| शब्द का अर्थ | 
					
				| अहर्य					 : | वि० [सं०√अर्ह्+ण्यत्]=अर्हणीय। | 
			
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				| अहं					 : | सर्व० [सं० अस्मद् का सिद्ध रूप)] मैं। पुं० [सं० √अग्(व्यक्ति)+अमु] १. मनुष्य में होनेवाला एक ज्ञान या धारणा कि मैं हूँ या औरों से मेरी पृथक् और स्वतंत्र सत्ता है। अपने अस्तित्व की कल्पना या भान। (ईगो) २. अगंकार। अभिमान। | 
			
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				| अहंकार					 : | पुं० [सं० अहम्√कृ (करना)+घञ्] १. अंतःकरण की वह स्वार्थपूर्ण वृत्ति जिससे मनुष्य समझता है कि मै कुछ हूँ या कुछ करता हूँ। मन में रहनेवाला ‘मैं’ और ‘मेरा’ का भान। अहं-भाव। (इगोइज्म) विशेष—सांख्य के अनुसार यह महत्तत्व से उत्पन्न एक द्रव्य है और वेदांत में इसे अंतःकरण का वह भेद माना है जिसका विषय अभिमान या गर्व है। २. अभिमान। गर्व। शेखी। (इगोटिज्म) | 
			
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				| अहंकारी (रिन्)					 : | वि० [सं० अहम्√कृ+णिनि] [स्त्री० अहंकारिणी] जिसे अहंकार या अभिमान हो। अहंकार करनेवाला। अभिमानी। | 
			
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				| अहंकार्य					 : | पुं० [सं० अहम्√कृ+ण्थत्] (ऐसा उद्देश्य या कार्य) जो स्वयं या अपने द्वारा सिद्ध किया जाने को हो। | 
			
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				| अहंकृत					 : | वि० [सं० अहम्√कृ+क्त] १. जिसे अपनी सत्ता का भान हो। २. अभिमानी। घमंडी। | 
			
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				| अहंकृति					 : | स्त्री० [सं० अहम्√कृ+क्तिन्] अहंकार। अभिमान। घमंड। उदाहरण—अंहकृति में झंकृति जीवन।—निराला। | 
			
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				| अहंतंत्र					 : | पुं० [सं० न० त०] १. ऐसी सासन प्राणाली जिसमें एक ही राजा या शासक सह कार्य अपनी इच्छा या मन से करता हो। २. आज-कल मुख्यतः ऐसा राज्यतंत्र जिसमें कोई देश आर्थिक दृष्टि से स्वतंत्र हो और दूसरों देशों से बहुत कुछ पृथक् रहकर अपने सब काम चलाता हो। (आँटार्की)। अहंता | 
			
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				| अहंपूर्व					 : | वि० [सं० ब० स०] १. जो (होड़ आदि में) सबसे पहले या आगे रहना चाहता हो। २. अपने आपको सबसे आगे या प्रधान रखने का इच्छुक। | 
			
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				| अहंपूर्विका					 : | स्त्री० [सं० अहंपूर्व+कन्-टाप्, इत्व] १. अंहपूर्व का भाव या विचार। अपने आपको सबसे आगे या प्रधान रखने की इच्छा या कामना। २. प्रतिद्वन्द्विता। होड़। | 
			
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				| अहंप्रत्यय					 : | पुं० [सं० मध्य० स०] अभिमान। अहंकार। | 
			
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				| अहंभद्र					 : | पुं० [सं० मयू० स०] १. अपने आपको आवश्यकता से बहुत बड़ा समझना। २. वह जो अपने आपको सबसे बढ़कर समझता हो। | 
			
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				| अहंभाव					 : | पुं० [सं० न० त०] १. अहं। अहंकार। | 
			
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				| अहंमन्य					 : | वि० [सं० अहम्√मन् (मानना)+खश्] १. अपने आपको औरों से बहुत बढ़कर या बहुत कुछ माननेवाला। २. अभिमानी। घमंडी। | 
			
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				| अहंमन्यता					 : | वि० [सं० अहम्मन्य+तल्-टाप्] अपने आपको सबसे बढ़कर बहुत कुछ समझना और अपने संबंध में बढ़-बढ़कर बातें करना। (इगोटिज्म) | 
			
