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कोख  : स्त्री० [सं० कुक्षि, पा० कुच्ची, प्रा० कुच्छि, कुख्खी, गुं० कुख, सि० कुक्कि, पं० कुक्ख, मरा० कूस] १. पसलियों के नीचे पेट के दोनों तरफ का स्थान। २. उदर। पेट। मुहावरा—कोखे लगना या सटना=अधिक भूख लगने के कारण पेट का पीठ से चिपका हुआ दिखाई पड़ना। ३. गर्भाशय। मुहावरा—कोख उजड़ना=संतान का मर जाना। बच्चा मर जाना-(स्त्रियाँ) कोख खुलना=बहुत दिन की प्रतीक्षा के बाद संतान होना। बाँझपन मिटना। कोख बंद होना=(स्त्री का) बाँझ होना। संतान न होना। कोख माँग से ठंढ़ी या भरी पूरी रहना-सन्तान और पति का सुख देखते रहना (आशीर्वाद) कोख मारी जाना=दे० ‘कोख बंद होना’। पद—कोख की आँच=संतान का कष्ट या वियोग। कोख की बीमारी या रोग-संतति न होने या होकर मर जाने का रोग।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
कोखजली  : वि० [हिं० कोख+जलना] (स्त्री) जिसकी संतान जीवित न रहती हो (पुं० स्त्रियों को दिया जानेवाला एक प्रकार का अभिशाप या गाली)।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
कोखबंद  : वि० [हिं० कोख+बंद] (स्त्री) जिसे संतान न होती हो। बाँझ। वंध्या।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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