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समर्पण  : पुं० [सं०] [भू० कृ० समर्पित, वि० समर्पणीय, सामर्प्य, कर्ता समर्पक] १. किसी को आदपूर्वक कुछ देना। भेंट या नजर करना। २. धर्म-भाव से या श्रद्धाभक्ति पूर्वक कुछ कहते हुए अर्पित करना। (डेडिकेशन)। ३. अपना अधिकार, स्वामित्व, भार आदि किसी दूसरे के हाथ में देना। सौंपना। ४. युद्ध, विवाद आदि बंद करके अपने आपको शत्रु या विपक्षीकि के हाथ में सौंपना। (सरेन्डर, अंतिम दोनों अर्थो में) ५. वैष्णवों में किसी भक्त को भगवान के विग्रह के सामने उपस्थित करके उसे नियमित रूप से आचारवान् भक्त या वैष्मव बनाना। ६. स्थापित करना। स्थापना। ७. दे० आत्मसमर्पण।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
समर्पण-मूल्य  : पुं० [सं०] आधुनिक अर्थ-शास्त्र में वह धन जो बीमा करनेवाले को अवधि पूरी होने से पहले ही अपना बीमा रद्द कराने या बीमा पत्र लौटा देने पर मिलता है। (सरेन्डर वैल्यू)।
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समर्पणी  : पुं० [सं० समर्पण] वह जो भगवान् का पूरा भक्त और आचारवान् वैष्णव बन गया हो। विशेष० दे० ‘समर्पण’।
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