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चुकना  : अ० [सं० च्यव, चुक्क, प्रा० चुक्कइ, उ० चुकाइबा, पं० चुक्कणा, सि० चुकणु, गु० चुकबूँ, मरा० चुकणें] १.(काम या बात का) पूरा या समाप्त होना। बाकी न रहना। २. (पदार्थ का) कम होते होते निःशेष या समाप्त होना। जैसे–घर में आटा चुक गया। ३. (ऋण या देन का) पूरा-पूरा परिशोध होना। देना बाकी न रहना। जैसे–उनका हिसाब तो कभी का चुक गया। ४. (झगड़ा या बखेड़ा) तै हो जाना। निपटना। जैसे–चलो, आज यह झगड़ा भी चुका। ५. एक संयोज्य क्रिया, जो मुख्य क्रिया की समाप्ति की सूचक होती है। जैसे–खेल चुकना, लड़ चुकना आदि। ६. दे० कूकना। अ० चूकना। उदाहरण–चुकइन घात मुठ भेरी।–तुलसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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