पुं० [सं० लेखा-अध्यक्ष, ष० त०] लेखाकार।
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लेखा-परीक्षक  : पुं० [सं० ष० त०] वह जो किसी विषय व्यक्ति संस्था आदि के लेख या हिसाब-किताब को जाँचता हो (आडीटर)।
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लेखा-परीक्षण  : पुं० [सं०] किसी प्रकार के कार-बार लेन-देन या आय-व्यय आदि की जाँच करने की क्रिया या भाव। (आंडिटिंग)
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लेखापाल  : पुं० [सं० लेखा√पाल् (रखना)+णिच्+अण्] वह जो आय-व्यय आदि लिखने का काम करता हो। बही-खाते आदि लिखनेवाला कर्मचारी। (एकाउन्टेन्ट)
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लेखा-पुस्तिका  : स्त्री० [सं०] वह पुस्तिका जो बैंक की ओर से उन लोगो को मिलती है जिनके रुपए बैंक में जमा होते हैं और जिसमें उनके खाते के लेन-देन की सब रकमें लिखी रहती हैं। (पासबुक) २. दे० ‘लेखा-बही’।
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लेखा-बही  : स्त्री० [हिं० लेखा+बही] वह बही जिसमें रोकड़ के लेन-देन का ब्यौरा लिखा रहता है। (एकाउन्ट बुक)
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लेखा-शास्त्र  : पुं० [सं० ष० त०] वह विद्या या शास्त्र जिसमें, इस बात का विवेचन होता है कि सब तरह के लेखे या हिसाब किस तरह से रखे या लिखे जाते हैं (एकाउन्टेन्सी)।
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लेखिका  : स्त्री० [सं० लेखक+टाप्, इत्व] स्त्री लेखक।
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लेखित  : भू० कृ० [सं०√लिख् (लिखना)+णिच्+क्त] लिखवाया हुआ।
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लेखी (खिन्)  : वि० [सं० लेख+इनि] लिखने की क्रिया करनेवाला। जैसे—चित्रकार, लेखक आदि। स्त्री० [सं० लेख] १. खाते में लिखे जाने की क्रिया या भाव। इंदराज। २. खाते में लिखी जाने-वाली रकम या मद। (एन्ट्री)
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लेखे  : अव्य० दे० ‘लेखा’ के अन्तर्गत मुहा०।
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लेख्य  : वि० [सं०√लिख् (लिखना)+ण्यत्] १. लिखे जाने के योग्य। जो लिखा जा सके। २. जो लिखा जाने को हो। ३. जो लेख के रूप में और फलतः प्रामाणिक हो। दस्तावेजी। (डाक्यूमेन्टरी) पुं० १. लिखी हुई को बात या विषय। लेख। २. विविध क्षेत्रों में, कोई ऐसा लेख जो प्रमाण या साध्य के रूप में काम आता या आ सकता हो। दस्तावेज। (डाक्यूमेन्ट) ३. चित्रकला में, वह रेखाचित्र जो कोयले, खड़िया, रंग आदि की सहायता से अंकित होता है और जिसमें किसी घटना, दृश्य आदि के संबंध में चित्रकार के आन्तरिक भाव व्यक्त होते हैं। (ड्राइंग)
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लेन  : स्त्री०=लेजुरी (रस्सी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लेज़म  : स्त्री० [फा०] १. कमान जिससे धनुष चलाने का अभ्यास किया जाता है। २. वह कमान जिसमें लोहे की जंजीर और कटोरियाँ रहती हैं और जिससे पहलवान लोग कसरत करते हैं। क्रि० प्र०—भाँजना।—हिलाना।
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लेजरंग  : पुं० [लेज ?+हिं० रंग] मरकट या पन्ने की एक रंगत जो उसका गुण मानी जाती है।
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लेजुर  : स्त्री० [सं० रज्जु, मागधी प्रा० लेज्जु] १. रस्सी। डोरी। २. कूएँ से पानी खींचने की डोरी या रस्सी।
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लेजुरा  : पुं० [देश०] एक प्रकार का अहरना धान जिसका चावल बहुत दिनों तक रहता है। पुं०=बड़ी लेजुरी (रस्सी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लेजुरी  : स्त्री०=लेजुर।
