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ऊँचा  : वि० [सं० प्रा० पा० उच्च, गु० ऊँचो, पं० उच्चा, मरा० उचा, सि० ऊचो, सिह० उसू] [भाव० ऊँचाई, स्त्री० ऊँची] १. किसी आधार या तल के विचार से, जो ऊपर की ओर दूर तक चला गया हो। ऊर्ध्व दिशा में गया हुआ। यथेष्ट ऊपर उठा हुआ। नीचा का विपर्याय। जैसे—ऊँची दीवार, ऊँचा पेड़, ऊँचा मकान। २. तल या भूमि से बहुत कुछ ऊपर या ऊपरी भाग में स्थित। जैसे—(क) यह चित्र बहुत ऊँचा टँगा है। (ख) इस वृक्ष की शाखाएँ इतनी ऊँची है कि उन तक हाथ नहीं पहुँचता। ३. आस-पास के तल से ऊपर उठा हुआ। जैसे—ऊँची जमीन, ऊँचा टीला। ४. मान या माप के विचार से, कुछ नियत या विशिष्ट विस्तार का। लंबा। जैसे—चार हाथ ऊँचा पौधा, दस हाथ ऊँचा बाँस। ५. किसी नियत या निश्चित बिन्दु से ऊपर उठा हुआ। जैसे—गोली (या तीर) का निशाना कुछ ऊँचा लगा था, जिससे शेर (या हिरन) बचकर भाग गया। ६. किसी विशिष्ट मात्रा या मान से अथवा किसी मानक स्तर से आगे बढ़ा हुआ। जैसे—(क) उनका खर्च बहुत ऊँचा है। (ख) अब तो सारी चीजों का भाव ऊँचा होता जाता है। ७. अधिकार, पद, मर्यादा आदि के विचार से, औरों से आगे बढ़ा हुआ या ऊपर माना जानेवाला। जैसे—ऊँची अदालत, ऊँची जाति, ऊँचा पद। ८. गंभीरता, नैतिकता, मनन-शीलता आदि के विचार से, औरों से आगे बढ़ा हुआ। उत्तम। श्रेष्ठ। जैसे—ऊँचा आदर्श, ऊँचे विचार। ९. उदारता, परोपकारिता, सहृदयता आदि से युक्त और श्रेष्ठ पक्ष में रहनेवाला। जैसे—ऊँचे आदमियों का हाथ भी सदा ऊँचा (अर्थात् दान-शीलता में प्रवृत्त) रहता है। १॰० (ध्वनि या शब्द) जो साधारण से अधिक ऊपर उठा हुआ या तेज हो। जोर का। तीव्र। जैसे—ऊँची आवाज, ऊँचा स्वर। मुहावरा—ऊंचा सुनना कुछ बहरे होने के कारण ऐसा ही शब्द सुन सकना जो ऊँचा, जोर या का तीव्र हो। जैसे—आज-कल वह कुछ ऊँचा सुनने लगा है। पद—ऊँचा नीचा, ऊँचे-नीचे। (दे०)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
ऊँचाई  : स्त्री० [हिं० ऊँचा+ई (प्रत्यय)] १. ऊँचे या उच्च होने की अवस्था या भाव। उच्चता। (हाइट) २. गौरव। बड़ाई।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
ऊँचा-नीचा  : वि० [हिं० ऊँचा+नीचा] [स्त्री० ऊँची-नीची] १. (स्थान) जो बीच-बीच में कहीं कुछ ऊँचा और कहीं कुछ नीचा हो। उबड-खाबड़। असम। मुहावरा—ऊँचे-नीचे पैर पड़ना=कुमार्ग आदि में प्रवृत्त होना, विशेषतः लैगिक दृष्टि से पतन होना। जैसे—लड़के पर ध्यान रखो, कहीं ऊँचे-नीचे पैर न पड़ जाय। २. (कार्य या व्यवहार) जिसमें कही कोई भलाई हो और कही कोई बुराई। भले-बुरे, हानि-लाभ आदि से युक्त। जैसे—(क) उन्हें सब ऊँचा-नीचा समझा देना चाहिए। (ख) सब ऊँचा-नीचा सोच लो, तब पैर आगे बढ़ाओ। ३. (उक्ति या कथन) जो कहीं कुछ अच्छा या उचित भी हो और कहीं कुछ बुरा या अनुचित भी हो। खरा और खोटा दोनों। जैसे—उन्हें जरा ऊँची-नीची (बातें) सुनाओ, तब वे मानेगे।
