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शब्द का अर्थ

क्षिप्र  : अव्य० [सं०√क्षिप् (प्रेरणा)+रक] १. शीघ्र। जल्दी। २. तत्काल। तुरंत। वि० १. तेजी से चलता हुआ। २. अस्थिर। चंचल। पुं० १. शरीर में अँगूठे और तर्जनी या दूसरी ऊंगली के बीच का स्थान जो वैद्यक में मर्मस्थल माना गया है। २. एक मुहूर्त्त का पन्द्रहवाँ भाग।
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क्षिप्रपाकी  : पुं० [सं० क्षिप्र√पच् (पाक)+घिनुण्, (बा०)] गर्दभांड नामक वृक्ष। पारस पीपल।
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क्षिप्र-मूत्र  : पुं० [सं० ब० स०] जल्दी-जल्दी और बार-बार पेशाब होने का रोग। बहुमूत्र।
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क्षिप्र-श्येन  : पुं० [कर्म० स०] एक प्रकार का बाज पक्षी।
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क्षिप्र-हस्त  : वि [ब० स०] जिसका हाथ बहुत तेज चलता हो। बहुत जल्दी काम करनेवाला। कुशल। पुं० १. अग्नि। २. एक राक्षस।
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क्षिप्र-होम  : पुं० [मध्य० स०] जल्दी-जल्दी किया जाने वाला होम (जिसमें बहुत-सी बातें छोड़ दी जाती हैं)।
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