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कर्ज  : पुं० [अ०] उधार लिया हुआ धन। ऋण। मुहा०—कर्ज उतारना=ऋण चुकाना। (किसी का) कर्ज खाना=किसी के अधीन, उपकृत या ऋणी होना। (व्यंग्य) जैसे ही हाँ, मैने तो आप का कर्ज ही खाया है जौ आप का हुकुम मानूँ। (कोई काम करने के लिए) कर्ज खाये बैठे रहना=सदा और सब प्रकार से उद्यत या प्रस्तुत रहना। जैसे—वह तो तुम्हारी बुराई करने के लिए कर्ज खाये बैठे है।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
कर्जदार  : विं० [फा०] जिसने किसी से कुछ धन उधार लिया हो ऋणी।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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