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जौहर  : पुं० [फा० गौहर का अरबी रूप] १. कोई बहुमूल्य पत्थर। जैसे–नीलम, पन्ना, हीरा आदि। २. किसी बात, वस्तु या व्यक्ति में निहित वे तात्त्विक और मौलिक बातें जो उसके गुणों, दोषों, विशेषताओं, त्रुटियों आदि की परिचायक और सूचक होती है। जैसे–आदमी का जौहर विकट परिस्थितियों में, बहादुरों का जोहर लड़ाई के मैदान में अथवा सोने का जौहर उसे तपाने पर खुलते हैं। क्रि० प्र०–खुलना। ३. उक्त के आधार पर लोहे के धारदार औजारों, हथियारों आदि के संबंध में विशिष्ट प्रकार के चिन्ह या धारियाँ जो लोहे की उत्तमता की सूचक होती है। जैसे–तलवार या कटार का जौहर। ४. उत्तमता। श्रेष्ठता। पुं० [सं० जीव-हर] १. मध्य युग में राजपूत स्त्रियों की एक प्रथा जिसमें गढ़ या नगर के शत्रुओं से घिर जाने और अपने पक्ष की हार निश्चित होने पर वे एक साथ उद्देश्य से जलती चिता में कूद पड़ती थीं कि विजयी शत्रु हमारा अपमान तथा हम पर अत्याचार न करने पावें। ३. उक्त उद्धेश्य से बनाई हुई बहुत बड़ी चिंता। क्रि० प्र०–सँजोना।–सजाना। ३. आत्म सम्मान की रक्षा के लिए की जानेवाली आत्म-हत्या। पुं०=जौहड़।
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जौहरी  : पुं० [फा०] १. हीरा लाल आदि बहुमूल्य रत्न परखने और बेचनेवाला व्यापारी। २. किसी काम, चीज या बात के गुण-दोष आदि अच्छी तरह जानने और समझने वाला व्यक्ति। पारखी। जैसे–शब्दों का जौहरी।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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