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डाँक  : स्त्री० [हिं० दमक, दर्वँक] ताँबे या चाँदी का कागज की तरह का वह पतला पत्तर जो नगीनों के नीचे उनकी चमक बढ़ाने के लिए लगाया जाता है। स्त्री० [हिं० डाँकना] १. डाँकने या लाँघने की क्रिया या भाव। २. कै। वमन। स्त्री०=डाक। पुं० १.=डंक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) २.=डंका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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डाँकना  : स० [सं०√तक से] १. रास्ते में पड़ी हुई किसी चीज अथवा होनेवाले किसी गड्ढे को कूदते हुए लाँघना २. (खेल में) किसी रोक को दौडते तथा कूदते हुए पार करना। जैसे–रस्सी डाँकना। ३. बीच का कुछ अंश छोड़ते हुए उसके आगे या पार जाना। [हिं० डाँक] वमन करना। उलटी करना।
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डाँग  : स्त्री० [सं० टंक] १. किसी चीज का ऊपरी बड़ा या भारी भाग। २. पहाड़ की ऊँची चोटी। ३. पहाड़ी। ४. जंगल। वन। ५. उछलकूद। ६. छलाँग। ७. कोई उद्देश्य या सिद्ध होने का अवसर या सुयोग जिसकी प्रतीक्षा में रहा जाय। ताक। (बुन्देल) उदाहरण–-सागर सिंह इसी डाँग में हैं।–वृन्दावनलाल। ८. बहुत बड़ा डंडा या लाठी। सोंटा। (पश्चिम)।
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डाँगर  : वि० [?] १. इतना दुबला-पतला कि शरीर की हड्डियाँ तक दिखाई दें। २. बेवकूफ। मूर्ख। पुं० १. चौपाया। डंगर। २. मरा हुआ पशु या उसकी लाश। (पूरब) ३. एक प्रकार की छोटी जाति
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डाँगा  : पुं० [सं० दंडक] १. जहाज के मस्तूल में रस्सियों को फैलाने के लिए आड़ी लगी हुई धरन। २. लंगर के बीच का मोटा छड़। (लश०)।
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डाँट  : स्त्री० [सं० दान्ति-दमन, वश] १. किसी को डाँटने या डपटने की क्रिया या भाव। २. क्रोध में आकर कही जानेवाली ऐसी कड़ी बात जो भविष्य में किसी को सचेत रखने के लिए कही जाय क्रि० प्र०–बताना। ३. उक्त प्रकार की बातें करते हुए किसी की उच्छृंखलता उद्दंडता आदि नियंत्रित रखने के लिए उसके साथ किया जानेवाला आतंकपूर्ण व्यवहार। जैसे–लड़कों को डाँट में रखना। क्रि० प्र०–मानना। मुहावरा–किसी को डाँट में रखना=वश या शासन में रखना।
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डाँटना  : स० [हिं० डाँट से] क्रोध में आकर किसी दोषी को कोई कड़ी बात ऊंचे स्वर में कहना। सं० क्रि०–देना।
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डाँठ  : पुं० [सं० दंड] डंठल।
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डाँड़  : पुं० [सं० दंडक, प्रा० डंदअ] १. लकड़ी का डंडा विशेषतः सीधा डंडा। जैसे–झंडे का बाँस, छत की धरन आदि। २. किसी चीज में उसे चलाने, पकड़ने आदि के लिए लगा हुआ डंडा। दस्ता। हत्था। ३. नाव खेने का हाँड़। ४. गदका। ५. कोई ऐसी चीज जो एक सीध में चली गई हो। जैसे–रेखा, मेड़, रीढ़ की हड्डी आदि। ६. करघे में वह ऊंची लकड़ी जिसमें ऊरी फँसाई जाती है। ७. ऊंचा स्थान। ८. समुद्र का ढालुआँ रेतीला किनारा। ९. सीमा। हद। १॰. वह मैदान जिसमें का जंगल कट गया हो। ११. कमर। १२. क्षतिपूर्ति के रूप में दिया जानेवाला धन या वस्तु। दंड। १३. अर्थ-दंड। जुरमाना। १४. दे० ‘कट्ठा’। (लम्बाई का मान)।
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डाँड़ना  : स० [हिं० डाँड़+ना (प्रत्यय)] अर्थ-दंड से दंडित करना। जुरमाना करना। स०=डाँटना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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डाँड़र  : पुं० [हिं० डाँठ] बाजरे की फसल कट जाने पर खेत में बची रह जानेवाली उसकी खूँटी।
