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आर्त्त  : वि० [सं० आ√ऋ (गति)+क्त] [भाव० आर्ति, आर्त्तता] १. विपत्ति या संकट में पड़ा हुआ। २. जिसे आघात लगा या कष्ट पहुँचा हुआ हो। पीड़ित। ३. जो उक्त स्थिति में पड़कर विह्रल हो रहा हो और अपने छुटकारे के लिए सहायता चाहता हो। ४. जिससे विशेष दुःख या संकट प्रकट होता हो। जैसे—आर्त्त स्वर। ५.अस्वस्थ। रूग्ण। बीमार। ६.नश्वर। पुं० चार प्रकार के भक्तों में से एक जो संसार के कष्टों से परम दुःखी होकर भगवान की शरण में जाता है।
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आर्त्तता  : स्त्री० [सं० आर्त्त+तल्-टाप्] १. आर्त्त होने की अवस्था या भाव। २. कष्ट। दुःख।
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आर्त्तध्वनि  : स्त्री० [ष० त०] आर्त्त नाद।
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आर्त्तनाद  : पुं० [ष० त०] जोर का ऐसा नाद या शब्द जो घोर संकट में पड़े हुए व्यक्ति के मुहँ से निकलता है। परम दुखिया की दर्द भरी पुकार।
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आर्त्तभक्ति  : स्त्री० [ष० त०] गौणी भक्ति का भेद जिसमें भक्त कष्ट में पड़कर तथा उसे दूर करने के लिए आर्त्त-भाव से उपासना और प्रार्थना करता है।
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आर्त्तव  : वि० [सं० ऋतु+अण्] [स्त्री० आर्त्तवी ऋतु+अण्] १. ऋतु या मौसिम से संबंध रखनेवाला। २. किसी विशिष्ट ऋतु में उत्पन्न होनेवाला। मौसिमी। पुं० ऋतुमती स्त्रियों के मासिक धर्म के समय निकलनेवाला रज। पुष्प।
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आर्त्तव-दोष  : पुं० [कर्म० स०] स्त्रियों के मासिक धर्म की गड़बड़ी। ऋतु-दोष।
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आर्त्तवेयी  : स्त्री० [सं० ऋतु+ञक्-एय-ङीष्] ऋतुमती या रजस्वला स्त्री।
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आर्त्ति  : स्त्री० [सं० आ√ऋ+क्तिन्] १. आर्त्त होने की अवस्था या भाव। आर्त्तता। २. कष्ट। दुःख। ३. रुग्णता। बीमारी।
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आर्त्त्विज  : वि० [सं० ऋत्विज्+अण्] [स्त्री० आर्त्त्विजी] ऋत्विज संबंधी।
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