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				| अहंवाद					 : | पुं० [सं० ष० त०] १. अपने आपको सबसे बढ़कर समझना और अपनी बढ़ाई करना। २. डींग मारना। शेखी हाँकना। | 
			
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				| अहंवादी (दिन्)					 : | पुं० [सं० अहम्√वद् (बोलना)+णिनि] अहंमन्य। | 
			
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				| अहंश्रेयस					 : | पुं० [सं० मयू० स०] अपने को बड़ा या श्रेष्ठ मानना या समझना। | 
			
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				| अहःपति					 : | पुं० [सं० ष० त० अहन्, पति]=अहर्पति। | 
			
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				| अहःशेष					 : | पुं० [सं० अहन्-शेष, ष० त०] दिन का पिछला पहर। संध्या। सायंकाल। | 
			
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				| अह					 : | पुं० [सं० अहन्] १. दिन। दिवस। २. विष्णु। ३. सूर्य। ४. दिन का अभिमानी देवता। अव्य० [सं० अहह] एक अव्यय जिसका प्रयोग आश्चर्य खेद, क्लेश आदि का सूचक होता है। अ०अवधी बोली में ‘अहना’ क्रिया का वर्त्तमान-कालिक रूप है।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| अहक					 : | स्त्री० [सं० ईहा] मन में दबी रहनेवाली तीव्र कामना या लालसा। | 
			
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				| अहकना					 : | स० [सं० अहक+ना (प्रत्यय)] कामना या लालसा करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| अहकाम					 : | पुं० [अ० हुक्म का बहु०] १. आज्ञाएँ। २. नियम या विधान संबंधी बातें। | 
			
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				| अहटना					 : | अ० [हिं० आहट] आहट लेना। पता चलाना। अ० [सं० आहत] दुखना। दर्द करना। | 
			
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				| अहत					 : | वि० [सं० न० त०] १. जो हत न हुआ हो। २. जो मारा या पीटा न गया हो। ३. (कपड़ा) जो धुला न हो। ४. बिलकुल ताजा या नया। बे-दाग। पु० नया कपड़ा। | 
			
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				| अहथिर					 : | वि० १. दे० ‘अस्थिर’। २. दे० ‘स्थिर’। | 
			
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				| अहद					 : | पुं० [अ०] १. पक्का निश्चय। दृढ़ संकल्प। प्रतिज्ञा। मुहावरा—अहद टूटना=प्रतिज्ञा भंग होना। अहद तोड़ना-(क) प्रतिज्ञा भंग करना। (ख) वादा पूरा न करना। २. इरादा। विचार। ३. किसी के भोग, राज्य या शासन का काल। जैसे—अकबर के अहद में कई अकाल पड़े थे। | 
			
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				| अहददार					 : | पुं० [फा०] मुसलमानी शासन काल में वह अधिकारी जिसे कर उगाहने का ठीका मिलता था। | 
			
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				| अहदनामा					 : | पुं० [फा०] १. इकरारनामा। प्रतिज्ञापत्र। २. संधिपत्र। | 
			
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				| अहदी					 : | वि० [अ०] बहुत बड़ा आलसी और कोई काम न करनेवाला। पुं० [अ०] १. अकबर के समय के वे सिपाही जिन्हें साधारणयतः कुछ काम नही करना पड़ता था पर जो विकट अवसरों पर वीरता दिखाते थे। २. दूत या सिपाही। उदाहरण—घेरघौ आइ कुटुम-लसकर, जन अहदी पठयौ।—सूर। | 
			
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				| अहदीखाना					 : | पुं० [फा०] अहदियों के रहने का स्थान। | 
			
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				| अहन्					 : | पुं० [सं०√हा (त्याग)+कनिन्, न० त०] दिन। | 
			
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				| अहना					 : | अ० [सं० अस्ति] वर्त्तमान रहना। होना। (अवधी) उदाहरण—अस अस मच्छ समुद्र महँ अहहीं।—जायसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| अहनिसि					 : | क्रि० वि० [सं० अहर्निश] रात-दिन। उदाहरण—मुयों मुयों अहनिसि चिल्लाई।—जायसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| अहप्पति					 : | पुं० =अहिपति (शेषनाग)। | 
			
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				| अहम्					 : | सर्व०, पुं०=अहं। | 
			