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डाँड़ा  : पुं० [हिं० डाँड] १. डंडा। २. वह बड़ा डंडा जिसके आगे चप्पू लगा रहता है और जिसकी सहायता से नाव खेते या चलाते हैं। डाँड़ा। ३. सीमा। हद। पद–डाँड़ा मेंढ़ा=(देखें) होली का डाँड़ा और घास=लकड़ियों फूस आदि का वह ढेर जो होली की रात को जलाने के लिए पहले से ही अपने गाँव या मुहल्ले की सीमा पर इकट्ठा किया जाता है। ४. समुद्र का ढालुआँ रेतीला किनारा। (लश०)
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डाँडा-मेड़ा  : पुं० [हिं० डाँड़+मेंड़] १. खेत, गाँव आदि की वह सीमा या हद जिस पर डाँड़ा या मेंड़ बनी हो। २. ऐसी स्थिति जिसमें न तो विशेष आर्थिक लाभ ही हो और न ही विशेष हानि हो। जैसे–हम तो समझते थे कि इस सौदे में बहुत घाटा होगा, पर चलो, डाँड़े-मेंड़े रह गये। ३. बीच की ऐसी स्थिति जिसमें आपस के लड़ाई-झगड़े का उतना ही अवकाश या संभावना हो जितना अवकाश खेतों या डांड़ों का साथ-साथ या एक ही जगह पड़ने से होता है।
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डाँड़ा-मेंड़ी  : स्त्री०=डाँड़ा-मेंड़ा।
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डाँड़ा-सहेल  : पुं० [देश०] साँपों की एक जाति।
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डाँड़ी  : स्त्री० [हिं० डाँड़] १. पतली लंबी लकड़ी। २. वृक्ष आदि की पतली लंबी शाखा। टहनी। ३. पौधों का वह लंबा डंठल जिसमें फूल, फल आदि लगते हैं। ४. व्यवहार में लाये जानेवाले उपकरणों का वह पतला लंबोतरा अंश, जिसे पकड़कर उस उपकरण को चलाया या हिलाया-डुलाया जाता है। जैसे–कलछी या पंखे की डाँड़ी। ५. तराजू की डंडी। ६. हिंडोले में की वे चारों लकडियाँ या डोरी की लड़े जिन पर बैठने की पटरी रखी जाती है। ७. डंडे में बँधी हुई एक तरह की झोली के आकार की पहाड़ी सवारी। झप्पान। ८. जुलाहों की वह लकड़ी जो चरखी की थवनी में डाली जाती है। ९. शहनाई का वह निचला भाग जिसमें से हवा बाहर निकलती है। १॰. सीधी रेखा। ११. मर्यादा। १२. चिड़ियों के बैठने का अड्डा। उदाहरण–-औ सोनहा सोने की डाँड़ी।–जायसी। १३. अनवट नामक गहने का वह भाग जो दूसरी और तीसरी उंगिलयों के बीच में रहता है और उसे घूमने से रोकता है। पुं० १. डाँड़ खेनेवाला आदमी। (लश०) २. सुस्त आदमी।
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डाँड़री  : स्त्री० [सं० दग्ध, हिं० डाढ़ा] मटर की भुनी हुई फली।
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डाँबरा  : पुं० [सं० डिंब] [स्त्री० डाँबरी] लड़का। बेटा। पुत्र।
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डाँबरू  : पुं० [हिं० डाँबरा] १. लड़का। पुत्र। २. बाघ का बच्चा। पुं०=डमरु।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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डाँबू  : पुं० [देश०] दलदल में होनेवाला एक तरह का नरकट।
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डाँभना  : स०=दागना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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डाँरी  : स्त्री=डोली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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डाँवरा  : पुं० [स्त्री० डाँवरी]=डाँवरा।
