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ठगना  : स० [हिं० ठग+ना (प्रत्यय)] १. किसी से उनकी कोई चीज छल या धोखे से लेना। २. क्रय-विक्रय में अधिक लाभ करने के लिए किसी से लिए हुए धन के अनुपात में उचित से कम या रद्दी चीज देना। जैसे–यह दुकानदार ग्राहकों को बहुत ठगता है। पद–ठगा सा=ऐसा हक्का-बक्का कि मानों किसी ने उसे ठग लिया हो। ३. किसी को धोखे में रखकर उसके उद्देश्य की सिद्धि या संकल्प की पूर्ति से वंचित करना। जैसे–मुझे मेरे ही मित्रों ने ठगा। ४. किसी प्रकार का छल या धूर्त्तता का व्यवहार करना। ५. पूरी तरह से अनुरक्त या मोहित करके अपना वशवर्त्ती बनाना। अ० १.=ठगाना। २.=चकित होना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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