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झूलना  : अ० [सं० झुल्, प्रा० झुलइ, झुल्ल, उ० झुलिबा, गुं० झूलवूँ, मरा० झुलणें, सि० झुलणु] १. किसी आधार या सहारे पर लटकी हुई चीज का रह-रहकर आगे-पीछे या इधर-उधर लहराना अथवा हिलना-डोलना। जैसे–टँगा हुआ परदा या उसमें बँधी हुई डोरी का झूलना, पेड़ों में लगे हुए फलों का झूलना। २. झूले पर बैठकर पेंग लेना या बार-बार आगे बढ़ना और पीछे हटना। ३. किसी उद्देश्य या कार्य की सिद्धि की आशा अथवा प्रतीक्षा में बार-बार किसी के यहाँ आना-जाना अथवा अनिश्चित दशा में पड़े रहना। जैसे–किसी कार्यालय में नौकरी पाने की आशा में झूलना। स० झूले पर बैठकर पेंग लेते हुए उसका आनन्द या सुख भोगना। जैसे–बरसात में लड़के-लड़कियाँ दिन भर झूला झूलती रहती हैं। वि० [स्त्री० झूलनी] (पदार्थ) जो रह-रहकर इधर उधर हिलता-डोलता हो। झूलता रहनेवाला या झूलता हुआ। जैसे–पहाड़ी झरने या नदी पर बना हुआ झुलना पुल। पुं० १. मात्रिक सम दंडक छंदों का एक भेद या वर्ग जिसे प्राकृत में झुल्लण कहते थे। इसके प्रत्येक चरण में ३७ मात्राएँ और पहली तथा दूसरी १॰ मात्राओं के बाद यति या विश्राम होता है। यतियों पर तुक मिलना और अन्त में यगण होना आवश्यक है। २. एक प्रकार का वर्णिक समवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में स, ज, ज, भ, र, स और लघु होता है। रूप-माला के प्रत्येक चरण के आरंभ में दो लघु रखने से भी यह छंद बन जाता है। इसमें १२ और ७. वर्णों पर यति होती है। इसे मणि-माल भी कहते हैं। ३. दे० झूला।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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