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डाँवाँ-डोल  : वि० [डाँवाँ (अनु०)+हिं० डोलना] १. साधारणतया अचल या स्थिर रहने वाली वस्तु के संबंध में, जो सहसा किसी आघात के फलस्वरूप इधर-उधर हिलने-डुलने लगे। जैसे–हिलोर के कारण नाव या भूकंप के कारण पृथ्वी का डाँवाडोल होना। २. व्यक्ति अथवा उसके चित् के संबंध में, जो अधिक चिंतित या भावुक होने के कारण किसी निश्चिय तक पहुँच पाता हो। ३. स्थिति के संबंध में, जिसमें दो विभिन्न पक्षों में संतुलन न होने के कारण किसी परिणाम का ठीक-ठीक अनुमान न होता हो। जैसे–व्यापार का डाँवाँडोल होना।
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डाँशपाहिड़  : पुं० [देश०] संगीत में रुद्रताल के ग्यारह भेदों में से एक जिसमें ५ आघात के पश्चात् एक-एक शून्य होता है।
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डाँस  : पुं० [सं० दंश] १. बड़ा मच्छर। दंश। २. एक तरह की मक्खी जो पशुओं को काटती तथा उन्हें तंग करती है। ३. कुकरौंछी।
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डाँसर  : पुं० [देश०] इमली का बीज। चीयाँ।
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डा  : पुं० [अनु०] सितार का एक बोल। उदाहरण–-डा डिड़ डा ड़ा डा डा ड़ा।
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डाइन  : स्त्री० [सं० डाकिनी] १. भूत-प्रेत योनि की स्त्री। भूतनी। २. वह स्त्री जिसकी कुदृष्टि के प्रभाव से कोई मर जाता हो या बीमार पड़ जाता हो। टोनहाई। ३. कुरूपा और डरावनी स्त्री। ४. बहुत ही दुष्ट प्रभावशाली तथा क्रूर स्त्री।
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डाक  : स्त्री० [हिं० डाँकना] १. डाँकने की क्रिया या भाव। २. सवारी का ऐसा प्रबन्ध जिसमें हर पड़ाव पर बराबर जानवर या यान आदि बदले जाते हों। मुहावरा–डाक बैठना=शीघ्र यात्रा के लिए स्थान-स्थान पर सवारी बदलने की चौकी नियत करना। डाक लगना=(क) शीघ्र संवाद पहुँचाने या यात्रा करने के लिए मार्ग में स्थान-स्थान पर आदमियों या सवारियों का प्रबन्ध होना। (ख) किसी चीज के आने या जाने का क्रम बराबर चलता रहना। डाक लगाना=डाक बैठाना। ३. पत्रों, बंडलों आदि को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाने की सरकारी व्यवस्था। ४. उक्त व्यवस्था द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचने या पहुँचाया जानेवाला पत्र या सामग्री। स्त्री० [अनु०] कै। वमन। स्त्री० [सं० डक्क या बं० डाकिबा] १. पुकार। २. नीलाम की बोली। पुं० [अं०] बंदरगाह का वह विशिष्ट अंश जहाँ जहाजों पर का माल लादा उतारा जाता है। गोदी।
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डांक-खाना  : पुं० [हिं० डाक+फा० खानः] वह सरकारी कार्यालय या उसका भवन जो डाक द्वारा चिट्टियाँ आदि बाहर भेजवाने तथा बाहर से आई हुई चिट्टियाँ आदि बँटवाने की व्यवस्था करता है।
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डाक-गाड़ी  : स्त्री० [हिं०] वह रेल-गाड़ी जो साधारण गाड़ियों से बहुत तेज चलती है केवल बड़े-बड़े स्टेशनों पर रुकती है तथा जिसमें डाक लाने ले जाने की भी व्यवस्था होती है।
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डाकघर  : पुं=डाकखाना।
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डाक-चौकी  : स्त्री० [हिं०] १. प्राचीन तथा मध्य काल में वह स्थान जहाँ कई स्थानों या प्रदेशों के हरकारे चिट्टियाँ लाते थे, तथा अन्य स्थानों से आई हुई चिट्टियाँ छांटकर ले जाते थे। २. वह स्थान जहाँ डाक के घोड़े, सवारियाँ आदि आगे जाने के लिए बदली जाती थी।
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डाकना  : स० [हिं० डाँकना] फाँदना। लाँघना। अ० कै करना। वमन करना। स० [हिं० डाक] १. पुकारना। २. नीलाम के समय दाम की बोली बोलना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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डाक-बँगला  : पुं० [हिं०] वह सरकारी भवन जो मुख्य रूप से दौरे पर जानेवाले सरकारी अधिकारियों के ठहरने के लिए बने होते हैं।
