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झाँई  : स्त्री० [सं० छाया] १. छाया। परछाई। उदाहरण–जा तान की झाँई परे स्याम हरित दुति होय।–बिहारी। २. अँधकार। अँधेरा। ३. छल। धोखा। मुहावरा–झाँई देना या बताना=बातें बनाकर धोखा देना। ४. रक्त-विकार से मुँह पर पड़नेवाले काले दब्बे। ५. किसी प्रकार की काली छाया या हलका दाग। ६. आभा। झलक।
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झाँई-झप्पा  : पुं०=झाँसा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झाँई-माँई  : स्त्री० [अनु०] बहुत छोटे बच्चों का एक खेल जिसमें वे कुछ गाते हुए घूमते और झूमते हैं। मुहावरा–(कोई चीज) झाँई माँई हो जाना=गायब, गुम या लुप्त हो जाना।
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झाँक  : स्त्री० [हिं० झाँकना] १. झाँकने की क्रिया या भाव। २. झलक। स्त्री० [?] आग। अग्नि। उदाहरण–नई गोरी नये बालमा नई होरी की झाँक।–बुदेल० लो० गी०। पुं=चीतल (जंगली हिरन)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झाँकना  : अ० [सं० अध्यक्ष, प्रा० अज्झक्ख] १. नीचे की ओर की चीज देखने के लिए गरदन झुकाकर तथा आँखे नीचे करके उसकी ओर ताकना। देखने के लिए झुकना। जैसे–खिड़की में से या छत पर से झाँकना। २. आड़ में से दाहिने या बाएँ कुछ झुककर या किसी संधि में से टोह लेने के लिए देखना। ३. कोई काम करने के लिए उसकी ओर प्रवृत्त होना। उदाहरण–यही ठीक है धनुष छोड़कर कीड़ा झाँकों।–मैथिलीशरण।
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झाँकनी  : स्त्री०=झाँकी।
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झाँकर  : पुं=झंखाड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झाँका  : पुं० [हिं० झाँकना] झरोखा जिसमें से झाँककर देखते हैं। पुं०=खाँचा (रहठे आदि का दौरा)।
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झाँकी  : स्त्री० [हिं० झाँकना] १. झाँकने की क्रिया या भाव। २. किसी पूज्य या प्रिय वस्तु या व्यक्ति का सुखद अवलोकन। दर्शन। ३. सहसा कुछ देर के लिए एक बार दिखाई पड़ने या सामने आने की क्रिया या भाव। (ग्लासं) ४. कोई मनोहर या सुंदर दृश्य। ५. किसी बात का किया जानेवाला संक्षिप्त परिचय या परिज्ञान। जैसे–कश्मीर और बुंदेलखंड की झाँकी। ६. छोटी खिड़की।
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झाँकृत  : पुं० [सं० झंकृत+अण्] १. पैरों में पहनने का झाँझन नामक आभूषण। २. झनझन करने या झरने का शब्द।
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झाँख  : पुं० [देश०] जंगली हिरन की एक जाति।
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झाँखना  : अ०=झींखना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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झाँखर  : पुं० [हिं० झंखाड़] १. अरहर की वे खूटियाँ जो फसल काटने के बाद खेत में रह जाती है। २. झाड़-झंखाड़। वि० १. जिसके सारे तल में बहुत से छोटे-छोटे छेद हो। २. ढीली बुनावटवाला।
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झाँगला  : वि० [देश०] ढीला-ढाला (कपड़ा) पुं० एक प्रकार का ढीला ढाला कुरता। झगा।
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झाँगा  : पुं० [?] चितकबरे रंग का छोटा कीड़ा जो गोभी, सरसों आदि के पत्ते में लगकर उन्हें खाता या उनका रस चूसता है। पुं० झगा (बच्चों का कुरता)।
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झाँजन  : स्त्री०=झाँझन।