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लेट  : पुं० [देश०] १. सुरखी, कंकड़, और चने अथवा कंकड़ तथा सीमेंट का वह सम्मिश्रण, जो फर्श बनाने के लिए जमीन पर बिछाया जाता है। क्रि० प्र०—डालना।—पड़ना। वि० [अ०] जो देर से आया हो अथवा जिसने आने में देर लगाई हो। जैसे—आज गाड़ी लेट है।
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लेटना  : अ० [सं० लुंठन, हिं० लोटना] १. विश्राम करने के लिए हाथ-पैर और सारा शरीर लंबाई के बल पसार जमीन या किसी सतह पर टिका कर पड़ रहना। जमीन या बिस्तरे से पीठ लगाकर बदन की सारी लंबाई उस पर ठहराना। पौढ़ना। जैसे—जाकर चारपाई पर लेट रहो, तबीयत ठीक हो जाएगी। संयो० क्रि०—जाना।—रहना। २. खड़े बल में रहनेवाली चीज या बगल की ओर झुककर ज़मीन पर गिरना या जमीन से सटना। जैसे—आँधी में पेड़ों या फसल का लेटना। संयो० क्रि०—जाना। ३. किसी पदार्थ का ठीक दशा में न रहकर बिगड़ जाना या खराब होना। ४. मर जाना। (बाजारू)
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लेट-पेट  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार की चाय।
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लेटर  : पुं० [अं०] १. अक्षर। २. चिट्ठी।
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लेटर-बक्स  : पुं० [अं० लेटर-बक्स] १. डाकखाने का वह संदूक जिसमें कहीं भेजने के लिए लोग चिट्ठियाँ डालते हैं। २. प्रायः घरों के दरवाजों पर लगी हुई वह पेटी या संदूक जिसमें डाकिये या और लोग आकर मालिक माकान की चिट्ठियाँ छोड़ या डाल जाते हैं। पत्र-पेटी।
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लेटाना  : स० [हिं० लेटना का प्रे०] १. ऐसी क्रिया करना जिससे कोई लेट जाय। २. खड़ी चीज को जमीन पर बेड़े बल में रखना या फैलाना।
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लेड  : पुं० [अ०] सीसा नामक धातु। पुं० [अं०] प्रायः दो अंगुल चौड़ी सीसे की ढली हुई पतली पटरी या पट्टी जो छापाखाने में अक्षरों की पंक्तियों के बीच में (अक्षरों की ऊपर नीचे होने से रोकने के लिए) लगाई जाती है।
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लेडी  : स्त्री० [अं०] १. भले घर की स्त्री। महिला। २. इंगलैंड में किसी लार्ड या सरकार की पत्नी के नाम से पहले लगनेवाली उपाधि। जैसे—लेटी मिन्टो।
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लेथो  : पुं०=लीथो।
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लेद  : पुं० [देश०] एक प्रकार के गीत जो बुन्देलखण्ड में माघ फागुन में गाये जाते हैं।
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लेदार  : पुं० [देश०] एक प्रकार की चिड़िया।
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लेदी  : स्त्री० [देश०] १. जलाशयों के किनारे रहनेवाली एक प्रकार की छोटी चिड़िया। २. घास का वह पूला जो हल के नीचे के भाग में इसलिए बाँध देते हैं कि कूँड़ अधिक चौड़ी न होने पावे।
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ले-दे  : स्त्री० [हिं० लेना+देना] १. लेने और देने की क्रिया या भाव। २. लेन-देन। २. सांसारिक काम-धन्धे और झगड़े-बखेड़े। उदाहरण—हर एक पड़ा है अपनी ले दे में।—बच्चन।
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लेन  : पुं० [हिं० लेना] १. लेने की क्रिया या भाव। पद—लेन-देन। २. वह धन जो किसी से लिया जाने को हो। पावना। लहना।
