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अतिथि  : पुं० [सं० अत्√(गति) +अथिन्] [वि० आतियेय, भाव, आतिथ्य] १. बिना पहले से तिथि, समय आदि की सूचना दिए हुए घर में ठहरने के लिए अचानक आ पहुँचनेवाला कोई प्रिय अथवा सत्कार योग्य व्यक्ति। २. किसी के यहाँ कुछ दिनों के लिए बाहर से आकर ठहरा हुआ व्यक्ति। अभ्यागत। मेहमान। पाहुन। (गेस्ट) ३. वह सन्यासी या साधु जो किसी स्थान पर एक रात से अधिक न ठहरे। ४. अग्नि। ५. यज्ञ के लिए सोमलता लानेवाला व्यक्ति।
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अतिथि क्रिया  : स्त्री० [ष० त०] =आतिथ्य।
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अतिथि-गृह  : पुं०=अतिथिशाला।
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अतिथिदेव  : वि० [ब० स०] जिसके लिए अतिथि देव स्वरूप हो। जो अतिथि को देवता स्वरूप मानकर उसका सत्कार करे।
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अतिथि-धर्म (न्)  : पुं० [ष० त०] आवश्यक और उचित रूप से अतिथि की सेवा या सत्कार करने की क्रिया या भाव।
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अतिथि-पूजा  : स्त्री० [ष० त०] अतिथि का आदर सत्कार। मेहमानदारी।
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अतिथि-यज्ञ  : पुं० [ष० त०] अतिथि का आदर-सत्कार जो पाँच महायज्ञों में से एक है। अतिथि-पूजा।
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अतिथि-शाला  : स्त्री० [ष० त०] वह भवन जो विशेष रूप से अतिथियों के ठहरने के लिए नियत हो। (गेस्ट हाउस)।
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अतिथि-सत्कार  : पुं० [सं० ष० त०] अतिथि की सेवा और स्वागत।
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