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				| अहमक					 : | पुं० [अ०] [भाव० हिंमाकत] मूर्ख। बेवकूफ। | 
			
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				| अहमद					 : | वि० [अ०] बहुत प्रशंसनीय। पुं० हज़रत मुहम्मद का नाम। | 
			
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				| अहमदी					 : | स्त्री० [अ०] मुसलमानों में एक संप्रदाय। | 
			
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				| अहमहमिका					 : | स्त्री० [सं० अहम् अहम् (वीप्सा में द्वित्व)+ठन्-इक-टाप्] १. दो दलों या पक्षों का आपस में एक दूसरे को तुच्छ और आपने आपको बढ़कर समझना। २. चढ़ा-ऊपरी। होड़। | 
			
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				| अहमिका					 : | स्त्री० [सं० अहम्] अबिमान। अहंकार। घमंड। | 
			
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				| अहमिति					 : | स्त्री० [सं० अहम्मति] यह विचार कि मै ही सब कुछ हूँ। उदाहरण—तोड़कर बाधा बंधन भेद भूल जा अहमिति का यह स्वार्थ।—प्रसाद। | 
			
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				| अहमित्व					 : | पुं० [सं० अहंत्व] १. अपने अस्तित्व का ज्ञान। अहंभाव। आपा। २. दे० ‘अहंमन्यता’। | 
			
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				| अहमेव					 : | पुं० [सं० अहम्√एव व्यस्त पद] १. यह समझना कि मै ही सब कुछ हूँ। २. अभिमान। अहंकार। | 
			
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				| अहम्-मति					 : | स्त्री० [सं० मध्य० स०] १. गर्व। घमंड। २. ममता। ३. अविद्या। | 
			
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				| अहम्मन्य					 : | वि० [सं० अहन्√मन्(मानना)+खश] [भाव० अहम्मन्यता] अहंमन्य। | 
			
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				| अहम्मनयता					 : | स्त्री० [सं० अहम्मन्य+तल्-टाप्]=अहंमन्यता। | 
			
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				| अहम्मय					 : | वि० [सं० अहम्+मयट्] अहंभाव या अहंकार से भरा हुआ। बहुत बड़ा अभिमानी। | 
			
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				| अहर					 : | पुं० [देश०] मिट्टी का वह बरतन जिसमें छीपी रंग रखते हैं। पुं०=अधर। उदाहरण-अहर, पयोहर, दुइ नयण, मीठा जेहा मख्ख।-ढो० मा० दू०। | 
			
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				| अहरन					 : | स्त्री० [सं० आ+धरण-रखना] लोहारों सोनारों आदि की निहाई। | 
			
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				| अहरना					 : | स० [सं० आहरणम्-निकालना] लकड़ी को छीलकर साफ या सुडौल करना। | 
			
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				| अहरह (स्)					 : | क्रि० वि० [सं० अहन् शब्द को वीप्सा में द्वित्व] १. प्रतिदिन। २. नित्य। सदा। ३. लगातार। निरंतर। | 
			
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				| अहरा					 : | पुं० [सं० आहरण-इकट्ठा करना] १. कोई चीज पकाने के लिए बनाया हुआ कंडों का ढेर। २. कंडे जलाकर तैयार की हुई आग। ३. मनुष्यों के ठहरने का स्थान। ४. दे० ‘आहर’। | 
			
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				| अहरात					 : | पुं० =अहोरात्र (दिन-रात)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| अहरिमन					 : | पुं० [पह०] पारसी धर्म में पाप और अंधकार का अधिष्ठाता देवता। शैतान। | 
			
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				| अहरी					 : | स्त्री० [सं० आहरण-इकट्ठाकरना] १. वह स्थान जहाँ लोगों को पानी पिलाने का प्रबंध रहता है। पौसरा। प्याऊ। २. जानवरो के पानी पीने के लिए कुएँ के पास बनाया जानेवाल हौज। ३. पानी से भरा हुआ हौज। | 
			
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				| अहर्गण					 : | पुं० [सं० अहन्-गण, ष० त०] १. दिनों का समूह। २. सृष्टि के आरंभ से इष्ट अर्थात् किसी विशिष्ट दिन के बीच का समय। | 
			
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				| अहर्दल					 : | पुं० [सं० अहन्-दल, ष० त०] मध्याह्र। दोपहर। | 
			