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झाँझ  : स्त्री० [सं० झर्झर] [स्त्री० अल्पा० झाँझड़ी] १. काँसे, पीतल आदि के मोटे पत्तर की बनी हुई एक प्रकार की कम उबारदार कटोरियों का जो़ड़ा जो पूजन आदि के समय एक दूसरी पर आघात करके बजाई जाती है। छैना। क्रि० प्र०–पीटना।–बजाना। २. क्रोध। गुस्सा। ३. किसी दूषित मनोविकार का आवेग। ४. पाजीपन। शरारत। क्रि० वि० -उतरना।-चढ़ना।-निकलना। ५.ऐसा जलाशय जिसका जल सूख गया हो। स्त्री०=झाँझन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झाँझड़ी  : स्त्री० १=छोटी झाँझी। २. =झाँझन (पैर में पहनने का गहना)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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झाँझन  : स्त्री० [अनु०] चाँदी आदि का बना हुआ नक्काशीदार कड़ा जिसे स्त्रियाँ पैरों में पहनती हैं और जिससे झनझन शब्द निकलता है। पैजनी। पायल।
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झाँझर  : स्त्री० [अनु०] १. झाँझन। पैंजनी नाम का गहना जो पैर में पहना जाता है। २. आटा आदि छानने की छाननी। वि० [सं० जर्जर] १. झँजरा। २. जर्जर। ३. बहुत ही खिन्न और दुःखी। कष्ट या दुःख से क्षीण या जर्जर। (पूरब) उदाहरण–एक हम झाँझरि हरि बिनु हो, पीतम मेल त्यागी।–स्त्रियों का गीत।
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झाँझरी  : स्त्री० [देश०] १. झाँझ नाम का बाजा। झाल। २. झाँझन या पैजनी नाम का पैर में पहनने का गहना।
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झाँझा  : पुं० [हिं० झंझारा] १. फसल के पत्ते आदि खा जानेवाले कुछ छोटे कीड़ों का एक वर्ग। २. वह बड़ा पौना जिससे कहाड़ी में सेव (नमकीन पकवान) छाना या गिराया जाता है। ३. घी में भूनकर चीनी के साथ मिलाई हुई भाँग की पत्तियाँ जो यों ही फाँक ली जाती हैं। पुं० १. झंझट या बखेड़े की बात। ३. तकरार। हुज्जत। पुं०=बड़ी झाँझ।
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झाँझिया  : पुं० [हिं० झाँझ+इया(प्रत्यय)] वह जो झाँझ बजाता हो।
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झाँझी  : स्त्री० [हिं० झँझरी] १. एक उत्सव जिसमें बालिकाएँ रात के समय झँझरीदार हाँडी में दीपक रखकर गीत गाती हुई घर-घर जाती और वहां से पैसे या अनाज पाती है। २. उक्त अवसर या उत्सव पर गाये जानेवाले गीत।
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झाँट  : स्त्री० [सं० जट, हिं,० झंड=बाल] १. पुरुष या स्त्री की जननेंद्रिय पर के बाल। उपस्थ पर के बाल। शष्प। पशम। २. बहुत ही तुच्छ और निकम्मी चीज। पद–झाँट की झँटुल्ली=बहुत ही तुच्छ या हीन।
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झाँटा  : पुं० [देश०] झंझट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=झाड़ू (पूरब)।
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झाँटि  : स्त्री०=झाँट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झाँप  : स्त्री० [हिं० झाँपना] १. वह चीज जिससे कोई दूसरी चीज झाँपी या ढकी जाती हो। ऊपरी आवरण। जैसे–पिटारी की झाँप। २. वास्तु कला में, खिड़की, दरवाजे आदि के ऊपर दीवार से बाहर निकली हुई रचना जो धूप, वर्षा के जल आदि को कमरे के अन्दर आने में रुकावट उत्पन्न करती है। (शेड)। ३. परदा। ४. टट्टी। ५. मस्तूल का झुकाव। ६. कान का एक आभूषण। ७. घोडे़ को गले में पहनाई जानेवाली एक प्रकार की हुमेल या हैकल। स्त्री०=झपकी। स्त्री०=उछल-कूद।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झाँपना  : स० [सं० उत्थापन, हिं० ढाँपना] १. ऊपर से आवरण डाल कर ढाँकना। ढकना। २. मलना। रगड़ना। उदाहरण–फिरि फिरि झाँपति है कहा रुचिर चरन के रंग।–मतिराम। ३. पकड़कर दबाना या दबोचना। अ०=झेंपना।
