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आरती  : स्त्री० [सं० आरात्रिका] १. देव-पूजन अथवा परम आदरणीय या आराध्य व्यक्ति के स्वागत के समय घी का दिया, कपूर या धूप आदि जलाकर बार-बार घुमाते हुए सामने रखना। नीराजन। मुहावरा—आरती उतारना या करना=घी का दिया कपूर आदि जलाकर बार-बार देवता के मुख तथा अन्य अंगों के सामने भक्तिपूर्वक घुमाना। आरती लेना-आरती कर चुकने के बाद उसकी लौ पर दोनों हथलियाँ रखकर फिर उनसे अपनी आँखें और मुँह छूना। २. वह विशेष प्रकार का आधान या पात्र जिसमें उक्त क्रिया के लिए घी और रूई की बत्ती या बत्तियाँ रखी जाती है। ३. वह विशिष्ट स्त्रोत जो किसी देवता को आरती करने के समय पढ़ा जाता है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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