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लेनदार  : पुं० [हि० लेना+फा० दार (प्रत्यय)] १. वह जो अधिकारतः या न्यायतः किसी से अपना हक अथवा उसे दी हुई चीज ले सकता हो। २. वह जो किसी से उधार दिया हुआ धन पाने का अधिकारी हो। महाजन।
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लेन-देन  : पुं० [हि० लेना+देना] १. लेन और देन को व्यवहार। आदान-प्रदान। २. व्यापारिक और सामाजिक क्षेत्रों में किसी को कुछ देने या कुछ लेने का व्यवहार। जैसे—हमारा उनका लेन-देन बहुत दिनों से बन्द है। ३. लोगों को रुपये उधार देने और फिर उससे सूद सहित मूल धन लेने का व्यवसाय। महाजनी। जैसे—उनके यहाँ पुश्तों से लेन-देन चलता है।
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लेना  : स० [सं० लभन, पुं० हि० लहना] १. जो वस्तु कोई दे रहा हो, उसे ग्रहण या प्राप्त करना। किसी की दी हुई चीज अपने अधिकार या हाथ में लेना। जैसे—किसी से दान या धन लेना। पद—लेना एक न देना दो=कोई प्रयोजन संबंध या सरोकार नहीं है। कुछ गरज या वास्ता नहीं है। जैसे—लेना एक न देना दो, हम क्यों व्यर्थ इस प्रपंच में पड़ने जाएँ। मुहावार—लेने के देने पड़ना=प्राप्ति, लाभ आदि की आशा से कोई काम करने पर उलटे पास का कुछ खोना या गँवाना अथवा कष्ट या संकट में पड़ना। जैसे—वह चले तो थे चोरी पकड़ने पर उन्हें उलटे लेने के देने पड़े। २. कोई चीज किसी प्रकार या किसी रूप में अपने अधिकार या हाथ में करना। हस्तगत करना। जैसे—(क) बाजार से कपड़े (या किताबे) मोल लेना। (ख) किराये पर मकान लेना। ३. कोई चीज अपने अंग पर धारण करना या किसी रूप में रखना। जैसे—(क) हाथ में घडी या छाता लेना। (ख) कन्धे पर या गोद में बच्चा लेना। मुहावरा—ले लेना=अधिकृत कर लेना। बल प्रयोग से प्राप्त कर लेना। जैसे—(क) थोड़े ही दिनों में अंग्रजों ने सारा पंजाब ले लिया। (ख) डाकुओं ने उसका सारा धन ले लिया। ४. उधार के रूप में या माँगकर प्राप्त करना। जैसे—महाजनों से रुपये ले लेकर काम चलाना। ५. खाने-पीने की चीज मुँह में रखकर गले के नीचे या पेट में उतारना। सेवन करना। जैसे—रोगी का दवा या दूध लेना ६. किसी प्रकार का उत्तरदायित्व प्रतिज्ञा या भार अंगीकृत करना। निर्वाह वहन आदि के लिए उत्तरदायी बनना या कृत संकल्प होना। जैसे—क) किसी काम या उत्तरदायित्व या पद का भार लेना। (ख) व्रत, शपथ या संन्यास लेना। मुहावरा—(अपने आपको) लिये दिये रहना=अपने आपको इस प्रकार संभालकर रखना कि कोई अनुचित या अशिष्टतापूर्ण आचरण या व्यवहार न होने पावे। (अपने) ऊपर लेना=निर्वाह वहन आदि का भार ग्रहण करना। जैसे—उसका सारा ऋण (या भार) मैने अपने ऊपर ले लिया है। ७. अमूर्त, बातों विचारों, विषयों आदि के संबंध में किसी रूप में गृहीत या प्राप्त करना। जैसे—(क) किसी से परामर्श या सलाह लेना। (ख) किसी के मन की थाह लेना। (ग) किसी का आर्शीवाद या गालियां लेना। मुहावरा—ले-देकर= (क) सब कुछ हो जाने पर अंत में। जैसे—ले-देकर यह बदनामी ही हाथ आई। ले दे करना=(क) कहा सुनी, तकरार या हुज्जत करना। जैसे—भठियारों की तरह यह ले-दे करना ठीक नहीं है। (ख) किसी कार्य की पूर्ति या सिद्धि के लिए बहुत परिश्रम या प्रयत्न करना। जैसे—इतनी ले-दे करने पर तब कहीं दिन भर में यह काम पूरा हुआ है। ८. भागनेवाले का पीछा करते हुए उसके पास पहुँचकर उसे पकड़ना जैसे—(क) इतने में सिपाहियों ने वहाँ पहुँचकर उसे पकड़ लिया। (ख) लेना, जाने या पावे। ९. किसी काम या बात की सिद्धि करते हुए उसके संबंध में कोई क्रिया करना। (कुछ विशिष्ट संयो० कि० के साथ प्रुयक्त) जैसे—ले चलना, ले जाना, ले भागना, ले रखना, ले लेना आदि। मुहावरा—ले उड़ना=(क) कहीं से कुछ लेकर इस प्रकार अलग या दूर होना कि कोई समझ न पावे। जैसे—कही से कोई बात सुन पाई, और ले उड़े। (ख) कहीं से कुछ लेकर उसे अपना बताते या बनाते हुए आंडबरपूर्वक अपना पौरुष या योग्यता प्रकट करना। ले डालना=खराब, चौपट या नष्ट करना। जैसे—(क) तुमने यह किताब भी ले डाली अर्थात् नष्ट कर दी। (ख) इस गोटे ने तो साड़ी की सारी शोभा ही ले डाली अर्थात् बिगाड़ दी। ले डूबना या ले बीतना=स्वयं या समाप्त करना। जैसे—उनकी यह चालाकी ही उन्हें ले डूबेगी या ले बीतेगी। (कोई काम या बात) ले बैठना=अच्छा काम या बात छोड़कर किसी तुच्छ या साधारण काम या बात मे लग जाना। जैसे—तुम भी यह कहाँ का झगड़ा (या पचड़ा) ले बैठे। (किसी को या कोई चीज अपने साथ) ले बैठना=किसी काम, चीज या बात का अपने दोष, भार आदि के कारण स्वयं नष्ट होते हुए दूसरे को भी अपने साथ नष्ट करना। जैसे—(क) यह छज्जा सारा मकान ले बैठेगा। (ख) यह दुर्व्यसन उनका सारा कार-बार ले बैठेगा। ले लेना=उद्देश्य की सिद्धि अथवा कार्य की समाप्ति के बहुत निकट तक पहुँच जाना। जैसे—बहुत सा काम हो चुका है अब ले ही लिया है, अर्थात् समाप्ति में अधिक विलंब नहीं है। १॰. किसी प्रकार या किसी रूप में एकत्र या प्राप्त करना। जैसे—(क) बगीचे से फूल लेना। (ख) लोगों से चन्दा लेना। (ग) कहीं से लड़का गोद लेना। मुहावरा—ले पालना=कन्या या पुत्र के रूप में अपने पास रखकर पालन-पोषण करना। ११. किसी वस्तु या व्यक्ति का ठीक और पूरा उपभोग करना अथवा उसे काम में प्रवृत्त करना। जैसे—(क) यह काम बहुत परिश्रम लेता है। (ख) उसे नौकरों से काम लेना नहीं आता। १२. प्रतियोगिता होड़ आदि में विजयी या सफल होना। जैसे—किसी से बाजी लेना या ले जाना। १३. कुछ विशिष्ट इंद्रियों के संबंध में किसी बात या विषय का ग्रहण करना। जैसे—अपने मन में किसी देवता या फूल का नाम लो। मुहावरा—(कोई बात) कान में लेना=सुनना (क्व०) १४. अतिथि का सत्कार या स्वागत करने के लिए आगे बढ़कर उससे मिलना। अगवानी या अभ्यर्थना करना। जैसे—उन्हें लेने के लिए बहुत से लोग स्टेशन पहुँचे थे। १५. किसी का उपहास करते हुए उसे लज्जित करना और तुच्छ या हीन सिद्ध करना। मुहावरा—(किसी को) आड़ें हाथों लेना=बहुत अधिक उपहास या भर्त्सना करते हुए निरुतर करना। (किसी का) लिया जाना=उपहासास्पद और लज्जाजनक स्थिति में लाया जाना। जैसे—आज वह वहाँ अच्छी तरह लिया गया। १६. स्त्री के साथ मैथुन या संभोग करना (बाजारू) मुहावरा—(किसी का) लिया जाना=मैथुन या संभोग की स्थिति में लाया जाना। (किसी को) ले पड़ना=किसी को अपने साथ लेटाकर उससे संभोग करना। विशेष—रखना, लगाना आदि की तरह लेना का भी बहुत सी क्रियाओं के साथ संयो० क्रि० के रूप में प्रयोग होता है और ऐसे अवसरों पर य़ह प्रायः उस क्रिया की पूर्ति या समाप्ति का सूचक होता है। जैसे—उठा लेना, कह लेना, खा लेना, सुन लेना आदि। कुछ अवस्थाओं में यह इस बात का भी सूचक होता है कि कर्ता कोई क्रिया बहुत ही कठिनता से जैसे—जैसे अथवा भद्दे या बहुत ही साधारण रूप में कोई क्रिया पूरी करने में समर्थ होता है। जैसे—(क) वह भी टूटी-फूटी हिन्दी पढ़ या बोल लेता है। (ख) मैं भी कुछ कुछ संस्कृत समझ लेता हूँ। (ग) रोगी अब सौ दो सौ कदम चल लेता है।
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लेना-देना  : पुं० [हि०] १. लेने और देने की क्रिया या भाव। लेन-देन। मुहावरा—लिये-दिये=साथ में लिये हुए। साथ लेकर। उदाहरण—विचरूँगी व्योम में भी उनको लिये-दिये।—मैथिलीशरण गुप्त। ले-देकर=सब बातों के हो चुकने पर। अंत में। जैसे—सब ले-देकर यही कलंक हाथ आया। (किसी से कुछ) लेना देना होना=कोई संबंध या सरोकार होना। जैसे—वह जहन्नुम में जाय, हमें उससे क्या लेना-देना है। २. वास्ता। संबंध। सरोकार। पद—ले-दे=आपस में होनेवाली कहा-सुनी या हुज्जत। जैसे—इतनी ले दे के बाद भी नतीजा कुछ न निकला।
