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ठस  : वि० [सं० स्थास्नु] १. (पदार्थ) जो बहुत ही कड़ा या ठोस और फलतः दृढ़ या मजबूत हो। जैसे–ठस मकान। २. (वस्त्र) जिसके ताने और बाने के सूत परस्पर इस प्रकार सटे हुए हों कि उनमें विलरता न दिखाई पड़े। ३. (बुनावट) जो उक्त प्रकार की हो। ४. जो इतना अधिक भारी हो कि अपने स्थान से हिलाये जाने पर भी जल्दी न हिले। ५. (सिक्का) जो खनकाने पर ठीक ध्वनि न दे। ६. (व्यक्ति) जो बहुत कंजूस हो और जल्दी पैसा खरच करनेवाला न हो। ७. आलसी। सुस्त। ८. जिद्दी। हठी। वि० गंभीर। उदाहरण–परन्तु वातावरण बिलकुल ठस जान पड़ा।–वृंदावनलाल वर्मा।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
ठसक  : स्त्री० [हिं० ठस] १. बड़प्पन, योग्यता आदि दिखलाने के उद्देश्य से की जानेवाली साधारण से भिन्न कोई शारीरिक चेष्टा। २. नखरा। ३. अभिमान। गर्व।
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ठसकदार  : वि० [हि० ठसक+फा० दार] १. (व्यक्ति) जिसमें ठसक हो। अपना बड़प्पन या योग्यता प्रदर्शित करने के लिए कोई विशिष्ट चेष्टा करनेवाला। २. घमंडी।
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ठसका  : पुं०=ठसक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [अनु०] १. एक तरह की सूखी खाँसी। २. धक्का।
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ठसावस  : वि० [हिं० ठस] (अवकाश) जो इतना अधिक भर गया हो कि उसमें और अधिक समाई न हो सकती हो। जैसे–यात्रियों से रेल का डिब्बा ठसाठस था। क्रि० वि० ऐसी अवस्था में जिसमें और अधिक भरने, रखने आदि के लिए अवकाश न बच रहा हो।
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ठस्सा  : पुं० [अनु०] १. एक प्रकार की छोटी रुखानी। जिससे धातुओं पर नक्काशी की जाती है। २. दे० ठसक। पुं०=ठवन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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