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चत्वर  : पुं० [सं०√चत् (स्वीकार करना)+ष्वरच्] १. कोई चौकोर टुकड़ा या स्थान। २. वह स्थान जहाँ चार भिन्न-भिन्न मार्ग आकर मिलते हों। चौमुहानी। चौराहा। ३. वह स्थान जहाँ भिन्न-भिन्न जातियों, देशों आदि के लोग आकर एकत्र होते या मिलते हों। ४. हवन आदि के लिए बनाया हुआ चौतरा या वेदी। ५. चार रथों का समूह।
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चत्वर-वासिनी  : स्त्री० [सं० चत्वर√वस् (रहना)+णिनि-ङीष्] कार्तिकेय की एक मातृका।
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