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ले-निहार  : वि० =लेनदार।
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लेप  : पुं० [सं० लिप् (लीपना)+घञ्] १. गीली या घोली हुई वस्तु जो किसी दूसरी चीज पर पोती जाने को हो। २. इस प्रकार पोती हुई वस्तु की परत। क्रि० प्र०—चढ़ाना।—लगाना। ३. शरीर पर लगाया जानेवाला उबटन। बटना। ४. लगाव। संपर्क।
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लेपक  : वि० [सं०√लिप्+ण्वुल्-अक] लेप करने अर्थात् पोतने या लगानेवाला कारीगर। पुं० १. चूना छूनेवाला मिस्तरी। ३. साँचा बनानेवाला कारीगर।
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लेप-कामिनी  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] साँचे में ढली हुई स्त्री की मूर्ति।
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लेपकार  : वि० पुं० [सं० लेप√कृ (करना)+अण्]=लेपक।
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लेपन  : पुं० [सं०√लिप्+ल्युट—अन] [वि० लेपिता, लेप्य, लिप्त] १. लेप लगाना। २. चूना छूना।
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लेपना  : स० [सं० लेपन] पतले या गाढ़े घोल में उँगलियों कूची या पुचारा भिगोकर किसी अंग दीवार, छत, चूल्हे-चौके या और किसी पदार्थ पर इस प्रकार फेरना या लगाना कि उस पर उक्त घोल की एक परत चढ़ या जम जाय। लीपना।
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लेपनीय  : वि० [सं०√लिप्+अनीयर्] जो लेप के रूप में लगाया जा सके या लगाया जाने को हो।
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ले-पालक  : पुं० [हिं० लेना+पालना] १. किसी दूसरे का ऐसा लड़का जो अपने आप लड़के की तरह रखकर पाला-पोसा गया हो। २. गोद लिया हुआ लड़का। दत्तक पुत्र।
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लेपी (पिन्)  : वि० [सं०√लिप्+णिनि] लेप करनेवाला। पुं०=लिपिक।
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लेप्य  : वि० [सं०√लिप्+ण्यत्] १. जो लेप के रूप में लगाया जा सकता हो। २. जिस पर लेप लगाया जा सकता हो। ३. साँचे में ढाले-जाने के योग्य।
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लेप्य-नारी  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] १. वह स्त्री जिसने चंदन आदि का लेप लगाया हो। २. पत्थर या मिट्टी की बनी हुई स्त्री की प्रतिकृति या मूर्ति।
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लेप्टिनेट  : वि० [अं०] (अधिकारी) जो किसी दूसरे अधिकारी से पद में कुछ घटकर हो तथा विशिष्ट अवसरों पर उसका प्रतिनिधित्व करता हो और उसकी अनुपस्थिति में उसके सब अधिकार ग्रहण करता हो। जैसे—लेफ्टिनेंट-गवर्नर, लेफ्टिनेन्ट कर्नल। पुं० १. एक सैनिक पद जो कप्तान के पद से घटकर होता है। २. उक्त पद पर काम करनेवाला अधिकारी।
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लेबर  : पुं० [अं०] १. श्रम (बौद्धिक और शारीरिक) २. श्रमिक वर्ग। ३. श्रमिकों का संघटन या समुदाय।
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लेबर-यूनियन  : स्त्री० [अं०] मजदूरों या श्रमिकों का संघ या संस्था। श्रमिक।
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लेबरर  : पुं० [अं०] मजदूर। श्रमिक।
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लेबुल  : पुं० [अं०] किसी चीज पर लगी हुई वह परची जिस पर उस चीज का विवरण लिखा होता है।
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लेबोरेटरी  : स्त्री० [अं०] दे० ‘प्रयोगशाला’।