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झाँपा  : पुं० [हिं० झाँपना] [स्त्री० झाँपी] १. वह बड़ी टोकरी या दौरी जिससे दही, दूध आदि ढाँके जाते हैं। २. मूँज की बनी हुई एक प्रकार की बड़ी पिटारी। स्त्री०=झपकी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झाँपो  : स्त्री० [देश०] १. खंजन पक्षी। २. दुश्चरित्रा या पुंश्चली स्त्री। (गाली)।
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झाँवना  : स० [हिं० झाँवा+ना (प्रत्यय)] झाँवे से रगड़कर (हाथ-पैर आदि) धोना। स० अ० =झँवाना।
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झाँवर  : पुं० [?] वह नीची भूमि जिसमें वर्षा का पानी अधिक मात्रा में रुकने के कारण मोटा अन्न अधिकता से उपजता हो। २. धान के लिए उपयुक्त नीची भूमि। वि० [हिं० झाँवला] [स्त्री० झाँवली] १. झाँवे के रंग का। काला। २. मलिन। मैला। ३. कुम्हलाया या मुरझाया हुआ। ४. धीमा। मंद। ५. सुस्त।
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झाँवली  : स्त्री० [हिं० झाँई] १. बहुत ही थोड़े समय के लिए या एकाध क्षण कुछ दिखाई पड़ने की अवस्था या भाव। २. झलक। ३. आँख के कोने से देखने की अवस्था या भाव। कनखी। मुहावरा–झाँवली दना=आँख हिलाकर हलका सा संकेत करना।
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झाँवाँ  : पुं० [सं० झामक] १. भट्ठे में पकी हुई वह ईट जो अधिक ताप लगने के कारण काली पड़ गई हो और कुछ टेढ़ी भी हो गई हो। २. उक्त जली हुई ईंट का टुकड़ा जिसमें प्रायः छोटे-छोटे छेद होते है तथा जिसका प्रयोग चीजों पर से दाग छुड़ाने और विषेषतः पाँवों पर जमी हुई मैल रगड़कर छुड़ाने के लिए होता है।
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झाँसना  : स० [हिं० झाँसा] झाँसा या धोखा देना। २. झाँसा या धोखा देकर किसी से कुछ ले लेना। झँसना।
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झाँसा  : पुं० [सं० अध्यास=मिथ्या ज्ञान, प्रा० अज्झास] १. किसी से कुछ झँसने या वसूल करने के लिए उसे समझाई जानेवाली उलटी सीधी बात। २. अपने काम निकालने के लिए कही जानेवाली कोई छलपूर्ण बात। क्रि० प्र०–देना।–बताना।–में आना। पद–झाँसा-पट्टी (देखें)।
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झाँसा पट्टी  : स्त्री० [हिं०] किसी को छल-कपट की बातों में फुसलाकर दिया जानेवाला धोखा।
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झाँसिया  : पुं० [हिं० झाँसा+इया (प्रत्यय)] वह जो लोगों को झाँसा देकर अपना स्वार्थ सिद्ध करता हो।
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झाँसी  : पुं० [देश०] तमाखू दाल आदि की फसल में लगनेवाला एक प्रकार का गुबरैला कीड़ा।
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झाँसू  : पुं० [हिं० झाँसा] झाँसिया (दे।)
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झा  : पुं० [सं० उपाध्याय, प्रा० उज्झाओं, हिं० ओझा] १. मैथिल ब्राह्मणों की एक उपाधि। २. गुजराती ब्राह्मणों की एक उपाधि।
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झाँई  : स्त्री=झाँई।
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झाऊ  : पुं० [सं० झावुक] मोर पंखी की जाति का एक पौधा जिसकी पत्तियाँ औषध के काम आती है।
