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कतरन  : स्त्री० [हिं० कतरना] १. कतरने की क्रिया, ढंग या भाव। २. किसी वस्तु के वे छोटे-छोटे टुकड़े जो किसी कारण विशेष से उस वस्तु से काटकर अलग किये गये हों। जैसे—(क) कपड़े या कागज की कतरन। (ख) गरी का कतरन।
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कतरना  : स० [सं० कर्तन या कृंतन] १. कपड़े कागज या लोहे आदि की चद्दरों को कैंची से काटकर दो या कई टुकड़ों में विभक्त करना। २. लाक्षणिक अर्थ में, बीच में से काटना। जैसे—बात कतरना। ३. किसी प्रकार काट या निकालकर अलग करना। जैसे—पाँच रुपए आप ने भी उसमें से कतर लिये। ४. दे० ‘कुतरना’। पुं० [स्त्री० अल्पा० कतरनी] बड़ी कतरनी या कैंची।
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कतरनाल  : स्त्री० [हिं० कतरना+नाल=चरखी] एक प्रकार की दोहरी गड़ारीवाली चरखी।
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कतरनी  : स्त्री० [हिं० कतरना या सं० कर्त्तनी] दो फलोंवाला एक प्रसिद्ध उपकरण जिससे कपड़े,कागज आदि काटे जाते हैं। कैंची। मुहावरा—कतरनी की तरह (या कतरनी सी) जबान चलना=बहुत जल्दी-जल्दी और अनावश्यक रूप से और कुछ उद्दंडतापूर्वक मुँह से बातें निकालना। २. लुहारों, सुनारों आदि की कैची की तरह का वह औजार जिससे वे धातु की चादरें या पत्तर काटते हैं। ३. कोई चीज काटने वाला औजार। जैसे—जुलाहों, तमोलियों, मोचियों आदि की कतरनी। स्त्री० [?] दक्षिण भारत की नदियों में पायी जानेवाली एक प्रकार की मछली।
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