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लेमन-चूस  : पुं० [अं० लेमन-जूस] १. बच्चों के खाने के लिए चीनी की वह छोटी टिकियाँ जिनमें नींबू का सत्त आदि पड़ा रहता है। २. चूसी जानेवाली चीनी की गोली या टिकिया।
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लेमनेड  : पुं० [अं०] पाश्चात्य ढंग से बनाया हुआ नींबू का वह शरबत जो बोतलों में बन्द करके बाजारों में बेंचा जाता है। मीठा पानी।
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लेमर  : पुं० [अं०] बन्दरों से मिलता-जुलता अफ्रीका का एक प्रकार का जन्तु जो पेड़ों पर रहता है।
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लेमू  : पुं० [फा०] नींबू।
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लेरु, लेरुआ  : पुं० [?] गौ, बकरी, भेड़, भैस आदि का बच्चा।
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लेला  : पुं० [?] [स्त्री० लेली] १. बच्चा। २. शिशु। (पश्चिम)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लेलिह  : पुं० [सं०√लिह् (आस्वादन)+यङ्, लुक्, द्वित्व, लेलिह+अच्] १. जूँ। लीख। २. साँप।
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लेलिहान  : वि० [सं०√लिह्+यङ्, दित्व, लोलिह+शानच्] १. चखने या चाटनेवाला। २. ललचाया हुआ। पुं० १. बार-बार चाटना। २. लप-लप करना। लपलपाना। ३. शिव का एक नाम या रूप। ४. सर्प। साँप।
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लेलिह्य  : वि० [सं०√लिह्=यङ्, लुक्, द्वित्व, लेलिह=ण्यत्] १. बार-बार चाटे जाने के योग्य। २. जो लप लप करता या कर सकता हो।
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लेव  : पुं० [सं० लेप] १. दाल-भात आदि पकाने की डेगची या हाँड़ी के निचले बाहरी अंश पर किया जानेवाला मिट्टी का लेप। २. लेप। मुहावरा—लेव चढ़ाना=आदमी का मोटा होना। (व्यंग्य)
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लेवक  : पुं० [देश] एक प्रकार का वृक्ष जिसकी लकड़ी इमारत के काम आती है।
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लेवरना  : वि०=लेवारना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लेवा  : वि० [हिं० लेना] लेनेवाला। जैसे—नाम-लेवा, जान-लेवा। पुं० [सं० लेप्य, हिं० लेप] १. किसी चीज पर चढ़ाया जानेवाला मिट्टी आदि का लेप। लेव। २. गीली मि्टटी जो लेपने या लेवा लगाने के काम आती हो। गिलावा। क्रि० प्र०—लगाना। ३. अधिक पानी विशेषतः वर्षा के कारण खेत का गिलाव। ४. थन। ५. नाव की पेंदी पर का वह तख्ता जो सिरे से पतवार तक लगाया जाता है। पुं०=लेव। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लेवा-देई  : स्त्री०=लेन-देन। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लेवार  : पुं० [सं०] अग्रहर। पुं०=लेव या लेवा (गिलाव)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लेवारना  : स० [हिं० लेवार] १. लेप लगाना। लेपना। २. आग पर चढ़ाने से पहले बरतन के पेदें में लेवा लगाना।
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लेवाल  : वि० [हिं० लेना+वाला] १. लेनेवाला। जैसे—नाम लेवाल =नाम लेनेवाला। २. खरीदनेवाला। खरीददार। बेचवाल का विपर्याय।
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लेश  : पुं० [सं०√लिश् (कम होना)+घञ्] १. अणु। २. किसी चीज का बहुत थोड़ा अंश। ३. सूक्ष्मता। ४. चिन्ह। निशान। ५. लगाव। संबंध। ६. साहित्य में एक अलंकार जिसमें किसी दोष के साथ अच्छाई का या अच्छाई के साथ दोष का भी उल्लेख होता है। ७. एक प्रकार का गाना। वि० थोड़ा।
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लेशी (शिन्)  : वि० [सं० लिश्+णिनि] जिसमें किसी दूसरी चीज का लेश या सूक्ष्म अंश हो।