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झाग  : पुं० [हिं० गाज] १. किसी तरल पदार्थ को फेंटने आदि पर उसमें से निकलनेवाले तथा एक में मिले हुए असंख्य बुलबुलों का समूह। फेन। जैसे–तेल या दूध की झाग। २. रोग आदि के कारण मुँह में से निकलेवाली वह थूक जिसमें बहुत अधिक बुलबुले हों। क्रि० प्र०–उठना।– छूटना।–छोड़ना।–निकासन–फेंकना।
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झागड़  : पुं०=झगड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झागना  : अ० [हिं० झाग] झाग या फेन निकलना। स० झाग या फेन उत्पन्न करना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झाझ  : स्त्री०=झाँझ। पुं०=जहाज।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झाझन  : स्त्री=झाँझन। पुं०=झाऊ (पेड़)।
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झाझा  : वि० [सं० दग्ध ?] [स्त्री० झाझी] १. जला हुआ। दग्ध। २. गहरा-गाढ़ा या तेज। जैसे–झाझा नशा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झाट  : पुं० [सं०√झट् (शीघ्रता)+घञ्] १. कुंज। २. झाड़ी। ३. घाव का धोकर साफ करना।
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झाटक-पट  : पुं० [हिं० झटपट] एक प्रकार की ताजीम जो राजपूताने के राज-दरबारो में अधिक प्रतिष्ठित सरदारों को मिला करती थी।
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झाटा  : स्त्री० [सं०√झट्+णिच्+अच्-टाप्] १. जूही। २. भुई। आँवला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झाटास्त्रक  : पुं० [सं० झाट-अस्त्र, ब० स०] तरबूज।
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झाटिका  : स्त्री० [सं० झाट+कन्-टाप्, इत्व] भुई आँवला।
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झाटी  : स्त्री०=झाटिका।
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झाड़  : पुं० [सं० झाट] [स्त्री० अल्पा० झाड़ी] ऐसे छोटे पेड़ों या पौधों का वर्ग जिनकी पतली-पतली शाखाएँ आपस में उलझी हुई और जमीन से थोड़ी ही ऊँचाई पर छितरी या फैली हुई रहती है। पद–झाड़ का काँटा=ऐसा झगड़ालू या हुज्जती आदमी जिससे पीछा छुड़ाना कठिन हो। झाड़-झंखाड़–(देखें स्वतंत्र शब्द)। २. उक्त झाड़ की तरह का एक प्रकार का अनेक शाखाओंवाला दीये, मोमबत्तियां आदि जलाने का शीशे का बहुत बड़ा आधान जो कमरे की छत में शोभा के लिए लटकाया जाता है। ३. उक्त आकार या रूप की एक प्रकार की आतिशबाजी। ४. उक्त आकार या रूप का एक प्रकार का छापा। ५. एक प्रकार की समुद्री घास। जरस। जार। ६. एक ही तरह की बहुत सी छोटी बड़ी चीजों का बड़ा गुच्छा या लच्छा। स्त्री० [हिं० झाड़ना] १. झाड़ने की क्रिया या भाव। २. झाड़ने पर निकलनेवाली धूल आदि। झाड़न। ३. मंत्र आदि पढ़कर किसी की प्रेत-बाधा, रोग आदि दूर करने का काम। पद–झाड़-फूँक (देखें)। ४. क्रोधपूर्वक डांटकर कही जानेवाली बात। क्रि० प्र०–देना।–पड़ना।–बताना।–सुनाना। ५. कुश्ती में विपक्षी के किसी के अंग को दिया जानेवाला झटका।
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झाड़खंड़  : पुं०=झारखंड।
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झाड़-झंखाड़  : पुं० [हिं० झाड़+झंखाड़] १. काँटेदार झाड़ियों का समूह। २. व्यर्थ के पेड़-पौधों का समूह। निकम्मी, रद्दी और व्यर्थ की चीजों, विशेषतः काठ-कबाड़ का लगा हुआ ढेर।
