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संस्था  : स्त्री० [सं०] १. ठहरने की क्रिया या भाव। ठहराव। स्थति। २. प्रकट होने की क्रिया या भाव। अभिव्यक्ति। आविर्भाव। ३. बँधा हुआ नियम, मर्यादा या विधि। रुढि। ४. आकृति। रूप। ५. गुण। सिफत। ६. कोई काम, चीज या बात ठिकाने लगाने की क्रिया। आवश्यक या उचित परिणाम तक पहुँचना। ७. अंत। समाप्ति। ८. मृत्यु। मौत। ९. धवंस। नाश। १॰. वध। हिंसा। ११. प्रलय। १२. यज्ञ का मुख्य अंग। १३.गुप्तचरों या भेदियों का दल या वर्ग। १४. पेशा। व्यवसाय। १५. गिरोह। जत्था। दल। १६. राजाज्ञा। फरमान। १७. समानता। सादृश्य। १८. समाज। १९. आज-कल कोई संघठित वर्ग, समाज या समूह। (बॉडी) २॰. किसी विशिष्ट सामाजिक या सार्वजनिक कार्य की सिद्धी के उद्देश्य से संघठित मंडल या समाज। २१. व्यवसायिक दृष्टि से कुछ विशिष्ट नियमों सिद्धांतो के अनुसार काम करने वाला कोई संधठित दल, वर्ग या समाज। (सोसाइटी) जैसे-सहकारी संस्था। २२ राजनीतिक या सामाजिक जीवन से संबंध रखने वाला कोई नियम, विधन या परम्परागत प्रथा जो किसी समाज में समान रूप से प्रचलित हो। (इन्स्टिच्यूशन) जैसे—हिंदुओं में विवाह धार्मिक संस्था है, आन्यान्य जातियो की तरह मात्र सामाजिक समझौता नहीं।
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संस्थान  : [सं०] १. ठहराव। स्थिति। २. बैठाना। स्थापन। ३. अस्तित्व। ४. देश। ५. सर्व-साधारण के इकट्ठे होने का स्थान। ६. किसी राज्य के अंतर्गत जागीर आदि। ७. साहित्य, विज्ञान, कला आदि की उन्नति के लिए स्थापित समाज। (इन्स्टीच्यूशन) ८. प्रबंध। व्यवस्था। ९. किसी काम या बात का अच्छी तरह किया जाने वाला अनुसरण। पालन। १॰. जनपद। बस्ती। ११. आकृति। रूप। शक्ल। १२. कांति। चमक। १३. सुंदरता। सौन्दर्य। १४. प्रकृति। स्वभाव। १५. अवस्था। दशा। १६. जोड़। योग। १७. समष्टि। १८. अंत। समाप्ति। १९. नाश। ध्वंस। २॰. मृत्यु। मौत। २१. निर्माण। रचना। २२. निकटता। सामीष्ट। २३. पास-पड़ोस। २४. चौमुहानी। चौराहा। २५. चौखटा। ढाँचा। २६. साँचा। २७. रोग का लक्षण। २८. ब्रिटिश शासन के समय देशी रियासत। (दक्षिणभारत)
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संस्थापक  : वि० [सं० सम्√स्था (ठहरना)+विच् पुक्-ष्टवुल-अक] [स्त्री० संस्थापिका] १. संस्थापन करने वाला। २. बनाकर खड़ा या तैयार करने वाला। ३.नये काम या बात का प्रवर्तन करने वाला। प्रवर्तक। ४. चित्र, खिलौना आदि बनाने वाला। ५. किसी प्रकार का आकार या रूप देने वाला। पुं० आज-कल किसी संस्था, सभा या समज का वह मूल व्यक्ति, जिसने पहले पहल उसकी स्थापना की हो।
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संस्थापन  : पुं० [सं० सम्√श्था (ठहरना)+णिच्-यक, ल्युट्-अन] [वि० संस्थापनीय, संस्थाप्य, भू० कृ० संस्थापित] १. अच्छी तरह जमाकर बैठाना या रखना। २. मशीनों यंत्रो आदि को किसी स्थान पर लगाना। प्रतिष्ठित करना। ३. उक्त रूप में बैठाए या लगाए हुए यंत्रों की सामूहिक संज्ञा। प्रस्थापन। (इन्स्टालेशन) ४. कोई नई चीज बनाकर खड़ी या तैयार करना। निर्मित करना। जैसे—भवन का संस्थापन। ५. कोई नया काम या नई बात चलाना या जारी करना, अथवा उसके लिए कोई संस्था स्थापित करना। ६. उक्त प्रकार से स्थापित की हुई संस्था अथवा उसमें काम करने वाले लोगो का वर्ग या समूह। (एस्टैब्लिशमेंट) ७. किसी काम, चीज या बात को कोई नया आकार या रूप देना। ८. नियंत्रित करना। रोकना। ९. शांत करना।
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संस्थापना  : स्त्री० [सं० संस्थापन-टाप्]=संस्थापन।
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संस्थापनीय  : वि० [सं० सं√स्था (ठहरना)+णिच्-पुक्-अनीयर] जिसका संस्थापना हो सकता हो या होने को हो।
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संस्थापित  : भू० कृ० [सं० सम्√स्था (ठहरना)+णिच्-पुक्, क्त] १. जिसका संस्थापन किया गया हो या हुआ हो। २. जमाकर बैठाया, रखा या स्थित किया हुआ। ३.चलाया या प्रचलित किया हुआ। ४. इकट्ठा किया हुआ। संचित।
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संस्थाप्य  : वि० [सं० सम्√स्था (ठहरना)+णिच्-पुक, यत्] जिसका संस्थापन हो सकता हो या होना उचित हो।
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