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				| अहर्निश					 : | क्रि० वि० [सं० अहन्-निश,द्व०स०] १. रात-दिन। २. नित्य। सदा। ३. निरंतर। लगातार। | 
			
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				| अहर्पति					 : | पुं० [सं० अहन्-पति, ष० त०] सूर्य। | 
			
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				| अहर्मणि					 : | पुं० [सं० अहन्-मणि, स० त०] सूर्य। | 
			
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				| अहर्मुख					 : | पुं० [सं० अहन्-मुख, ष० त०] उषःकाल। सबेरा। दिन का आरंभिक भाग। तड़का। | 
			
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				| अहल					 : | वि० [अ०अहल] योग्य। लायक। प्रत्यय-वाला। पुं० १. लोग। २. परिवार के या संग-साथ के लोग। ३. मालिक। स्वामी। | 
			
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				| अहलकार					 : | पुं० [अ+फा०] १. कर्मचारी, मुख्यतः कचहरी, कार्यालय आदि का। २. कारिंदा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| अहलना					 : | अ० [सं० आहलनम्] १. बार-बार हिलना। काँपना। २. डर से काँपना। थर्राना। | 
			
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				| अहलमद					 : | पुं० [फा०] न्यायालय आदि का वह कर्मचारी जो सब प्रकार की मिसिलें क्रम से रखता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| अहला					 : | पुं० दे० अहिला। क्रि० वि० [?] व्यर्थ। बे-फायदे। (राज०) उदाहरण—बीछडियाँ कोई भौ भयो ए दिन अहला जाए।—मीराँ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहलाद					 : | पुं० =आह्लाद।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहलादी					 : | वि० =आह्लादी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहले गहले					 : | क्रि० वि० [अनु०] १. हलके ह्रदय से। प्रसन्न होकर। २. मंदगति से और मस्त होकर (चलना या कोई काम करना)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| अहल्या					 : | वि० [सं० हल+यत्-टाप्,न० त०] धरती जिसमें हल न चल सके या जो जोती न जा सके। स्त्री० गौतम ऋषि की पत्नी, जो शाप के कारण पत्थर की हो गयी थी और जिसका उद्धार भगवान् रामचंद्र ने किया था। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहवान					 : | पुं० =आह्वान (बुलाना)। पुं० हैवान।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहवाल					 : | पुं० [अ० हाल का बहुवचन] १. समाचार। वृत्तांत। २. दशा। परिस्थिति। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| अहश्चर					 : | वि० [सं० अहन्√चर् (गति)+ट] दिन के समय या दिन भर भ्रमण करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| अहसान					 : | पुं० =एहसान। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहस्कर					 : | पुं० [सं० अहन्√कृ (करना)+ट] सूर्य। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहस्त					 : | वि० [सं० न० ब०] जिसे हाथ न हो। बिना हाथ का। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहा					 : | अव्य० [सं० अहह] आनंद, आह्राद, प्रसन्नता आदि का सूचक अव्यय। अ० अवधी और पूर्वी हिन्दी में ‘होना’ क्रिया का भूतकालिक रूप था।