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अभ्यास  : पुं० [सं० अभि√अस् (क्षेप)+घञ्] १. कोई काम स्वभाववश निरंतर करते रहने की क्रिया या भाव। आदत। बान। २. किसी कार्य में दक्ष अथवा किसी विषय के विशेषज्ञ होने के लिए उस कार्य या विषय में दत्त-चित्त होकर बार-बार लगे रहना या उसे बार-बार करते रहना। (प्रैक्टिस) ३. किसी कार्य के पूरा होने अथवा उसे पूर्ण रूप से प्रस्तुत करने से पहले उसकी की जानेवाली आवृत्ति। (प्रैक्टिस) ४. एक प्राचीन काव्यालंकार जिसमें किसी दुष्कर बात को सिद्ध करने वाले कार्य का उल्लेख होता है।
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अभ्यास-कला  : स्त्री० [ष० त०] योग की चार कलाओं में से एक जो विविध योगांगों के मेल से बनती है। आसन और प्राणायाम का मेल।
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अभ्यास-योग  : पुं० [तृ० त०] किसी आत्मा या देवता का बार-बार चिंतन करना या अभ्यास करना जो एक प्रकार का योग माना गया है।
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अभ्यासी (सिन्)  : वि० [सं० अभ्यास+इनि] [स्त्री० अभ्यासिनी] निरंतर अभ्यास करनेवाला।
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