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घाट  : पुं० [सं० घट्ट] १. जलाशय,नदी आदि के तट पर वह स्थान जहाँ लोग विशेष रूप से नहाते, धोते, जल भरते, नावों पर चढ़ते-उतरते, अथवा उन पर सामान आदि लादते उतारते हों मुहावरा– घाट नहाना=किसी के मरने पर उदक क्रिया करना। (नाव का) गाट लगना=नाव का सवारियाँ चढ़ाने या उतारने,सामान लादने या उतारने के लिए घाट पर पहुँचना या किनारे पर लगना। (लोगों का) घाट लगना=नाव द्वारा नदी पार जाने के इच्छुक व्यक्तियों का घाट पर इकट्ठा होना। २. तालाब, नदी आदि के तट के आस-पास का वह स्थान जहाँ सीढ़ियाँ आदि बनी होती है तथा जिस पर से होकर लोग जल तक पहुँचते हैं। ३. चढ़ाव-उतार का पहाड़ी मार्ग। ४. पहाड़। जैसे– पूर्वी तट। ५. किसी चीज की बनावट में वह अंश जिसमें कुछ चढ़ाव उतार या गोल रेखा का सा रूप हो। पद-घर घाट।(देखे)। ५. कोई काम पूरा होने की जगह या स्थान। ठिकाना। मुहावरा–घाट-घाट का पानी पीना= (क अनेक स्थानों को देख आना अथवा वहाँ रह आना। (ख) अनेक तथा तरह-तरह की चीजों के स्वाद लेना अथवा तरह-तरह के काम करना। ६. ओर। तरफ। दिशा। ७. चाल-चलन। रंग-ढंग। ८. तलवार की धार। ९. जौ की गिरी। १॰. दुलहिन का लहँगा। ११. रहस्य संप्रदाय में, घट का हृदय। स्त्री० [हिं० घटिया=बुरा] १. धोखा। छल। कपट। २. कुकर्म। बुराई। स्त्री० [हिं,.घटना] घटने या घटकर होने की अवस्था या भाव। वि० [हिं० घट] १. कम। थोड़ा। २. घटिया। क्रि० वि० घटकर। पुं० [सं०√घट्+घञ्+अच्] [स्त्री० घाटी,घाटिका] १. गरदन का पिछला भाग। २. अंगिया में का गला।
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घाटना  : अ०=घटना।(कम होना)।
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घाट-पहल  : पुं० [हिं०] गढ़ या तरासकर बनाई जानेवाली चीज में उसकी बनावट का उतार-चढ़ाव और पार्श्व जो उसे सुड़ौल बनाते हैं। जैसे– इस हीरे का घाट-पहर बहुत बढ़िया है।
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घाट-बंदी  : स्त्री० [हिं० घाट+बंदी] १. घाट पर नाव लाने-ले जाने अथवा माल आदि चढ़ाने या उतारने का निषेध या रुकावट। (एम्बार्गो) २. घाट बाँधने अर्थात् बनाने की क्रिया, ढंग भाव या रूप।
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घाटवाल  : पुं० [हिं० घाट+वाला (प्रत्य)] १. घाट का अधिकारी, मालिक या स्वामी। २. वह ब्राह्मण जो घाट पर बैठकर स्नान करनेवाले से दान-दक्षिणा लेता हो। घाटिया।
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घाटा  : पुं० [हिं० घटना] १. घटने की क्रिया या भाव। २. वह (धन या सामग्री) जो कुछ घंटे या कम पड़े। ३. लेन-देन व्यापार आदि में होनेवाली आर्थिक हानि। टोटा। नुकसान। (लाँस)। क्रि०प्र०-आना।–उठाना।–खाना।–देना।–पड़ना।–भरना।–सहना।–होना। पुं० [हिं० घाटी] पहाड़ी मार्ग।
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घाटारोह  : पुं० [हिं० घाट+सं० रोध] घाट पर का आवागमन बंद करना। घाट पर किसी को आने-जाने उतरने-चढ़ने न देना। घाट रोकना।
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घाटि  : वि० [हिं० घटना] कम। न्यून। क्रि० वि० किसी की तुलना में कम,थोड़ा या हलका। स्त्री० [सं० घात] अनुचित और निंदनीय कर्म। दुष्कर्म।
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घाटिका  : स्त्री० [सं० घाट+कन्-टाप्,इत्व] गले का पिछला भाग। गरदन।
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घाटिया  : पुं० [सं० घाट+इया(प्रत्यय)] १. वह ब्राह्मण जो घाट पर बैठकर नहाने वालों से दान-दक्षिणा आदि लेता हो। २. घाट का स्वामी।
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घाटी  : स्त्री० [सं० घाट] १. दो पर्वत-श्रेणियों के बीच का तंग या सकरा मार्ग। २. पर्वतीय प्रदेशों के बीच में पड़नेवाला मैदान। जैसे– कश्मीर की घाटी। ३. चढ़ाव या उतार का पहाड़ी मार्ग। पहाड़ की ढाल। ४. वह पत्र जिसमें यह लिखा रहता है कि घाट पर आने या वहाँ से जानेवाले माल का महसूल चुका दिया गया है। स्त्री० [सं० घाटिया] गले का पिछला भाग।
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घाटी-मार्ग  : पुं० [हिं० घाट+सं० मार्ग] १. पहाड़ियों के बीच में नदी की धारा आदि से बना हुआ संकीर्ण पथ। २. दर्रा।
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घाटो  : पुं०=घाटा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि० [हिं० घटना] दरिद्र। गरीब। पुं० [हिं० घाट] १. एक प्रकार का गीत जो घाट पर पानी भरने के समय स्त्रियाँ गाती थी। २. दे० ‘घाँटो’।
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