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहाता					 : | पुं० [अ० इहातः] १. चारों ओर से घिरा हुआ मैदान या स्थान। हाता। २. चारदीवारी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहान					 : | पुं० [सं० आह्वान] पुकार। चिल्लाहट। पुं० [सं० अहन्] दिन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहार					 : | पुं० [सं० आहार, सिं० आहरू, मराठी० अहार] १. खाने की चीज़ें। खाद्य पदार्थ। २. भोजन करने की क्रिया या भाव। खाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहारना					 : | स० [सं० आहरणम्=(खाना)] १. आहार या भोजन करना। २. लेई लगाकर लसना। चिपकाना। ३. कपड़े में माड़ी देना। ४. दे० ‘अहरना’। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहारी					 : | वि० =आहारी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहार्य					 : | वि० [सं०√हृ (हरण करना)+ण्यत्, न० त०] १. जो हरण किया या चुराया न जा सके। २. जिसका हरण करना उचित न हो। ३. जिसे धन आदि के द्वारा वश में न किया जा सके। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहाहा					 : | अव्य० [सं० अहह] प्रसन्नता या हर्ष-सूचक एक अव्यय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहिंसक					 : | वि० [सं० न० त०] १. जो हिंसक न हो। हिंसा न करनेवाला। २. अहिंसावादी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहिंसा					 : | स्त्री० [सं० न० त०] [वि० अहिंसक] १. (जीवों या प्राणियों) में हिंसा (वध या हत्या) न करने की वृत्ति या भावना। २. धर्म-शास्त्रों के अनुसार, मन, वचन या कर्म से किसी को तनिक भी कष्ट न पहुँचने की क्रिया या भावना। किसी को कभी किसी तरह से पीड़ित न करना। (भारतीय हिंदू, जैन, बौद्ध आदि धर्मों का एक मुख्य विधान) ३. कंटक पाली या हंस नामकी घास। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहिंसावाद					 : | पुं० [ष० त०] १. वह वाद या सिंद्धांत जिसके अनुसार सभी जीवों या प्राणियों में ईश्वर की सत्ता मानी जाती है। और इसी लिए उनका वध नही किया जाता। २. किसी को कुछ भी कष्ट न पहुँचाने का सिद्धांत। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहिंसावादी (दिन्)					 : | वि० [सं० अहिंसा√वद् (बोलना)+णिनि] अहिंसा संबंधी सिद्धांतों को मानने तथा उसके अनुरूप कार्य करनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहिंस्र					 : | वि० [सं० न० त०] १. जो हिंसा न करे। अहिंसक। २. जिससे किसी को कुछ भी कष्ट या पीड़ा न पहुँचे। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहि					 : | पुं० [सं० आ√हन् (हिंसा)+डिन्, टिलोप, ह्रस्व] १. साँप। २. राहु। ३. वृत्रासुर। ४. ठग। वंचक। ५. अश्लेषा नक्षत्र। ६. पृथिवी। ७. सार्य। ८. पतिक। ९. सीमा। १. बादल। ११. नाभि। १२. जल। १३. एक वर्ण वृत्त जिसमें पहले छः भगण और तब एक मगण होता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहिक					 : | वि० वि० कुछ दिनों तक स्थिर रहनेवाला (सख्या सूचक शब्द के अंत में। जैसे—दशाहिक।) पुं० [हिं० अहि+कन्] १. ध्रुवतारा। २. अंधा। साँप। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहि-क्षेत्र					 : | पुं० [ष० त०] १. कंपिल और चंबल नदियों के बीच का पांचाल देश। २. प्राचीन दक्षिण पांचाल की राजधानी का नाम। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहिगण					 : | स० [ष० त०] पाँच मात्राओं के गण अर्थात् ठगण का एक भेद दजिसमें पहले एक गुरु और तब तीन लघु होते है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहिघुट्टना					 : | स० [सं० अभिघट्टंन] अभिघटित करना। (बनाना) उदाहरण—हीर कीर अरु बिम्ब मोती नखसिख अहिघुट्टिय।—चंदवरदाई। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| अहिच्छत्र					 : | पुं० [ष० त०] १. मेढ़ासींगी। २. दे० ‘अहिक्षेत्र’। | 
			
