| शब्द का अर्थ | 
					
				| अहिंसक					 : | वि० [सं० न० त०] १. जो हिंसक न हो। हिंसा न करनेवाला। २. अहिंसावादी। | 
			
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				| अहिंसा					 : | स्त्री० [सं० न० त०] [वि० अहिंसक] १. (जीवों या प्राणियों) में हिंसा (वध या हत्या) न करने की वृत्ति या भावना। २. धर्म-शास्त्रों के अनुसार, मन, वचन या कर्म से किसी को तनिक भी कष्ट न पहुँचने की क्रिया या भावना। किसी को कभी किसी तरह से पीड़ित न करना। (भारतीय हिंदू, जैन, बौद्ध आदि धर्मों का एक मुख्य विधान) ३. कंटक पाली या हंस नामकी घास। | 
			
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				| अहिंसावाद					 : | पुं० [ष० त०] १. वह वाद या सिंद्धांत जिसके अनुसार सभी जीवों या प्राणियों में ईश्वर की सत्ता मानी जाती है। और इसी लिए उनका वध नही किया जाता। २. किसी को कुछ भी कष्ट न पहुँचाने का सिद्धांत। | 
			
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				| अहिंसावादी (दिन्)					 : | वि० [सं० अहिंसा√वद् (बोलना)+णिनि] अहिंसा संबंधी सिद्धांतों को मानने तथा उसके अनुरूप कार्य करनेवाला। | 
			
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				| अहिंस्र					 : | वि० [सं० न० त०] १. जो हिंसा न करे। अहिंसक। २. जिससे किसी को कुछ भी कष्ट या पीड़ा न पहुँचे। | 
			
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				| अहि					 : | पुं० [सं० आ√हन् (हिंसा)+डिन्, टिलोप, ह्रस्व] १. साँप। २. राहु। ३. वृत्रासुर। ४. ठग। वंचक। ५. अश्लेषा नक्षत्र। ६. पृथिवी। ७. सार्य। ८. पतिक। ९. सीमा। १. बादल। ११. नाभि। १२. जल। १३. एक वर्ण वृत्त जिसमें पहले छः भगण और तब एक मगण होता है। | 
			
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				| अहिक					 : | वि० वि० कुछ दिनों तक स्थिर रहनेवाला (सख्या सूचक शब्द के अंत में। जैसे—दशाहिक।) पुं० [हिं० अहि+कन्] १. ध्रुवतारा। २. अंधा। साँप। | 
			
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				| अहि-क्षेत्र					 : | पुं० [ष० त०] १. कंपिल और चंबल नदियों के बीच का पांचाल देश। २. प्राचीन दक्षिण पांचाल की राजधानी का नाम। | 
			
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				| अहिगण					 : | स० [ष० त०] पाँच मात्राओं के गण अर्थात् ठगण का एक भेद दजिसमें पहले एक गुरु और तब तीन लघु होते है। | 
			
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				| अहिघुट्टना					 : | स० [सं० अभिघट्टंन] अभिघटित करना। (बनाना) उदाहरण—हीर कीर अरु बिम्ब मोती नखसिख अहिघुट्टिय।—चंदवरदाई। | 
			
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				| अहिच्छत्र					 : | पुं० [ष० त०] १. मेढ़ासींगी। २. दे० ‘अहिक्षेत्र’। | 
			
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				| अहिच्छत्रा					 : | स्त्री० [सं० अहिच्छन्न+टाप्] =अहिच्छत्र। | 
			
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				| अहिजित्					 : | पुं० [सं० अहि√जि (जीतना)+क्विप्] श्रीकृष्ण। | 
			
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				| अहिजिन					 : | पुं० [सं० अहिजित्] १. इंद्र। २. श्रीकृष्ण। | 
			
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				| अहि-जिह्वा					 : | स्त्री० [ष० त०] नागफनी। | 
			
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				| अहिटा					 : | पुं० [देश०] जमीदार द्वारा नियुक्त वह कर्मचारी जो असामी को खड़ी फसल तब तक काटने नही देता था जब तक वह अपना पिछला लगान चुकता न कर दे। | 
			
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				| अहित					 : | पुं० [सं० न० त०] १. हित का अभाव। २. हित का विपरीत भाव। अपकार। हानि। ३. वह जो हित (आत्मीय तथा शुभचिंतक) न हो अर्थात् विरोधी, वैरी या शत्रु। | 
			
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				| अहितकर					 : | वि० [सं० अहित√कृ (करना)+ट] जिससे अहित होता हो। अहित करनेवाला। ‘हितकर’ का विपर्याय। | 
			
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				| अहितकारी (रिन्)					 : | वि० [सं० अहित√कृ (करना)+णिनि]=अहितकर। | 
			
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				| अहिद्विष्					 : | पुं० [सं० अहि√द्विष (अप्रीति)+क्विप्] १. गरुड़। २. नेवला। ३. मोर। ४. इंद्र। | 
			
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				| अहि-नकुलिका					 : | स्त्री० [सं० अहि-नकुल, द्व० स०+वुन-अक-टाप्, इत्व] साँप और नेवले में होनेवाला अथवा इस प्रकार का सहज और स्वाभाविक वैर। | 
			