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डाक-महसूल  : पुं० [हिं० डाक+अ० महसूल] डाक के द्वारा कोई चीज भेजने का महसूल।
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डाकर  : पुं० [देश०] १. सूखे हुए तालों की चिटखी या सूखी मिट्टी। २. कड़ी किंतु उपजाऊ भूमि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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डाक-व्यय  : पुं० [हिं० डाक+सं० व्यय] वह व्यय जो डाक द्वारा कोई चीज भेजने पर पड़ता हो। डाक-महसूल।
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डाका  : पुं० [हिं० डाकना-कूदना वा सं० दस्यु] दल-बल सहित बलपूर्वक तथा डरा-धमकाकर लूट-मार करने के लिए किया जानेवाला धावा। क्रि० प्र–पड़ना।–मारना।
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डाकाजनी  : स्त्री० [हिं० डाका+फा० जनी] डाके डालने का काम।
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डाकिन  : स्त्री=डाकिनी।
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डाकिनी  : स्त्री० [सं० ड(त्रास)√अक् (वक्रगति)+णिनि–ङीप्] १. एक पिशाची या देवी जो काली के गले में समझी जाती है। २. भूत-प्रेत योनि की स्त्री।
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डाकिया  : पुं० [हं० डाक+इया (प्रत्यय)] वह सरकारी कर्मचारी जो घर-घर डाक द्वारा आई हुई चिटियाँ आदि पहुँचाने का काम करता है।
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डाकी  : स्त्री० [हिं० डाक] वमन। कै। वि० [?] १. बहुत अधिक खानेवाला। २. प्रचंड।
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डाकू  : पुं० [हिं० डाकना या सं० दस्यु] वह व्यक्ति जो दूसरों के यहाँ पहुँचकर और उन्हें डरा-धमकाकर या मार-पीटकर उनसे अवैध रूप से धन छीन लेता हो।
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डाकोर  : पुं० [सं० ठक्कुर, हिं० ठाकुर] १. ठाकुर। देवता। २. विष्णु। भगवान। (गुजराती)।
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डाक्टर  : पुं० [अं०] १. किसी विद्या या विषय का आचार्य या पूर्ण पंडित। २. उक्त प्रकार के आचार्य या पूर्ण पंडित की उपाधि। ३. लोक व्यवहार में वह व्यक्ति जो पाश्चात्य शैली से रोगियों की चिकित्सा करता हो। ४. वह व्यक्ति जिसे उक्त प्रकार की उपाधि मिली हो।
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डाक्टरी  : स्त्री० [अं० डाक्टर+ई (प्रत्यय)] डाक्टर होने की अवस्था, पद या भाव। २. डाक्टर का काम या पेशा। ३. पाश्चात्य ढंग की चिकित्सा-प्रणाली या उसका शास्त्र।
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डाक्तर  : पुं०=डाक्टर।
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डाख  : पुं०=ढाक (पलाश।)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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डाग  : स्त्री० [सं० दंडक] डुग्गी, ढोल, नगाड़ा, आदि बजाने की लकड़ी। मुहावरा–डाग देना=डुग्गी, नगाड़े, आदि पर चोट लगाकर उनसे शब्द उत्पन्न करना।
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डागरि  : स्त्री०=डगर।
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डागा  : पुं०=डाग
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डागुर  : पुं० [देश०] जाटों की एक जाति या वर्ग।
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डाच  : पुं० [?] मुँह। मुख। उदाहरण–-बबक्कत डाच कितेकन बैन। मनों बड बक्कर टक्कर मैन।–कविराजा सूर्यमल।
