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झुकना  : अ० [सं० युज्-किसी ओर प्रवृत्त होना] १. किसी ऊर्ध्व या खड़े बल में रहनेवाली चीज के ऊपरी भाग का कुछ टेढ़ा होकर किसी दिशा या पार्श्व में कुछ नीचे की ओर आना या होना। जैसे–(क) पढ़ने-लिखने के समय आदमी की गरदन या सिर झुंकना। (ख) बरसात में पानी भरने के कारण मकान की दीवार या बरामदा झुकना। २. क्षैतिज या बेड़ेबल में रहनेवाली अथवा सीधी चीज का कोई अंश या सिरा नीचे की ओर आना, मुड़ना या होना। जैसे–(क) लकड़ी की धरन का बीच में झुकना। (ख) लोहे की छड़ का एक या दोनों सिरे झुकना। ३. बोझ, भार आदि के कारण किसी चीज का अपनी प्रसम और स्वाभाविक अवस्था या स्थिति से हटकर कुछ नीचे की ओर आना या होना। जैसे–फलों के भार से वृक्ष की डालियाँ झुकना। ४. आकाशस्थ, ग्रहों, नक्षत्रों आदि की अपनी पूरी ऊँचाई तक पहुँच चुकने के बाद क्षितिज की ओर उन्मुख या प्रवृत्त होना। जैसे–चंद्रमा या सूर्य का (अस्तमित होने के समय या उससे पहले) झुकना। ५. दुर्बलता रोग, वार्धक्य शिथिलता आदि के कारण शरीर के किसी ऐसे अंग का कुछ नीचे की ओर आना या प्रवृत्त होना जो साधारणयतः खड़ा या सीधा रहता हो अथवा जिसे खड़ा या सीधा रहना चाहिए। जैसे–(क) नशे या लज्जा से आँखे या सिर झुकना। (ख) बुढ़ापे में कमर या गरदन झुकना। ६. उद्देश्य की पूर्ति या कार्य की सिद्धि के लिए थोड़ा आगे बढ़ते हुए नीचे की ओर प्रवृत्त होना। जैसे–किसी के चरण छूने या कोई चीज उठाने के लिए झुकना। ७. प्रतियोगिता, बैर, विरोध आदि के प्रसंगों में प्रतिपक्षी की प्रबलता या महत्ता मानते हुए उसके सामने दबना अथवा नम्र भाव से आचरण या व्यवहार करना। अभिमान, बल आदि का प्रदर्शन छोड़कर विनीत और सरल होना। जैसे–(क) युद्ध में शत्रु के सामने झुकना।(ख) लड़ाई-झगड़े में भाइयों के आगे झुकना। ८.आवेश, क्रोध आदि से युक्त होकर कठोर बातें कहने या रोष प्रकट करने के लिए किसी की ओर प्रवृत्त होना। जैसे–पहले तो वे अपने भाई से उलझ रहे थे फिर मेरी ओर (या मुझ पर) झुक पड़े। उदाहरण–(क) नहिं जान्यौ बियोग सो रोग है आगे झुकी। तब हौ तेहि सों तरजी।–तुलसी। (ख) तऊ लाज आई झुकत खरे लजौहे देखि।-बिहारी। ९. विशेष ध्यान देते हुए किसी काम या बात की ओर प्रवृत्त होना। दत्त-चित्त होकर कुछ करने लगना। जैसे–आज-कल वह इतिहास छोड़कर दर्शन (या वेंदात) की ओर झुके हैं।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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