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झाड़दार  : वि० [हिं० झाड़+फा० दार] १. (पौधा या वृक्ष) जिसमें बहुत सी घनी डालियाँ लगती हों। घना। सघन। २. काँटेदार। कटीला। ३. जिस पर झाड़ों अर्थात् पेड़-पौधों की आकृतियाँ बनी हों। पुं० १. एक प्रकार का कसीदा जिसमें पौधों और बेल-बूटों की आकृतियां कढ़ी होती है। २. उक्त प्रकार के बेल-बूटोंवाला कालीन या गलीचा।
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झाड़न  : स्त्री० [हिं० झाड़ना] १. झाड़ने पर निकलनेवाली धूल अथवा रद्दी चीजें या उनके टुकड़े। २. वह कपड़ा जिससे अलमारियों, कुरसियों, चौकियों दरवाजों आदि पर पड़ी हुई धूल आदि झाड़ी और पोंछी जाती है।
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झाड़ना  : स० [सं० झर्च=आघात करना] १. कोई चीज उठाकर उसे इस प्रकार झटका देना कि उस पर पड़ी या लगी हुई फालतू और रद्दी चीजें दूर जा गिरें। जैसे–चाँदनी या दरी झाड़ना। २. झाड़ू, झाड़न आदि की सहायता से किसी चीज के ऊपर पड़ी हुई धूल आदि साफ करना। जैसे–कमरे का फर्श झाड़ना। ३. ऐसा आघात करना कि कहीं लगी या सटी हुई चीज या चीजें कटकर या टूटकर अलग हो जाएँ या नीचे गिर पड़े। जैसे–पेड़ में से आम या इमली झाड़ना। ४. डरा धमका कर या और किसी युक्ति से कुछ धन वसूल करना या रकम ऐंठना। झटकना। जैसे–जरा सी बात में पुलिस ने दो सौ रुपयें झाड़ लिये। ५. कुछ विशिष्ट प्रकार के शस्त्र इस प्रकार चारों ओर घुमाते हुए चलाना कि कोई पास आने का साहस न करे। जैसे–तलवार, पटा या लाठी झाड़ना। ६. जोर का आघात या प्रहार करना। जैसे–थप्पड़ या मुक्का झाड़ना। (क्व०) ७. पक्षियों का कुछ विशिष्ट ऋतुओं में, प्रकृत रूप से अपने पुराने पंख या पर गिराना जिसमें उनके स्थान पर फिर से नये पंख या पर निकलें। जैसे–यह पक्षी ग्रीष्मकाल में अपने पुराने पंख झाड़ता है। ८. कंघी फेर कर सिर के बाल साफ करना। ९. संभोग या समागम करके वीर्यपात करना। (बाजारू)। १॰. तंत्र-मंत्र आदि का ऐसा प्रयोग करना किसी का कोई रोग अथवा उस (व्यक्ति) पर चढ़ा हुआ प्रेत या भूत उतर जाय। जैसे–ओझा लोग देहातियों को भूत-प्रेत झाड़ने के नाम पर खूब ठगते हैं। ११. किसी की अकड़, ऐंठ या शेखी दूर करनेवाली कड़ी-कड़ी बातें सुनाना। फटकारना। जैसे–आज मैनें उन्हें ऐसा झाड़ा कि वे ठंढ़े हो गये। उदाहरण–ऐसे वचन कहूँगी इनतें, चतुराई इनकी मैं झारति।–सूर। १२. अपनी योग्यता दिखाकर धाक जमाने के लिए किसी भाषा या विषय में बहुत सी उलटी-सीधी बातें कर जाना। जैसे–देहातियों के सामने अँगरेजी या कानून झाड़ना, मूर्खों के सामने वेदांत झाड़ना।
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झाड़-फ़ानूस  : पुं० [हिं० झाड़+फा० फ़ानूस] शीशे के झाड़, हाँड़ियाँ आदि जो छत पर टाँगी जाती हैं तथा जिनमें दीये, मोमबत्तियाँ आदि जलाई जाती है।
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झाड़-फूँक  : स्त्री० [हिं० झाड़ना+फूँकना] मंत्र-बल के द्वारा किसी का रोग या प्रेत-बाधा दूर करने की क्रिया या भाव।
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झाड़ बुहार  : स्त्री० [हिं० झाड़ना+बुहारना] कूड़ा-करकट, धूल आदि झाड़ने की क्रिया या भाव।
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झाड़ा  : पुं० [हिं० झाड़ना] १. भूत-प्रेत की बाधा, रोग आदि दूर करने के लिए की जानेवाली झाड़-फूँक या मंत्रोपचार। २. किसी के पहने हुए कपड़े आदि झाड़कर ली जानेवाली तलाशी। ३. पाखाना फिरने या मल त्याग करने की क्रिया। क्रि० प्र०–फिरना। (हगना)। ४. मल-त्याग करने की कोठरी। पाखाना। शौचालय। ५. गुह। मल। ६. दे० झाला (सितार का)।
