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झूठ  : पुं० [सं० अयुक्त; प्रा० अजुत] ऐसा कथन या बात जो वस्तुतः यथार्थ या सत्य के रूप में कही गई हो। पद–झूठ का पुतला=बहुत बड़ा झूठा आदमी। झूठ की पोट-सरासर झूठी बात। मुहावरा–झूठ का पुल बाँधना=बराबर एक पर एक झूठ बोलते चलना। झूठ सच जोड़ना=किसी सच्ची बात में अपनी ओर से भी झूठी बातें मिलाकर कहना। वि०=झूठा। स्त्री०=जूठ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
झूठन  : स्त्री० [?] ऐसी भूमि जिसमें दो फसलें पैदा होती हों। दु-फसली जमीन। स्त्री=जूठन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झूठ-मूठ  : अव्य० [हिं० झूठ+अनु० मूठ] १. बिना किसी वास्तविक या सत्य आधार के। झूठ ही। जैसे–झूठमूठ किसी को दौड़ाना। २. यों ही या व्यर्थ किसी को बहकाने या बहलाने के लिए।
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झूठा  : वि० [हिं० झूठ] [स्त्री० झूठी] १. (कथन) जो सत्य न हो, बल्कि उसके विपरीत हो। वास्तव से अन्यथा या भिन्न। मिथ्या। जैसे–झूठा बयान, झूठी शिकायत। २. (व्यक्ति) जो उक्त प्रकार की बात कहता हो या जिसने उक्त प्रकार की बात कही हो। जैसे–झूठा गवाह। ३. (व्यक्ति) जो वास्तव में विश्वसनीय और सत्यनिष्ठ न हो, पर स्वार्थ साधन के लिए अपने आपको विश्वसनीय और सत्य निष्ठ बतलाता हो या सिद्ध करना चाहता हो जैसे–झूठा मित्र। ४. (स्थिति) जिसमें उक्त प्रकार की विश्वसनीयता और सत्यनिष्ठा का अभाव हो। जैसे–झूठी दोस्ती, झूठी मुहब्बत। ५. (पदार्थ) जो नकली या बनावटी होने पर भी देखने में असल की तरह जान पड़ता हो और असल की जगह काम देने के लिए बनाया गया हो। जो केवल दिखाने और धोखा देने भर की हो। जैसे–झूठा गहना, झूठा ताला, झूठा सिक्का। मुहावरा–(किसी चीज का) झूठा पड़ना=खराब हो जाने या बिगड़ जाने के कारण जो ऊपर से देखने में तो ज्यों का त्यों हो, पर ठीक या पूरा काम न दे सकता हो। जैसे–(क) उसका बायाँ हाथ झूठा पड़ गया है। (ख) इस कल के कई पुरजे झूठे पड़ गये हैं। ६. (तथ्य या पदार्थ) जो अपेक्षया या तुलनात्मक दृष्टि से बहुत घटकर तथ्यहीन या निरर्थक सा हो। जैसे–इसके सामने तुम्हारे (क) सब व्यवहार या (ख) सब कपड़े झूठे हैं। वि० दे० ‘जूठा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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झूठों  : अव्य० [हिं० झूठा] १. केवल किसी को बहकाने भर के लिए। झूठ-मूठ। यों ही। २. सिर्फ कहने भर के लिए। नाम मात्र को। जैसे–उन्होंने झूठों भी मुझसे साथ चलने को नहीं कहा।
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