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ऊँचा  : वि० [सं० प्रा० पा० उच्च, गु० ऊँचो, पं० उच्चा, मरा० उचा, सि० ऊचो, सिह० उसू] [भाव० ऊँचाई, स्त्री० ऊँची] १. किसी आधार या तल के विचार से, जो ऊपर की ओर दूर तक चला गया हो। ऊर्ध्व दिशा में गया हुआ। यथेष्ट ऊपर उठा हुआ। नीचा का विपर्याय। जैसे—ऊँची दीवार, ऊँचा पेड़, ऊँचा मकान। २. तल या भूमि से बहुत कुछ ऊपर या ऊपरी भाग में स्थित। जैसे—(क) यह चित्र बहुत ऊँचा टँगा है। (ख) इस वृक्ष की शाखाएँ इतनी ऊँची है कि उन तक हाथ नहीं पहुँचता। ३. आस-पास के तल से ऊपर उठा हुआ। जैसे—ऊँची जमीन, ऊँचा टीला। ४. मान या माप के विचार से, कुछ नियत या विशिष्ट विस्तार का। लंबा। जैसे—चार हाथ ऊँचा पौधा, दस हाथ ऊँचा बाँस। ५. किसी नियत या निश्चित बिन्दु से ऊपर उठा हुआ। जैसे—गोली (या तीर) का निशाना कुछ ऊँचा लगा था, जिससे शेर (या हिरन) बचकर भाग गया। ६. किसी विशिष्ट मात्रा या मान से अथवा किसी मानक स्तर से आगे बढ़ा हुआ। जैसे—(क) उनका खर्च बहुत ऊँचा है। (ख) अब तो सारी चीजों का भाव ऊँचा होता जाता है। ७. अधिकार, पद, मर्यादा आदि के विचार से, औरों से आगे बढ़ा हुआ या ऊपर माना जानेवाला। जैसे—ऊँची अदालत, ऊँची जाति, ऊँचा पद। ८. गंभीरता, नैतिकता, मनन-शीलता आदि के विचार से, औरों से आगे बढ़ा हुआ। उत्तम। श्रेष्ठ। जैसे—ऊँचा आदर्श, ऊँचे विचार। ९. उदारता, परोपकारिता, सहृदयता आदि से युक्त और श्रेष्ठ पक्ष में रहनेवाला। जैसे—ऊँचे आदमियों का हाथ भी सदा ऊँचा (अर्थात् दान-शीलता में प्रवृत्त) रहता है। १॰० (ध्वनि या शब्द) जो साधारण से अधिक ऊपर उठा हुआ या तेज हो। जोर का। तीव्र। जैसे—ऊँची आवाज, ऊँचा स्वर। मुहावरा—ऊंचा सुनना कुछ बहरे होने के कारण ऐसा ही शब्द सुन सकना जो ऊँचा, जोर या का तीव्र हो। जैसे—आज-कल वह कुछ ऊँचा सुनने लगा है। पद—ऊँचा नीचा, ऊँचे-नीचे। (दे०)
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ऊँचाई  : स्त्री० [हिं० ऊँचा+ई (प्रत्यय)] १. ऊँचे या उच्च होने की अवस्था या भाव। उच्चता। (हाइट) २. गौरव। बड़ाई।
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ऊँचा-नीचा  : वि० [हिं० ऊँचा+नीचा] [स्त्री० ऊँची-नीची] १. (स्थान) जो बीच-बीच में कहीं कुछ ऊँचा और कहीं कुछ नीचा हो। उबड-खाबड़। असम। मुहावरा—ऊँचे-नीचे पैर पड़ना=कुमार्ग आदि में प्रवृत्त होना, विशेषतः लैगिक दृष्टि से पतन होना। जैसे—लड़के पर ध्यान रखो, कहीं ऊँचे-नीचे पैर न पड़ जाय। २. (कार्य या व्यवहार) जिसमें कही कोई भलाई हो और कही कोई बुराई। भले-बुरे, हानि-लाभ आदि से युक्त। जैसे—(क) उन्हें सब ऊँचा-नीचा समझा देना चाहिए। (ख) सब ऊँचा-नीचा सोच लो, तब पैर आगे बढ़ाओ। ३. (उक्ति या कथन) जो कहीं कुछ अच्छा या उचित भी हो और कहीं कुछ बुरा या अनुचित भी हो। खरा और खोटा दोनों। जैसे—उन्हें जरा ऊँची-नीची (बातें) सुनाओ, तब वे मानेगे।
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