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झाड़ी  : स्त्री० [हिं० झाड़] १. हिं० झाड़ का स्त्री० अल्पा० रूप। छोटा झाड़। २. बहुत से छोटे-छोटे झाड़ों या पेड़-पौधों का झुरमुट। स्त्री० [हिं० झाड़ना] सूअर के बालों की बनी हुई कूची। बलौंछी।
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झाड़ीदार  : वि० [हिं० झाड़ी+फा० दार] १. आकार, रूप आदि के विचार से झाड़ी की तरह का। छोटे झाड़ का सा। २. काँटेदार। कँटीला। ३. (स्थान) जहाँ पर बहुत सी झाडियाँ हों। ४. दे० झाड़दार।
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झाड़ू  : पुं० [हिं० झाड़ना] १. लंबी सीकों आदि का वह मुट्ठा जिससे फर्श पर पड़ा हुआ कूड़ा-करकट, धूल आदि साफ करते हैं। क्रि० प्र०–देना।–लगाना। मुहावरा–झाड़ू देना=(क) झाड़ू की सहायता से जमीन या फर्श पर का कूड़ा करकट साफ करना। (ख) इस प्रकार सब कुछ नष्ट करना कि कुछ भी बाकी न रह जाय। झाडू फिरना=ऐसा अपव्यय या नाश होना कि कुछ भी बाकी न बच रहे। झाड़ू फेरना=पूरी तरह नाश करके कुछ भी बाकी न रहने देना। पूरा सफाया करना। (किसी को) झाड़ू मारना=बहुत ही उपेक्षा तथा तिरस्कारपूर्वक दूर हटाना। (स्त्रियाँ) जैसे–झाड़ू मारो ऐसे धोबी (या नौकर) को। ० दुमदार सितारा। पुच्छलतारा। धूम-केतु।
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झाड़ूदुमा  : पुं० [हिं० झाड़+फा० दुम] हाथी, जिसकी दुम के बाल झाडू के अगले भाग की तरह छितरे या फैले हुए हों। ऐसा हाथी ऐबी माना जाता है।
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झाड़ूबरदार  : पुं० [हिं० झाड़+फा० बरदार] [भाव० झाड़बरदारी] १. वह सेवक जो घर में झाड़ू लगाता हो। २. गलियों में और सड़कों पर झाड़ू देनेवाला मेहतर।
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झाड़वाला  : पुं० [हिं० झाड़+वाला (प्रत्यय)] झाड़ू देने या लगानेवाला व्यक्ति। झाड़बरदार।
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झाण  : पुं० [सं० ध्यान] हठ-योग में, एक प्रकार की साधना जिसमें पंच महाभूतों का ध्यान करके उन्हें ऊपर की ओर प्रवृत्त किया जाता था, और इसके लिए शरीर के अन्दर के पाँच चक्रों का भी ध्यान किया जाता था। (बौद्ध)।
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झापड़  : पुं० [?] थप्पड़। तमाचा। क्रि० प्र०–देना।–मारना।–लगाना।
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झाबड़-झल्ला  : वि० [हिं०] बहुत अधिक ढीला-ढाला।
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झाबर  : पुं० [?] दलदली भूमि। पुं०=झाबा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि०=झबरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झाबा  : पुं० [हिं० झाँपना-ढाँकना] [स्त्री० अल्पा० झाबी] १. रहठे का बना हुआ वह टोकरा या दौरा। खाँचा। २. घी, तेल आदि रखने का वह कुप्पा जिसमें टोंटी भी लगी रहती है। ३. चमड़े का एक प्रकार का बड़ा थाल। सफरा। (पश्चिम) ४. शीशे का बड़ा झाड़ जो रोशनी के लिए छत में लटकाया जाता है। पुं०=झब्बा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झाम  : पुं० [देश०] १. गुच्छा। २. समूह। ३. झब्बा। तुर्रा। ४. मिट्टी खोदने की एक प्रकार की कुदाल। ५. एक प्रकार का बड़ा यंत्र जो नदियों आदि के तल की मिट्टी खोदने के काम आता है। ६. डाँट-फटकार। ७. घुड़की। ८. कपट। छल। धोखा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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झामक  : पुं० [सं० झम् (खाना)+ण्वुल्-अक] जली हुई ईंट। झाँवाँ।