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लेशोक्त  : वि० [सं० लेश-उक्त, तृ० त०] संक्षेप में या संकेत रूप में कहा हुआ।
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लेश्या  : स्त्री० [सं० लिश्+ण्यत्+टाप्] जैनियों के अनुसार जीव की वह अवस्था जिसमें वह कर्मों से बँधती है।
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लेष  : पुं० १. =लेस। २. =लेश।
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लेषना  : स०=लेखना।
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लेषनी  : स्त्री०=लेखनी।
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लेस  : स्त्री० [सं० श्लेष] १. लसीला पदार्थ। २. लासा ३. लेसने की क्रिया या भाव। ४. लगाव। संबंध। उदाहरण—निरखि नवोढ़ा नारितन छटत लरिकई लेस।—बिहारी।
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लेसना  : स० [सं० लेश्या (दीप्ति) प्रा० लेस्या, या स० लसा] जलाना जैसे—दीया लेसना। स० [हिं० लेस या लस] १. कोई चिपचिपी चीज लगाकर चिपकाना या सटाना। जैसे—दीवार पर कागज लेसना। २. लेप लगाना। पोतना। ३. दीवार पर मिट्टी का गिलावा पोतना। ४. किसी की निन्दासूचक या लड़ाई-झगड़ा करनेवाली बात दूसरे से जाकर कहना। जैसे—हमने तुमको यों ही एक बात कही थी, तुमने वहाँ जाकर उनसे लेस दी।
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लेहँड़ा  : पुं० लहँड़ा (जन्तुओं का)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लेह  : पुं० [सं०√लिञ्+घञ्] १. चाटकर खाई जानेवाली चीज। २. अवलेह। ३. ग्रहण का एक भेद जिसमें पृथ्वी की छाया (या राहु) सूर्य या चंद्र बिम्ब को जीभ के समान चाटती हुई जान पड़ती है।
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लेहन  : पुं० [सं०√लिह् (आस्वादन)+ल्युट—अन] जीभ से चाटना।
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लेहना  : पुं० [हिं० लहना] १. खेत में कटे हुए शस्य या फसल का वह अंश जो काटने वाले मजदूरों को मजदूरी के रूप में दिया जाता है। २. कटी हुई फसल की वह डंठल जो नाई, धोबी आदि को दिया जाता है। ३. डंठल या पयाल आदि की वह मात्रा जो उठाने वाले के दोनों हाथों में आ सके। ४. दे० ‘लहवा’। स० [सं० लेहन] चाटना। स०=लेसना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लेहसित  : वि० [हिं० लसना] १. शोभा देने या सुन्दर लगनेवाला। २. किसी से मिश्रित या युक्त। उदाहरण—लखती लाल की ओर लाज लेहसित नैननि सों।—रत्नाकर। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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लेहसुआ  : पुं०=लहसुआ (घास)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लेहाज़ा  : अव्य० [अं०] इसलिए। इस वास्ते। इस कारण। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लेहाड़ा  : वि०=लिहाड़ा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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लेहाड़ी  : स्त्री० =लिहाड़ी।
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लेहाफ़  : पुं०=लिहाफ।
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लेही (हिन्)  : वि० [सं०√लिह् (आस्वादन)+णिनि] चाटनेवाला।
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लेह्य  : पुं० [सं०√लिह् (आस्वादन)+ण्यत्] १. वह पदार्थ जो चाटकर खाया जाता है। जैसे—अचार, चटनी आदि, (यह भोजन के छः प्रकारों में से एक है) २. अवलेह। वि० (पदार्थ) जो चाटकर खाया जाता हो।
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