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डाट  : स्त्री० [सं० दान्ति] १. दीवार या ऐसी ही किसी और चीज को गिरने से बचाने या रोकने के लिए सामने या बेड़े बल में लगाई जानेवाली चाँड़ या रोक। २. किसी चीज का छेद या मुँह बन्द करने के लिए उसमें कसकर जमाई, बैठाई या लगाई जानेवाली वस्तु। ३. वह ईंट या पत्थर जो मेहराब के बीचों-बीच दोनों ओर की ईटों आदि को यथा स्थान दृढ़तापूर्वक जमाये रखने के लिए लगाया जाता है। क्रि० प्र०–बैठाना।–लगाना। ४. मेहराब बनाने का वह प्रकार जिसमें दोनों ओर अर्ध-गोलाकार रूप में ईंटे जोड़ी या बैठाई जाती हैं। स्त्री० दे० ‘डाँट’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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डाटना  : स० [हिं० डाट+ना (प्रत्यय)] १. दीवार आदि को गिरने से रोकने के लिए उसमें डाट लगाना। टेक लगाना। २. किसी चीज का छेद या मुँह डाट लगाकर बंद करना। ३. एक वस्तु के साथ दूसरी वस्तु अच्छी तरह जमाकर बैठाना या स्थिर करना। जैसे–किसी की ओर निगाह डाटना। ४. कोई चीज अंदर घुसाने या धँसाने के लिए उस पर भरपूर दबाव डालना। ५. कसकर ठूसना, दबाना या भरना। ६. खूब अच्छी तरह पेट भरकर कोई चीज खाना। (व्यंग्य) ७. ठाठ से या शान दिखलाने के लिए कपड़े, गहने आदि पहनना जैसे–अँगरखा या अँगूठी डाटना। (व्यंग्य) अ० १. डटकर सामने बैठना। २. ठाठ या वेष बनाना। स० दे० ‘डाँटना’।
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डाड़ना  : स० दे० ‘डाँड़ना’। अ० दे० ‘दहाड़ना’।
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डाढ़  : स्त्री०=दाढ़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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डाढना  : स० [सं० दग्ध, प्रा० ड्डढ्+ना (प्रत्यय)]=दाहना। (जलाना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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डाढ़ा  : पुं० [सं० दग्ध, प्रा० डड्ढ] १. दावानल। वन की आग। २. अग्नि। आग। ३. जलन। ताप। ४. दे० दाह। पुं०=दाढ़ा। (बडी दाढ़ी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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डाढ़ी  : स्त्री=दाढ़ी। (देख)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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डाढ़ीजार  : पुं० दे० ‘दारी-जार’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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डाण  : पुं=डाँड (दंड या अर्थ-दंड)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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डाब  : स्त्री०=डाभ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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डाबक  : वि०=डाभक।
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डाबर  : पुं० [सं० दभ्र-समुद्र या झील] १. वह गड्ढा या नीची जमीन जिसमें आस-पास का पानी विशेषतः बरसाती पानी आकर जमा होता हो। झाँवर। ऐसी जमीन धान के लिए उपयुक्त होती है। २. छोटा तालाब। ३. गंदा या मैला पानी। ४. चिलमची नामक पात्र जिसमें हाथ-मुँह धोने का पानी रहता है। वि० १.=गँदला। २. मटमैला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=डाबरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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डाबर-नैनी  : वि० [हिं०] बड़ी-बड़ी और सुन्दर आँखोंवाली (स्त्री)।
