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चित्त-भू  : पुं० [सं० चित्त√भू (होना)+क्विप्, उप० स०] १. प्रेम। २. कामदेव।
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चित्त-भूमि  : स्त्री० [ष० त०] योग-साधन के समय होनेवाली चित्त की भिन्न-भिन्न अवस्थाएँ या वृत्तियाँ जिनमें से कुछ तो अनुकूल और कुछ बाधक होती हैं। मुख्यतः क्षिप्त, मूल, विक्षिप्त और निरुद्ध ये पाँच चित्तभूमियाँ मानी गई है जिनमें से अन्तिम दो योग-साधन के लिए अनुकूल होती हैं।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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