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				| अहिच्छत्रा					 : | स्त्री० [सं० अहिच्छन्न+टाप्] =अहिच्छत्र। | 
			
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				| अहिजित्					 : | पुं० [सं० अहि√जि (जीतना)+क्विप्] श्रीकृष्ण। | 
			
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				| अहिजिन					 : | पुं० [सं० अहिजित्] १. इंद्र। २. श्रीकृष्ण। | 
			
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				| अहि-जिह्वा					 : | स्त्री० [ष० त०] नागफनी। | 
			
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				| अहिटा					 : | पुं० [देश०] जमीदार द्वारा नियुक्त वह कर्मचारी जो असामी को खड़ी फसल तब तक काटने नही देता था जब तक वह अपना पिछला लगान चुकता न कर दे। | 
			
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				| अहित					 : | पुं० [सं० न० त०] १. हित का अभाव। २. हित का विपरीत भाव। अपकार। हानि। ३. वह जो हित (आत्मीय तथा शुभचिंतक) न हो अर्थात् विरोधी, वैरी या शत्रु। | 
			
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				| अहितकर					 : | वि० [सं० अहित√कृ (करना)+ट] जिससे अहित होता हो। अहित करनेवाला। ‘हितकर’ का विपर्याय। | 
			
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				| अहितकारी (रिन्)					 : | वि० [सं० अहित√कृ (करना)+णिनि]=अहितकर। | 
			
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				| अहिद्विष्					 : | पुं० [सं० अहि√द्विष (अप्रीति)+क्विप्] १. गरुड़। २. नेवला। ३. मोर। ४. इंद्र। | 
			
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				| अहि-नकुलिका					 : | स्त्री० [सं० अहि-नकुल, द्व० स०+वुन-अक-टाप्, इत्व] साँप और नेवले में होनेवाला अथवा इस प्रकार का सहज और स्वाभाविक वैर। | 
			
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				| अहिनाथ					 : | पुं० [ष० त०] सर्पों के राजा शेषनाग। | 
			
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				| अहिनाह					 : | पुं० =अहिनाथ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| अहिप					 : | पुं० [सं० अहि√पा (पालनकरना)+क] १. साँपों के राजा शेषनाग। २. बहुत बड़ा साँप। | 
			
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				| अहि-पताक					 : | पुं० [सं० अहि-पताका, स० त०+अच्] एक प्रकार का साँप। | 
			
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				| अहि-पति					 : | पुं० [ष० त०] १. वासुकिनाग। २. बहुत बड़ा साँप। | 
			
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				| अहिपुत्रक					 : | पुं० [सं० अहि-पुत्र, ष० त०√कै(भासित होना)+क] एक प्रकार की नाव जो सर्प के आकार की होती थी। | 
			
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				| अहि-पूतना					 : | स्त्री० [सं०] बच्चों की पीठ में होनेवाले घाव या फोड़े और उनके साथ होनेवाले पतले दस्त जो पूतना के उत्पात माने जाते है। | 
			
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				| अहि-फेन					 : | पुं० [ष० त०] १. साँप के मुँह से निकलनेवाला पेन या लार। २. अफीम। | 
			
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				| अहि-बुध्न					 : | पुं० [ब० स०] १. शिव। २. एक रुद्र का नाम। | 
			
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				| अहिभुक (ज्)					 : | पुं० [सं० अहि√भुज् (खाना)+क्विप्] १. गरुड़। २. मोर। ३. नेवला। | 
			
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				| अहिभृत्					 : | पुं० [सं० अहि√भृ (धारण करना)+क्विप्] शिव। | 
			
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				| अहिम					 : | वि० [सं० न० त०] जो हिम (बहुत ठंढा या शीतल) न हो, फलतः गरम। | 
			
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				| अहिम-कर					 : | पुं० [ब० स०] सूर्य। उदाहरण—मकरध्वज वाहणि चढ़यौ अहिमकर।—प्रिथीराज। | 
			
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				| अहिम-द्युति					 : | पुं० [ब० स०] सूर्य। | 
			
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				| अहिम-रश्मि					 : | पुं० [ब० स०] सूर्य। | 
			
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				| अहिमांशु					 : | पुं० [अहिम-अंशु, ब० स०] सूर्य। | 
			
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				| अहि-मात					 : | पुं० [सं० अहि-गति+मत्-युक्त] कुम्हार के चाक में वह गड्ढा जिसमें कीली रहती है और जिसके सहारे वह घूमता है। | 
			
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				| अहिमाली (लिन्)					 : | पुं० [सं० अहि, माला, ष० त०+इनि] साँपों की माला पहननेवाला, शिव। | 
			
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				| अहि-मेघ					 : | पुं० [ष० त०] सर्प-यज्ञ। | 
			
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				| अहिर					 : | पुं० =अहीर। | 
			
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				| अहिरख					 : | पुं० [हिं० अ+हिरख-हर्ष] १. हर्ष या प्रसन्न्ता का अभाव। २. खेद। दुःख। उदाहरण—अहिरख वायु न कीजे रे मन।—कबीर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| अहिर्बुश्न					 : | पुं० [सं० ] १. ग्यारह रुद्रों में से एक। २. उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र जिसके देवता अहिर्बुघ्न है। | 
			
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				| अहिलता					 : | स्त्री० [मध्य० स०] नागवल्ली। (पान) | 
			
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				| अहिला					 : | पुं० [सं० अभिप्लव, प्रा० अहिल्लो, हिं० हील चहला-की चड़] १. पानी की बाढ। २. उपद्रव। झगड़ा। फसाद।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| अहि-लोचन					 : | पुं० [ब० स०] शिव के एक सर्प का नाम। | 
			
