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टेढ़ा  : वि० [सं० त्रेधा, मरा० तेड़ा, सि० टेडो, पु० हि० टेढ़] [स्त्री० टेढ़ी, भाव टेढ़ाई] १. जो लंबाई के बल में किसी एक सीध में न गया हो, बल्कि बीच में कहीं इधर-उधर कुछ घूम या मुड़ गया हो। वक्र। सीधा का विपर्याय। जैसे–टेढ़ा बाँस, टेढ़ी लकीर। २. जिसकी क्रिया, गति या मार्ग में किसी प्रकार की कुटिलता या वक्रता आ गई हो। जैसे–टेढ़ी आँख या चितवन। ३. जिसमें सरलता, सुगमता आदि का बहुत कुछ अभाव हो। जैसे–टेढा रास्ता। ४. जिसमें अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ, विकटताएँ आदि हों। जो सहज में ठीक या संपन्न न हो सकता हो। जैसे–टेढ़ा काम, टेढ़ा मुकदमा, टेढ़ी समस्या। पद–टेढ़ी खीर=बहुत ही कठिन या विकट काम। जैसे–चंद्रमा या मंगल तक पहुँचना टेढ़ी खीर है। विशेष–यह पद उस कहानी के आधार पर बना है जिसमें किसी अंधे ब्राह्मण को खीर का परिचय कराने के लिए पहले उसके सफेद होने का और फिर सफेदी का बोध कराने के लिए बगले का उल्लेख किया गया था और अंत में बगले का बोध कराने के लिए उसके आगे हाथ टेढ़ा करके रखा गया था, जिसे टटोलकर उसने कहा था कि खीर तो टेढ़ी होती है। वह मेरे गले में अटक जायगी। ५. व्यावहारिक दृष्टि से जिसमें उग्रता कठोरता आदि हो, फलतः जिसमें कोमलता, नम्रता शिष्टता आदि का बहुत कुछ अभाव हो। जैसे–टेढ़ा आदमी, टेढ़ा स्वभाव। मुहावरा–(किसी को) टेढ़ी आँख से देखना=वैर-विरोद, शत्रुता आदि के भाव से देखना। (किसी से) टेढ़े पड़ना या होना=क्रुद्ध या रुष्ट होकर कठोरतापूर्ण बातें कहना या लड़ने झगड़ने को तैयार होना। टेढ़े-टेढ़े चलना=इतरा या ऐंठ कर चलना। पद–टेढ़ी सीधी बातें=ऐसी बातें जिनमें से कुछ तो ठीक या सीधे ढंग से और कुछ क्रुद्ध या रुष्ट होकर कहीं गई हों। जैसे–उस दिन वे अकारण ही मुझे बहुत सी टेढ़ी सीधी बातें सुना गये।
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टेढ़ापन  : पुं० [हिं० टेढ़ा+पन (प्रत्यय)] टेढे होने की अवस्था या भाव।
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टेढ़ा-मेढ़ा  : वि० [हिं० टेढ़ा+अनु० मेढ़ा अथवा हिं० बेड़ा] [स्त्री० टेढ़ी-मेढ़ी] १. (वस्तु) जिसमें बहुत अधिक घुमाव-फिराव या मोड़ हों। २. (कार्य) जो कठिन या मुश्किल हो।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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