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				| अहिनाथ					 : | पुं० [ष० त०] सर्पों के राजा शेषनाग। | 
			
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				| अहिनाह					 : | पुं० =अहिनाथ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| अहिप					 : | पुं० [सं० अहि√पा (पालनकरना)+क] १. साँपों के राजा शेषनाग। २. बहुत बड़ा साँप। | 
			
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				| अहि-पताक					 : | पुं० [सं० अहि-पताका, स० त०+अच्] एक प्रकार का साँप। | 
			
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				| अहि-पति					 : | पुं० [ष० त०] १. वासुकिनाग। २. बहुत बड़ा साँप। | 
			
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				| अहिपुत्रक					 : | पुं० [सं० अहि-पुत्र, ष० त०√कै(भासित होना)+क] एक प्रकार की नाव जो सर्प के आकार की होती थी। | 
			
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				| अहि-पूतना					 : | स्त्री० [सं०] बच्चों की पीठ में होनेवाले घाव या फोड़े और उनके साथ होनेवाले पतले दस्त जो पूतना के उत्पात माने जाते है। | 
			
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				| अहि-फेन					 : | पुं० [ष० त०] १. साँप के मुँह से निकलनेवाला पेन या लार। २. अफीम। | 
			
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				| अहि-बुध्न					 : | पुं० [ब० स०] १. शिव। २. एक रुद्र का नाम। | 
			
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				| अहिभुक (ज्)					 : | पुं० [सं० अहि√भुज् (खाना)+क्विप्] १. गरुड़। २. मोर। ३. नेवला। | 
			
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				| अहिभृत्					 : | पुं० [सं० अहि√भृ (धारण करना)+क्विप्] शिव। | 
			
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				| अहिम					 : | वि० [सं० न० त०] जो हिम (बहुत ठंढा या शीतल) न हो, फलतः गरम। | 
			
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				| अहिम-कर					 : | पुं० [ब० स०] सूर्य। उदाहरण—मकरध्वज वाहणि चढ़यौ अहिमकर।—प्रिथीराज। | 
			
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				| अहिम-द्युति					 : | पुं० [ब० स०] सूर्य। | 
			
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				| अहिम-रश्मि					 : | पुं० [ब० स०] सूर्य। | 
			
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				| अहिमांशु					 : | पुं० [अहिम-अंशु, ब० स०] सूर्य। | 
			
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				| अहि-मात					 : | पुं० [सं० अहि-गति+मत्-युक्त] कुम्हार के चाक में वह गड्ढा जिसमें कीली रहती है और जिसके सहारे वह घूमता है। | 
			
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				| अहिमाली (लिन्)					 : | पुं० [सं० अहि, माला, ष० त०+इनि] साँपों की माला पहननेवाला, शिव। | 
			
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				| अहि-मेघ					 : | पुं० [ष० त०] सर्प-यज्ञ। | 
			
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				| अहिर					 : | पुं० =अहीर। | 
			
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				| अहिरख					 : | पुं० [हिं० अ+हिरख-हर्ष] १. हर्ष या प्रसन्न्ता का अभाव। २. खेद। दुःख। उदाहरण—अहिरख वायु न कीजे रे मन।—कबीर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| अहिर्बुश्न					 : | पुं० [सं० ] १. ग्यारह रुद्रों में से एक। २. उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र जिसके देवता अहिर्बुघ्न है। | 
			
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				| अहिलता					 : | स्त्री० [मध्य० स०] नागवल्ली। (पान) | 
			
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				| अहिला					 : | पुं० [सं० अभिप्लव, प्रा० अहिल्लो, हिं० हील चहला-की चड़] १. पानी की बाढ। २. उपद्रव। झगड़ा। फसाद।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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				| अहि-लोचन					 : | पुं० [ब० स०] शिव के एक सर्प का नाम। | 
			
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				| अहिल्ला					 : | स्त्री०=अहल्ला। | 
			
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				| अहिवन					 : | पुं० [सं० अहिवत्] सर्प। उदाहरण—धाम-धाम गावत धमारि, मनहु अहिवन मनि लिद्विय।—चंदवरदाई। | 
			
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				| अहिवर					 : | पुं० [?] दोहे का एक भेद जिसमें ५ गुरू और ३८ लघु होते है। | 
			
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				| अहि-वल्ली					 : | स्त्री० [मध्य० स०] नागवल्ली। पान। | 
			
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				| अहिवात					 : | पुं० [सं० अविधवात्व, प्रा० अबिवात्त, अहिवाद] [वि० अहिवाती] स्त्री की वह अवस्था जिसमें उसका जीवित हो। सधवा होने की अवस्था या भाव। सुहाग। | 
			
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				| अहिवातिन					 : | वि० स्त्री० [हिं० अहिवात] सधवा या सौभाग्यवती स्त्री। सुहागिन। | 
			
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				| अहिवाती					 : | वि० स्त्री० [हिं० अहिवात] सौभाग्यवती। सधवा। | 
			
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				| अहिसाव					 : | पुं० [सं० अहिशावक] साँप का बच्चा। सँपोला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) | 
			
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