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झामर  : पुं० [सं० झाम√रा (देना)+क] १. टेकुआ रगड़ने का सान। सिल्ली। २. पैजनी की तरह का पैर में पहनने का एक गहना।
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झामर-झूमर  : पुं० [अनु०] ऐसी चीज या बात जिसमें ऊपरी आडबंर, झंझटें या बखेड़े तो बहुत से हों परन्तु जिसमें तत्त्व या सार कुछ भी न हों। उदाहरण–दुनिया झामर-झूमर उलझी सत्तमान के बकरा लाये, कान पकड़ सिर काटा।–कबीर।
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झामरा  : वि० [हिं० झाँवला] १. झाँवे के रंग का। झाँवला। २. मलिन। उदाहरण–सामरि हे झामरि तोर देह। विद्यापति।
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झामा  : वि०=झाँवला। पुं०=झाँवाँ।
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झामी  : वि० [हिं० झाम=धोखा] धोखा देनेवाला। धोखेबाज। स्त्री० [अनु०] १. झन झन शब्द। झनकार। २. सुनसान जगह में तेज हवा चलने पर होनेवाला शब्द जो प्राय डरावना होता है।
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झार  : वि० [सं० सर्व, प्रा० सारो, हि० सारा] १. आदि से अन्त तक का सब। कुल। पूरा। समस्त। सारा। २. जिसमें कुछ भी मिलावट न हो। खालिस। पुं० १. झुंड। दल। २. समूह। अव्य० १. केवल। निपट। निरा। २. एक दम से। एक सिरे से। स्त्री० [हिं० झाल] १. स्वाद में चरपरे या तीखे होने की अवस्था या भाव। झाल। २. आग की लपट। ज्वाला। ३. जलन। ताप। ४. ईर्ष्या के कारण होनेवाला मनस्ताप। डाह। पुं० [हिं० झरना] रसोई का झरना या पौना नामक उपकरण। पुं० [?] एक प्रकार का पेड़।
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झारखंड  : पुं० [हिं० झार० सं०+खंड] १. उजाड़ जगह। २. जंगल। ३. बिहार राज्य के एक छोटे भू-भाग का नाम। ४. एक पर्वत जो वैद्यनाथ धाम से जगन्नाथ पुरी तक विस्तृत है।
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झारन  : स्त्री०=झाड़न।
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झारना  : स०=झाड़ना।
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झारा  : पुं० [हिं० झार] बहुत पतली धुली हुई भाँग। पुं० [हिं० झारना] १. अनाज फटकने का सूप। २. अनाज छानने का झरना। ३. पटा, बनेठी, लाठी आदि चलाने की कला या विद्या। पुं० =झाड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झारि  : स्त्री०=झार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झारी  : स्त्री० [हिं० झारना] १. लंबी गरदनवाली एक प्रकार की टोंटीदार लुटिया जिससे जल बँधी हुई धार के रूप में निकलता है। २. पानी में अमचूर, जीरा, नमक आदि मिलाकर बनाया जानेवाला एक प्रकार का स्वादिष्ट पेय।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री०=झाड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० [हिं० झार] समष्टि। समूह। उदाहरण–गई जहाँ सुर नर मुनि झारी।–तुलसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) क्रि० वि० एक दम से। एक सिरे से।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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झारू  : पुं=झाड़।
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झार्झर  : पुं० [सं० झर्झर+अण्] हुडुक या ढोल बजानेवाला व्यक्ति।
