शब्द का अर्थ
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सवाँग :
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पुं० [हि० स्वाँग] १. कृत्रिम वेष। भेस। स्वाँग। (देखें) २. व्यक्तियों के लिए संख्या सूचक शब्द। (पूरब) जैसा—चार सवांग तो घर के ही हो जायँगे।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सवाँगना :
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अ० [हि० स्वाँग] १. नकली भेष बनाना। २. किसी का रूप धारण करना। रूप भरना। |
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सवा :
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वि० [सं० स+पाद] पूरा और एक चौथाई। संपूर्ण और एक अंग का चतुर्थाश जो अंकों में इस प्रकार लिखा जाता है।—४-१/४। |
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सवाई :
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स्त्री० [हि० सवा+ई (प्रत्यय)] ऋण का वह प्रकार जिसमें मूलधन का चतुर्थाश ब्याज के रूप में देना पड़ता है। वि०=सवाया।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [?] मध्ययुग में जयपुर (राजस्थान) के महाराजाओं की उपाधि। जैसा—सवाई मानसिह। स्त्री० [?] मूत्रेद्रिय का एक प्रकार का रोग। |
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सवाद :
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पुं०=स्वाद।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सवादिक :
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वि०=स्वादिष्ट।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सवाब :
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पुं० [अ०] १. शुभ कृत्य का फल जो स्वर्ग में पहुँचने पर मिलता है। पुण्य। २. नेकी। भलाई। ३. सत्कर्मों का पर-लोक में मिलनेवाला शुभ फल। |
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सवाया :
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वि० [हि० सवा] [स्त्री० सवाई] १. पूरे से एक चौथाई से अधिक। सवा गुना। २. किसी की तुलना में कुछ अधिक या बढ़ा हुआ। उदाहरण—निज से भी पर-दुःख देखकर स्वंय सवाया।—मैथिलीशरण। ३. पहले जितना रहा हो, उससे भी कुछ और अधिक। उदाहरण—राणा राख छत्र कौं प्यापै करि करि प्रीति सवाई।—कबीर। |
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सवार :
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पुं० [फा] १. वह जो किसी सवारी या यान पर आरूढ़ हो। जैसा—पांचवाँ सवार। २. वह जो सवारी करने में कुशल हो। जैसा—घुड़सवार। ३. वह जो किसी दूसरे के ऊपर चढ़ा या बैठा हो और उसे किसी रूप में दबाये हुए हो। मुहावरा—(किसी पर या किसी के सिर पर) सवार होना=किसी को पूर्ण रूप से अभिभूत करके। (ख) उसे अपने वश में रखना अथवा (ख) उसे अपने विचारों के अनुसार चलाना। |
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सवारी :
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स्त्री० [फा०] १. सवार होने की अवस्था, क्रिया या भाव। २. कोई ऐसा साधन जिस पर सवार होकर लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हों। यान। जैसा—गाड़ी, घोड़ा, नाव, मोटर, रेल, हवाई, जहाज आदि। ३. वह जो उक्त पर चढ़कर कही जाता हो। उक्त पर सवार होनेवाला व्यक्ति। ४. कोई ऐसा जुलूस जिसमें कोई बहुत बड़ा व्यक्ति कोई धर्मग्रन्थ या देवता की मूर्ति किसी यान पर कहीं ले जाई जाती हो। जैसा—राष्ट्रपति की सवारी, रामजी या वेद भगवान् की सवारी। क्रि० प्र०—निकलना।—निकालना। ५. कुश्ती में एक प्रकार का पेंच जिसमें विपक्षी को जमीन पर गिराकर उसकी पीठ पर बैठकर उसे चित करने का प्रयत्न करते हैं। क्रि० प्र०—कसना। ६. संभोग या प्रसंग के लिए स्त्री पर चढ़ने की क्रिया (बाजारू)। क्रि० प्र०—कसना।—गाँठना। |
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सवारे :
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अव्य० [सं० स+बेला] १. प्रातःकाल। सबेरे। २. समय से कुछ पहले। जल्दी। ३. आनेवाले दूसरे दिन। कल के दिन। |
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सवारै :
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अव्य०=सवारे।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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सवाल :
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पुं० [अ] [बहु० सवालात] १. पूछने की क्रिया या भाव। २. वह बात जो पूछी जाय। प्रश्न। पद—सवाल-जवाब। ३. गणित में कोई ऐसी समस्या जिसका उत्तर निकालना या निराकरण करना हो। प्रश्न (क्वेश्चन उक्त सभी अर्थो में) ४. कुच पाने या माँगने के लिए की जानेवाली प्रार्थना। जैसा—भिखारिन ने रूखे सिख के सामने दाँत निकालकर सवाल किया।—उग्र। ५. वह प्रार्थना पत्र जो न्यायालय में किसी पर कोई अभियोग चलाने के लिए न्यायाधीश के सामने उपस्थित किया जाता है। मुहावरा—(किसी पर) सवाल देना= (क) नालिश करना। (ख) फरियाद करना। ६. प्रार्थना। विनती। |
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सवाल-जवाब :
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पुं० [अ०] १. प्रश्न और उसका उत्तर। २. तर्क-वितर्क। वाद-विवाद। बहस। जैसा—बड़ों से सवाल-जबाव करना ठीक नहीं। ३. झगड़ा। तकरार। हुज्जत। |
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सवालिया :
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वि० [अ० सवालियः] १. सवाल के रूप में होनेवाला। २. व्याकरण में वाक्य जो पाठक या श्रोता से उत्तर की अपेक्षा रखता हो। प्रश्नात्मक। |
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सवाली :
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वि० [हि० सवाल]=सवालिया। पुं० वह जिसने कोई सवाल अर्थात् प्रार्थना या याचना की हो। |
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