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शब्द का अर्थ

उक्त  : वि० [सं०√वच् (बोलना)+क्त] १. कहा या बतलाया हुआ। २. जिसका वर्णन ऊपर या पहले हुआ हो। जो ऊपर या पहले कहा गया हो। (एफोरसेड)।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
उक्त-निमित्त  : वि० [ब० स०] [स्त्री० उक्त=निमित्ता] जिसका निमित्त या कारण स्पष्ट शब्दों में कहा गया हो। जैसे—उक्त निमित्ता। विशेषोक्ति।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
उक्त-प्रत्युक्त  : पुं० [द्व० स०] १. लास्य के दस अंगों में से एक। २. कोई कही हुई बात और उसका दिया हुआ उत्तर। बात-चीत। कथोपकथन।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
उक्ताक्षेप  : पुं० [उक्त-आक्षेप, तृ० त०] साहित्य में आक्षेप अंलकार का एक भेद, जिसमें किसी से कोई बात इस ढंग से कही जाती है कि उससे नहिक, निषेध या निवारण का भाव प्रकट होता है। जैसे—आप वहाँ जाइये न, मैं क्या मना करता हूँ। (अर्थात् आप वहाँ मत जाएँ)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
उक्ति  : स्त्री० [सं०√वच्+क्तिन्] १. किसी की कही हुई कोई बात। कथन। वचन। २. किसी की कही हुई कोई ऐसी अनोखी या महत्त्व की बात जिसका कहीं उल्लेख या चर्चा की जाय। (अटरेन्स)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
उक्ति-युक्ति  : स्त्री० [द्व० स०] किसी समस्या के निराकरण के लिए कही हुई कोई बात और बतलाई हुई तरकीब या उक्ति। क्रि० प्र०-भिड़ना।—लगाना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
उक्ती  : स्त्री० =उक्ति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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उक्त  : वि० [सं०√वच् (बोलना)+क्त] १. कहा या बतलाया हुआ। २. जिसका वर्णन ऊपर या पहले हुआ हो। जो ऊपर या पहले कहा गया हो। (एफोरसेड)।
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उक्त-निमित्त  : वि० [ब० स०] [स्त्री० उक्त=निमित्ता] जिसका निमित्त या कारण स्पष्ट शब्दों में कहा गया हो। जैसे—उक्त निमित्ता। विशेषोक्ति।
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उक्त-प्रत्युक्त  : पुं० [द्व० स०] १. लास्य के दस अंगों में से एक। २. कोई कही हुई बात और उसका दिया हुआ उत्तर। बात-चीत। कथोपकथन।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
उक्ताक्षेप  : पुं० [उक्त-आक्षेप, तृ० त०] साहित्य में आक्षेप अंलकार का एक भेद, जिसमें किसी से कोई बात इस ढंग से कही जाती है कि उससे नहिक, निषेध या निवारण का भाव प्रकट होता है। जैसे—आप वहाँ जाइये न, मैं क्या मना करता हूँ। (अर्थात् आप वहाँ मत जाएँ)
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उक्ति  : स्त्री० [सं०√वच्+क्तिन्] १. किसी की कही हुई कोई बात। कथन। वचन। २. किसी की कही हुई कोई ऐसी अनोखी या महत्त्व की बात जिसका कहीं उल्लेख या चर्चा की जाय। (अटरेन्स)
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उक्ति-युक्ति  : स्त्री० [द्व० स०] किसी समस्या के निराकरण के लिए कही हुई कोई बात और बतलाई हुई तरकीब या उक्ति। क्रि० प्र०-भिड़ना।—लगाना।
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उक्ती  : स्त्री० =उक्ति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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