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				| अहिल्ला					 : | स्त्री०=अहल्ला। | 
			
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				| अहिवन					 : | पुं० [सं० अहिवत्] सर्प। उदाहरण—धाम-धाम गावत धमारि, मनहु अहिवन मनि लिद्विय।—चंदवरदाई। | 
			
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				| अहिवर					 : | पुं० [?] दोहे का एक भेद जिसमें ५ गुरू और ३८ लघु होते है। | 
			
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				| अहि-वल्ली					 : | स्त्री० [मध्य० स०] नागवल्ली। पान। | 
			
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				| अहिवात					 : | पुं० [सं० अविधवात्व, प्रा० अबिवात्त, अहिवाद] [वि० अहिवाती] स्त्री की वह अवस्था जिसमें उसका जीवित हो। सधवा होने की अवस्था या भाव। सुहाग। | 
			
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				| अहिवातिन					 : | वि० स्त्री० [हिं० अहिवात] सधवा या सौभाग्यवती स्त्री। सुहागिन। | 
			
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				| अहिवाती					 : | वि० स्त्री० [हिं० अहिवात] सौभाग्यवती। सधवा। | 
			
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				| अहिसाव					 : | पुं० [सं० अहिशावक] साँप का बच्चा। सँपोला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| अहीक					 : | पुं० [सं० ] दल क्लेशों में से एक। (बौद्ध०) | 
			
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				| अहीन					 : | वि० [सं० न० त०] १. जो हीन या तुच्छ न हो। २. जिसमें कोई कमी, त्रुटि या बुराई न हो। ३. जो किसी की तुलना में कम न हो। पुं० १. हीन न होना। २. वासुकि। ३. [अहन्+ख-ईन] बारह दिनों में होनेवाला एक यज्ञ। | 
			
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				| अहीनगु					 : | पुं० [सं० ] एक सूर्यवंशी राजा जो देवानीक का पुत्र था। | 
			
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				| अहीनवादी (दिन्)					 : | पुं० [सं० हीन-वादी, कर्म० स० न-हीनवादी, न० त०] वह जो गवाही देने के योग्य न हो। वि० [सं० न० त०] जो वाद में निरुत्तर न हुआ हो, और इसीलिए हारा न हो। | 
			
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				| अहीर					 : | पुं० [सं० अभीर] [स्त्री० अहीरिन] एक प्रसिद्ध जाति जो गौएँ, भैसें आदि पालती और उनके दूध, दही के व्यवसाय से जीविका निर्वाह करती हो। | 
			
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				| अहीरणि					 : | पुं० [सं० अहि√ईर् (दूर करना)+अनि] दो-मुँहा साँप। | 
			
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				| अहीरी					 : | वि० [हिं० अहीर] १. अहीर संबंधी। २. अहीरों का-सा। स्त्री० अहीर जाति की स्त्री। स्त्री० -आभीरी (रागिनी)। | 
			
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				| अहीश					 : | पुं० [सं० अहि-ईश, ष० त०] १. साँपों के राजा। शेषनाग। २. शेष के अवतार लक्ष्मण, बलराम आदि। | 
			
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				| अहुँठ					 : | वि० [सं० अध्युष्ठ, अड्ढुड्ढ, अर्द्ध मा० अड्ढुडुढ] तीन और आधा। साढ़ेतीन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| अहुँठा					 : | पुं० [हिं० अहुँठ] गणित में, साढ़ेतीन का पहाड़ा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| अहुजी					 : | स्त्री० [देश] एक प्रकार का मीठा पलाव जिसमें कद्दू के छोटे-छोटे टुकड़े मिले रहते हैं।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| अहुटना					 : | अ० [सं० हठ, हिं० दे० हटना] १. अलग पृथक् या दूर होना। २. पीछे हटना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहुटाना					 : | [सं० हठ, हिं० दे० हटना] १. अलग पृथक् या दूर होना। २. पीछे हटाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| अहुत					 : | पुं० [सं० न० ब०] वह वेद-पाठ जिसमें आहुति नही दी जाती। ब्रह्मयज्ञ। | 
			
