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कजली  : स्त्री० [हिं० काजल] १. वह कालिख, जो दिया जलने पर उसके ऊपर जमती है, और जिससे काजल बनता है। २. ऐसी गौ, जिसकी आँखें काजल के रंग की अर्थात् काली हों। ३. ऐसी भेंड़, जिसकी आँख के चारों ओर काले बालों का घेरा हो। ४. उत्तर-प्रदेश, बिहार आदि में वर्षा ऋतु में गाये जानेवाले एक प्रकार के लोकगीत, जिनकी बीसियों धुनें होती हैं। ५. भादों बदी तीज को होनेवाला स्त्रियों का एक त्योहार, जिसमें वे प्रायः रात-भर उक्त प्रकार के गीत गाती और नाचती है। मुहावरा—कजली खेलना=स्त्रियों का घेरा या झुरमुट बनाकर झूमते हुए कजलियाँ गाना। ६. जौ के वे नये अंकुर, जो उक्त त्योहार पर स्त्रियाँ अपनी सखियों और संबंधियों में बाँटती हैं। ७. वैद्यक में एक ओषध, जिसे गंधक और पारे के योग से बनाते है, और जिसका उपयोग भस्म या रस प्रस्तुत करने में होता है। ८. एक प्रकार का गन्ना। ९. एक प्रकार की मछली। १॰. वनस्पतियों आदि का एक रोग, जिससे उनकी पत्तियों, फूलों आदि पर काली धूल-सी जम जाती है।
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कजली-तीज  : स्त्री० [हिं० कजली+तीज] भादों बदी तीज,जिस दिन स्त्रियाँ रात-भर कजली गाती और नाचती हैं।
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कजली-बन  : पुं० [सं० कदलीवन] १. केले का जंगल। २. आसाम का एक जंगल जो अच्छे हाथियों के लिए प्रसिद्ध है।
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