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झाल  : स्त्री० [सं० झालिः=आम का पना या पन्ना] १. गंध, स्वाद आदि की तीव्रता। जैसे–मिर्च, राई आदि की झाल। २. स्वाद का चरपरापन या तीक्ष्णता। जैसे–तरकारी या दाल की झाल, आम या इमली के पन्ने की झाल। स्त्री० [हिं० झालना] १. झालने (अर्थात् धातु की चीजों को टाँका लगाकर जोड़ने) की क्रिया या भाव। २. धातु की चीजों का वह अंश जिसमें उक्त प्रकार का टाँका लगा हो। स्त्री० [सं० ज्वाल] १. जलन। ताप। दाह। २. लपट। लौ। ३. उत्कट या प्रबल कामवासना। ४. मन की तरंग। मौज। (क्व०) पुं० [सं० झल्लक] काँसे आदि की बनी हुई बड़ी झाँझ। स्त्री० [हिं० झड़ी] १. (वर्षा की) झड़ी। २. बादल के कारण होनेवाला अँधेरा।
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झालड़  : स्त्री०=झालर।
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झालना  : स० [?] [भाव० झलाई] १. धातु की बनी हुई चीजों के भिन्न-भिन्न अंगों को टाँका लगाकर उन्हें आपस में जोड़ना। २. किसी पात्र का मुँह धातु का टाँका लगाकर चारों ओर से अच्छी तरह बंद करना। जैसे–गंगा जल से भरी हुई लुटिया झालना। ३. पेय पदार्थों की बोतलें आदि बरफ या शोरे में रखकर खूब ठंढ़ी करना। स० १.=झेलना (सहना)। २.=झलना। (ग्रहण या धारण करना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झालर  : स्त्री० [सं० झल्लरी] १. किसी विस्तार में उनके एक या कई सिरों पर शोभा या सजावट के लिए टाँका, बनाया या लगाया जानेवाला लहरियेदार किनारा या हाशिया। जैसे–तकिये, पंखे या परदे में लगी हुई झालर, सायबान में लगाई जानेवाली झालर। २. वास्तु-रचना में पत्थर, लकड़ी आदि को गढ़ या तराशकर प्रस्तुत की जानेवाली उक्त प्रकार की बनावट। जैसे–दरवाजे के पल्ले या मेहराब में की झालर। ३. उक्त आकार या प्रकार की कोई ऐसी लटकती हुई चीज जो प्रायः हिलती रहती हो। जैसे–गौ या बैल के गले की झालर। ४. किनारा। छोर। सिरा। (क्व०) ५. एक प्रकार का बहुत बड़ा छैना या झाँझ जो पूजा आदि के समय देवताओं के सामने बजाते हैं। पुं०=झलरा (पकवान)। उदाहरण–झालर माँड़े आय पोई।–जायसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झालरदार  : वि० [हिं० झालर+फा० दार] जिसमें झालर टँकी, बनी या लगी हो।
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झालरना  : अ० [हिं० झालर+ना (प्रत्य०)] १. झालर का हिलना या हवा में लहराना। २. हवा में किसी वस्तु का लहराना। ३. (पेड़-पौधों का) शाखाओं, पत्तियों, फूलों आदि से युक्त या संपन्न होना। उदाहरण–नित नित होति हरी हरी खरी झालरति जाति।–बिहारी।
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झालरा  : पुं० [हिं० झालर] एक प्रकार का रुपहला हार। हुमेल। पुं० [?] कुछ विशिष्ट प्रकार का बना हुआ चौकोर और बड़ा कूआँ। बावली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झाला  : पुं० [देश०] १. गुजरात, मारवाड़ आदि प्रदेशों में बसी हुई एक राजपूत जाति। २. उक्त जाति का व्यक्ति। ३. सितार आदि बजाने में उत्पन्न होनेवाली एक विशेष प्रकार की कलात्मक झंकार।
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झालि  : स्त्री० [सं०] एक प्रकार की काँजी जो कच्चे आम को पीसकर और उसमें राई, नमक आदि मिलाकर बनाई जाती है। झारी। स्त्री०=झाल (वर्षा की झड़ी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झावँ झावँ  : पुं=झाँवँ-झाँवँ।
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झावर  : वि०=झाबर (झबरा)।
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झावु  : पुं० [सं० झा√वा (गति)+डु] झाऊ (एक क्षुप)।
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झावुक  : पुं० [सं० झावु+कन्] झाऊ।
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