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				| अहुरमज्द					 : | पुं० [पह०] पारसियों में, धर्म और प्रकाश का अधिष्ठाता देवता। | 
			
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				| अहुँठा					 : | पुं० [सं० अध्युष्ठ] साढ़े तीन का पहाड़ा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| अहूठन					 : | पुं० [सं० स्थूण] लकड़ी का कुंदा जिस पर चारा रखकर काटा जाता है। | 
			
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				| अहे					 : | पुं० [देश०] एक पेड़ तथा उसकी लकड़ी। अव्य० [सं० हे०] १. संबोधन सूचक अव्यय। हे। २. आश्चर्य सूचक अव्यय। अहा। | 
			
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				| अहेड़					 : | पुं० =अहेर। (आखेट)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| अहेतु					 : | वि० [सं० न० ब०] १. जिसमें या जिसका कोई उद्देश्य कारण या हेतु न हो। २. व्यर्थ। फजूल। पुं० [न० त०] १. हेतु का अभाव। २. एक काव्यालंकार जिसमें कारणों के इकट्ठे रहने पर भी कार्य का न होना दिखलाया जाता है। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| अहेतुक					 : | पुं० [सं० आखेट] शिकार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| अहेर					 : | पुं० [सं० आखेट] [वि० अहेरी] १. शिकार। मृगया। २. वह जंतु जिसका शिकार किया जाए। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| अहेरी					 : | पुं० [हिं० अहेर] १. वह जो शिकार करता हो। शिकारी। २. व्याध। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहै					 : | अ० [सं० अस्] पुरानी हिंदी और ब्रजभाषा में होना क्रिया का सामान्य वर्त्तमानकालिक रूप हैं।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहैतुक					 : | वि० [सं० हेतु+ठञ्-क, न० त०] जिसमें या जिसका कोई हेतु या कारण न हो। | 
			
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				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहो					 : | अव्य० [सं० √हा(त्याग गति)+डो, न० त०] १. विस्मय, हर्ष, खेद आदि सूचक एक अव्यय। २. हे। ओ। (संबोधन)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| अहोई					 : | स्त्री० [हिं० अ+होना] दीपावली के आठ दिन के पहले होनेवाली एक पूजा जिसमें स्त्रियाँ संतान की प्राप्ति और रक्षा के लिए व्रत करती है। वि०=अनहोनी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
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				| अहोनस					 : | पुं० [सं० अहर्निश] रात-दिन। सदा। उदाहरण—प्रसणा सोण अहोनस पालत पग सावरत रहै षूमांण।—प्रिथीराज। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहोनिस					 : | क्रि० वि० [सं० अहर्निश] १. रात-दिन। सदा। २. निरंतर। लगातार।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहोरत्न					 : | पुं० [सं० अहन्-रत्न, ष० त०] सूर्य। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहोरात्र					 : | पुं० [सं० अहन्-रात्रि, द्व० स० टच्] दिन और रात दोनों। क्रि० वि० रात-दिन। सदा। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहोरा-बहोरा					 : | पुं० [सं० अहः-दिन+हिं० दे० बहुरना] विवाह होने पर दुलहिन का पहली बार ससुराल जाना और फिर उसी समय मायके लौटना। हेरा-फेरी। क्रि० वि० बार-बार। रह-रहकर। उदाहरण—शरद चंद महँ खंजन जोरी। फिर-फिरि लरहिं अहोर-बहोरी।—जायसी। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अहोरिन					 : | स्त्री० [?] एक प्रकार की चिड़िया। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अह्निज					 : | वि० [सं० अलुक्] दिन में होनेवाला। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अह्रीक					 : | वि० [सं० न० ब० कप्] निर्लज्ज। पुं० बौद्ध भिक्षु। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अह्ल					 : | वि० [अ०] योग्य अधिकारी। पात्र। विशेष—कुछ शब्दों के पहले उपसर्ग के रूप में लगकर यह ‘जानकर’ ‘वाला’ आदि अर्थ भी देता है। जैसे—अह्ले जवान-भाषाविद्। अह्ले खाना-घरवाले लोग आदि। (दे० अहल)। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अह्लकार					 : | पुं० =अहलकार। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं | 
			
					
				| अह्लमद					 : | पुं० =अहलमद। | 
			
				|  | समानार्थी शब्द- 
				उपलब्ध नहीं |