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सुगंध  : स्त्री० [सं०] १. ऐसी गंध जो प्रिय लगती हो। प्रिय महक। सुवास। खशबू। २. वह पदार्थ जिसमें से अच्छी गंध निकलती हो। खुशबुदार चीज। ३. अगिया घास। गंधतृण। ४. श्रीखंड चन्दन।। ५. गंधराज। ६. नील कमल। ७. काला-जीरा। ८. गठिवन। ९. चना। १॰. भूतृण। ११. लाल सहिजन। १२. मरुआ। १३. माधवी लता। १४. कसेरु। १५. सफेद ज्वार। १६. केवड़ा। १७. रूसा घास। १८. शिलारस। १९. राल। धूना। २॰. गंधक। २१. एक प्रकार का कीड़ा। वि० १. गंधयुक्त। २. सुगंध से युक्त। सुगंधित। ३. यशस्वी। उदाहरण—गंध्रपसेन सुगंध नरेसू।—जायसी। स्त्री०=सौगंध।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुगंधक  : पुं० [सं० ब० स०] १. द्रोण पुष्पी। गूमा। २. साठी धान। ३. धरणी कंद। कंदालु। ४. लाल तुलसी। ५. गंध-तृण। ६. नारंगी। ७. ककोड़ा। ८. गंधक।
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सुगंध केसर  : पुं० [सं०] लाल सहिजन।
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सुगंध-कोकिला  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] गंधकोकिला नामक गंध द्रव्य।
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सुगंध-गंधा  : स्त्री० [सं० ब० स०] दारुहल्दी। दारुहरिद्रा।
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सुगंध-गण  : पुं० [सं०] वैद्यक में सुगंधित द्रव्यों का एक गण या वर्ग।
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सुगंध-तृण  : पुं० [सं० मध्य० स०] गंध-तृण। रूसा घास।
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सुगंध-त्रय  : पुं० [सं० ब० स०] चंदन, बला और नागकेसर इन तीनों का वर्ग या समूह।
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सुगंध-त्रिफला  : स्त्री० [सं० ष० त०] जायफल, लौंग और इलायची अथवा जायफल, सुपारी तथा लौंग इन तीनों का समूह। (वैद्यक)
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सुगंधन  : पुं० [सं० सु√गन्ध् (गत्यादि)+ल्युट-अन] जीरा।
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सुगंधनाकुली  : स्त्री० [सं० मध्य० स०]=गंधनाकुली।
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सुगंध-पत्रा  : स्त्री० [सं० ब० स०] १. शतमूली। सतावर। २. अपराजिता। ३. घमासा। ४. कंठ जामुन। ५. बनभौंटा। ६. जीरा। ७. बरियारा। बबला। ८. विधारा। ९. रुद्रजटा।
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सुगंधपत्री  : स्त्री० [सं० सुगंधपत्र+ङीष्] १. जावित्री। २. फूल प्रियंगू। ३. रुद्र-जटा। ४. कंकोल।
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सुगंध-बाला  : स्त्री० [सं० सुगंध+हि० बाला] क्षुप जाति की एक बनौषधि।
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सुगंध-भूतृण  : पुं० [सं०] १. रूसा घास। अगिया घास। २. दे० ‘भूतृण’।
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सुगंध-मुख्या  : स्त्री० [सं० ब० स०] कस्तूरी। मृगनाभि।
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सुगंध-मूल  : पुं० [सं० ब० स०] हरफा-रेवड़ी। लवलीफल।
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सुगंध-मूला  : पुं० [सं० सुगंध-मूल-टाप्] १. स्थल कमल। स्थल पद्य। २. रासना। ३. आँवला। ४. कपूरकचरी। ५. हरफा-रेवड़ी।
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सुगंध-मूली  : स्त्री० [सं० सुगंधमूल+ङीष्] गंध पलाशी। कपूरकचरी।
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सुगंध-मूषिका  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] छछूँदर।
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सुगंधरा  : पुं० [सं० सुगंध+हि० रा] एक प्रकार का क्षुप और उसका फूल।
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सुगंध-रौहिष  : पुं० [सं० मध्य० स०] रोहिष घास। अगिया घास।
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सुगंध-वल्कल  : पुं० [सं० ब० स०] दारचीनी।
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सुगंध-शालि  : पुं० [सं० मध्य० स०] वह चावल जिसमें से मीठी भीनी गंध निकलती है। बासमती चावल।
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सुगंध-षट्क  : पुं० [सं० ष० त०] जायफल, कंकोल (शीतल चीनी) लौंग, इलायची, कपूर और सुपारी का वर्ग या समूह। (वैद्यक)।
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सुगंध-सार  : पुं० [सं० ब० स०] सागोन। शाल वृक्ष।
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सुगंधा  : स्त्री० [सं०] १. रासन। रासना। २. काला जीरा। ३. कपूर कचरी। ४. रुद्रजटा। ५. सौंफ। ६. बाँझ। ककोड़ा। ७. नवमल्लिका। नेवारी। ८. पीली जूही। ९. नकुल-कंद। नाकुली। १॰. असबरग। ११. सलई। १२. माधवी लता। १३. अनंतमूल। १४. बिजौरा नींबू। १५. तुलसी। १६. निर्गुंडी। १७. एलुआ। १८. बकुची। सोमराजी। १९. एक देवी जिनका स्थान माधव वन में कहा गया है और जिनकी गणना बाइस पीठ-स्थानों में होती है।
