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छलाँग  : स्त्री० [हिं० छाल-उछाल+अंग] एक स्थान से खड़े-खड़े वेगपूर्वक उछलकर दूसरे स्थान पर जा खड़े होने की क्रिया या भाव। क्रि० प्र०–भरना। मुहावरा–छलाँगें मारना= (क) बहुत तेजी से चलना। (ख) जल्दी-जल्दी उन्नति करते हुए ऊँचे पर पर पहुँचना।
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छलाँगना  : अ० [हिं० छलाँग] छलाँगे भरते हुए आगे बढ़ना।
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छला  : पुं=छल्ला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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छलाई  : स्त्री०=छल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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छलाना  : स० [हिं० छल्ला का प्रे० रूप] छलने का काम दूसरे से कराना। अ० छला जाना। धोखे में आना।
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छलावरण  : पुं० [सं० छल-आवरण, ष० त०] [वि० छलावृत्त] १. वास्तविक बात या रूप छिपाने के लिए ऊपर से कोई उसे ऐसा रूप देना जिससे देखनेवाले धोखे में पड़ जायँ। २. युद्ध-क्षेत्र में अपनी तोपों, मोरचों आदि को शत्रु की दृष्टि से बचाने के लिए वृक्षों की डालियों, पत्तियों आदि से ढकना। (कैमोफ्लेज)।
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छलावा  : पुं० [हिं० छल] १. भूत-प्रेत आदि की वह छाया जो एक बार सामने आकर अदृश्य हो जाती है। २. दलदल या जंगलों में रह-रहकर दिखाई पड़नेवाला वह प्रकाश जो मृत शरीरों की हड्डियों में छिपे हुए फासफोरस के जल उठने से उत्पन्न होता है। विशेष–इसी को लोग अगिया बैताल या उल्कामुख (प्रेत के मुख से निकलनेवाली आग) भी कहते हैं मुहावरा–छलावा खेलना=अगिया वैताल का इधर-उधर दिखाई पड़ना।
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