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अस्तेय  : पुं० [सं० न० त०] १. स्तेय या चोरी करना । २. चोरी न करने की प्रतिज्ञा या व्रत जो सदाचार के मुख्य नियमों या सिद्धांतों में से एक है। ३. योग के साठ अंगों में नियम नामक अंग के अंतर्गत एक व्रत।
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अस्तेय-व्रत  : पुं० [ष० त०] आवश्यकता से अधिक वस्तुएँ अपने पास न रखना या उनका उपयोग न करने का व्रत जो यह समझाकर धारण किया जाता है कि आवश्यकता से अधिक संग्रह करना भी एक प्रकार की चोरी है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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