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सुगंधाढ्य  : वि० [सं० तृ० त०] सुगंधित। खुशबूदार।
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सुगंधाढ्या  : वि० [सं०] १. त्रिपुरमाली। त्रिपुर मल्लिका। २. बासमती चावल।
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सुगंधि  : वि० [सं० तृ० त०] सुगंधित। खुशबू। वास। पुं० १. परमात्मा। २. आम। ३. कसेरु। ४. पिपरा मूल। ५. धनियाँ। ६. अगिया घास। ७. मोथा। ८. एलुआ। ९. वन तुलसी। १॰. गोरख ककड़ी। ११. चन्दन। १२. तुंबरू। १३. अनंतमूल। वि०=सुगंधित।
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सुगंधिक  : पुं० [सं० सुगंधि+कन्] १. गाँडर की जड़। उशीर। खस। २. बासमती चावल। ३. कुमुदिनी। कूईं। ४. पुष्करमूल। ५. काला जीरा। ६. मोथा। ७. एलुआ। ८. शिलारस। ९. कपित्थ। कैथा। १॰. पुन्नाग। ११. गंधक।
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सुगंधिका  : स्त्री० [सं०] १. कस्तूरी। मृगनाभि। २. केवड़ा। ३. सफेद अनंतमूल। ५. काली निर्गुडी।
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सुगंधि-कुसुम  : पुं० [सं० ब० स०] १. पीला कनेर। २. असबरग।
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सुगंधित  : भू० कृ० [सं०] १. सुगंध से युक्त किया हुआ। २. (पदार्थ) जिसमें से सुगंधि निकल रही हो।
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सुगंधिता  : स्त्री० [सं०] =सुगंधि।
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सुगंधि-त्रिफला  : स्त्री० [सं०]=सुगंध त्रिफला।
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सुगंधिनी  : स्त्री० [सं०] १. आराम शीतल नाम का शाक। सुनंदिनी। २. पीली केतकी।
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सुगंधि-पुष्प  : पुं० [सं०] धारा कदंब।
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सुगंधि-फल  : पुं० [सं०] शीतल चीनी। कबाब चीनी।
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सुगंधि-माता (तृ)  : स्त्री० [सं० ष० त०] पृथिवी।
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सुगंधि-मूल  : पुं० [सं०] खस। उशीर।
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सुगंधि-मूषिका  : स्त्री० [सं०] छछूँदर।
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सुगंधी (धिन्)  : वि० [सं० सुगंध+इनि] जिसमें अच्छी गंध हो। सुवासित। सुगंधयुक्त। खुशबूदार। पुं० एलुआ। स्त्री०=सुगंधि।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुग  : वि० [सं० सु+ग=गति] १. अच्छी तरह तेज या बहुत चलनेवाला। २. खूब जागते या सचेत रहनेवाला। ३. अच्छा गानेवाला। ४. सुगम। सहज। ५. सुगम। सहज। ६. सुबोध। पुं० १. सुमार्ग। २. सुख। ३. विष्ठा। मल।
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सुगठित  : वि० [सं० सु+हि० गठित] १. अच्छी तरह से गठा हुआ। २. संघठित।
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सुगत  : पुं० [सं०] १. बुद्ध देव का एक नाम। २. बुद्ध देव का अनुयायी। बौद्ध। वि० [सं० सुगति] १. अच्छी गतिवाला। अच्छे आचरणवाला। २. जिसे सुगति अर्थात् मोक्ष प्राप्त हुआ हो। ३. सुगम। स्त्री०=सुगति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुगतदेव  : पुं० [सं० कर्म० स०] गौतम बुद्ध।
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सुगतापतन  : पुं० [सं० ष० त०] बौद्ध मंदिर।
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सुगति  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] १. अच्छी या उत्तम गति। २. सदाचरण। ३. मरने के उपरान्त होनेवाली उत्तम गति। मोक्ष। ४. एक प्रकार का छन्द या वृत्त।
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सुगन  : पुं० [देश] छकड़े में गाड़ीवान के बैठने की जगह के सामने आड़ी लगी हुई दो लकड़ियाँ जिनकी सहायता से बैल खोल लेने पर भी गाड़ी खड़ी रहती है। पुं०=सगुन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुगना  : पुं० [सं० शुक, हि० सुग्गा] सुग्गा। तोता। पुं०=सहिंजन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुगभस्ति  : वि० [सं० ब० स०] अत्यंत दीप्तिमान। बहुत चमकीला।
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सुगम  : वि० [सं० स√गम् (जाना)+अच्] [भाव० सुगमता] १. (स्थान) जहाँ सरलता से पहुँचा जा सके। २. (मार्ग) जिस पर आसानी से चला और आगे बढ़ा जा सके। ३. (कार्य) जिसका संपादन या साधन सुखपूर्वक किया जा सके।
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सुगमता  : स्त्री० [सं० सुगम+तल्-टाप्] १. सुगम होने की अवस्था या भाव। सरलता। आसानी। जैसे—इससे आपके कार्य में बहुत सुगमता हो जायगी। २. वह गुण या तत्व जिससे कोई कार्य सरलता से और जल्दी से संपन्न हो जाता है।
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सुगम्य  : वि० [सं० सु√गम (जाना ( यत्] स्थान जिसमें सहज में प्रवेश हो सके। सरलता से जाने योग्य।
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सुगर  : पुं० [सं० ब० स०] शिगरफ। हिगुल। वि०=सुघड़। वि०=सुगम।
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सुगरूप  : पुं० [देश] एक प्रकार की सवारी जो प्रायः रेतीले देशों में काम आती है।
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सुगल  : पुं०=सुग्रीव।
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सुग-सुग  : स्त्री० [अनु०] कानाफूसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुग-सुगाना  : अ० [अनु०] कानाफूसी करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुगह  : वि० [सं०सु+गाह ] जो सहज में पकड़ा या ग्रहण किया जा सके।
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सुगहना  : स्त्री० [सं०] प्राचीन काल में यज्ञ-भूमि के चारों ओर बनाया जानेवाला घेरा जिसके परिणाम स्वरूप अस्पृश्यों का प्रवेश रुक जाता था।
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सुगाली  : स्त्री० [सं० ब० स०] १. सुन्दर शरीरवाली स्त्री। २. संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी।
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सुगाध  : वि० [सं० ब० स०] (नदी) जिसमें सुख से स्नान किया जा सके, अथवा जिसे सहज में पार किया जा सके।
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सुगाना  : अ० [सं० शोक] १. दुःखी होना। २. दुःखी होकर नाराज होना। बिगड़ना। स०=दुःखी करना। अ० [?] शक या सन्देह करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुगाल  : पुं०=सुकाल (डि०)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुगीत  : पुं० [प्रा० स०]=सुगीतिका।
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सुगीतिका  : स्त्री० [सं० ब० स०] आर्या छंद का एक भेद।
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सुगुंडा  : स्त्री०[सुगुण्डा, ब० स०] गुंडासिनी तृण। गुंडाला।
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सुगुरा  : वि० [सं० सुगुरु] १. जिसने अच्छे गुरु से मंत्र लिया हो। जिसने अच्छे गुरु से शिक्षा पाई हो।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुगृह  : पुं० [सं० प्रा० स०] सुन्दर घर।
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सुगृही  : वि० [सं० सुगृह+इनि] १ . जिसके पास सुन्दर घर हो। २. जिसकी पत्नी सुन्दर और सुयोग्य हो।
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सुगेष्णा  : वि० स्त्री० [सं० ब० स०] सुन्दर रूप से गानेवाली स्त्री० किन्नरी।
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सुगैया  : स्त्री० [हि० सुग्गा] अँगिया। चोली।
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सुगौतम  : पुं० [सं० प्रा० स०] गौतम बुद्ध।
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सुग्गा  : पुं० [सं० शुक्र] [स्त्री० सुग्गी] तोता।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुग्गा-पंखी  : पुं० [हि० सुग्गा+पंख] एक प्रकार का अगहनी धान।
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सुग्गा-साँप  : पुं० [हि० सुग्गा+साँप] एक प्रकार का साँप।
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सुग्गी  : स्त्री० [हि० सुग्गा का स्त्री] मादा तोता। तोती।
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सुग्द  : पुं० [?] वंक्षु और सीर नदियों के बीच के प्रदेश का पुराना नाम।
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सुग्दी  : वि० [सुग्द प्रदेश से] सुग्द प्रदेश का। सुग्द प्रदेश का निवासी। स्त्री० सुग्द प्रदेश की बोली।
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सुग्रंथि  : पुं० [सं० ब० स०] १ . चोरक नामक गंध द्रव्य २. पिपरामूल।
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सुग्रह  : पुं० [सं०] फलित ज्योतिष के अनुसार शुभ या अच्छे ग्रह। जैसे—वृहस्पति शुक्र आदि।
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सुग्रीव  : वि० [सं० ब० स०] अच्छी या सुन्दर ग्रीवा। (गरदन) वाला। पुं० १. विष्णु या कृष्ण के चार घोड़ों में से एक। २ .वानरों का राजा जो बलि का भाई और श्रीरामचन्द्र का सखा तथा सहायक था। ३ .वर्तमान अवसर्पिणी के नवें अर्हत के पिता का नाम। ४. इन्द्र। ५ .शिव। ६ . एक प्रकार का प्राचीन अस्त्र। ७ .शंख। ८. राज-हंस। ९ .एक प्राचीन पर्वत। १॰.वास्तु-कला में एक प्रकार का मंडप। ११. नायक।
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सुग्रीवी  : स्त्री० [सं० सुग्रीव-ङीष्] दक्ष की एक कन्या तथा कश्यप की पत्नी जो घोड़ों, ऊँटों तथा गधों की जननी कही गई है।
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सुग्रीवेश  : पुं० [सं० ष० त०] श्रीरामचन्द्र।
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