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डाबा  : पुं० [स्त्री० डाबी]=डिब्बा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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डाबी  : स्त्री० [?] १. फसल का दसवाँ अंश जो मजदूरी के रूप में काटने-वाले मजदूर को दिया जाता है। २. कटी हुई घास, पुआल आदि का पूला। स्त्री=डिबिया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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डाभ  : स्त्री० [सं० दर्भ] १. ऊसर भूमि में होनेवाली एक तरह की घास। २. कुश। दर्भ। ३. आम के वृक्ष के वे आरंभिक अंकुर जो कुछ समय बाद मंजरी के रूप में आते हैं। टोंस। मोर। ४. आम की ढेपनी या मुँह से निकलनेवाला तीखारस। चोप। उदाहरण–-जो लहि अंबहि डाभ न होई।–जायसी। ५. कच्चा नारियल जिसके अन्दर का पानी बहुत गुणकारक और स्वादिष्ट होने के कारण पीया जाता है। पुं० [हिं० डब=कमर] कमर में बाँधा जानेवाला परताला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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डाभक  : वि० [अनु० डभक-डभक से अनु०] कूएँ से तुरंत का निकाला हुआ। ताजा। जैसे–डाभक पानी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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डाभर  : पुं०=डाबर (बरसाती पानी का गड्ढ़ा)।
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डाम  : पुं०=दाम।
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डामचा  : पुं० [देश०] वह मचान जिस पर बैठकर जंगली पशु पक्षियों से फसल की रक्षा की जाती है।
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डामर  : पुं० [सं०] १. शिव-प्रणीत माना जानेवाला एक तंत्र जिसके छः भेद हैं।-योग डामर, शिव डामर, दुर्गा डामर, सारस्वत डामर, ब्रह्म डामर और गंधर्व डामर। २. प्राचीन भारत में एक प्रकार का चक्र जिसके द्वारा दुर्ग के शुभाशुभ फल जाने जाते थे। ३. धूम-धाम। ४. आडंबर। ५. ठाठ-बाट। ६. हलचल। ७. चमत्कार। ८. उनचास क्षेत्रपाल भैरवों में से एक भैरव का नाम। ९. साल वृक्ष का गोंद। राल। १॰. दक्षिण भारत में होनेवाला एक प्रकार का सफेद गोंद। ११. एक प्रकार की छोटी मधु-मक्खी। १२. उक्त छोटी मधु-मक्खियों के छत्ते से निकलनेवाला एक प्रकार का गोंद या राल। १३. अलकतरा। पुं० दे० ‘डामल’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=डाबर (बरसाती पानी का गड्ढा) उदाहरण–-यह सच है कि मनोहर बोला तुम उथले पानी के डामर।–पन्त।
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डामल  : पुं० [अं० दायमुल्दव्स] १. सदा के लिए बंदी बनाकर रखने की सजा। २. अपराधियों को दिया जानेवाला देश-निकाले का दंड।
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डामाडोल  : वि०=डाँवाँडोल।
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डामिल  : पुं=डामल।
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डायँ-डायँ  : क्रि० वि० [अनु०] बिना किसी काम या प्रयोजन के। व्यर्थ। जैसे–दिन भर डायँ-डायँ घूमते रहना।
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डायन  : स्त्री=डाइन।
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डायरी  : स्त्री० [अं०] दैनिकी।
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डार  : स्त्री०=डाल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० [सं० डलक] डलिया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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डारना  : स०=डालना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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डारा  : पुं० [हिं० डाल] १. वह रस्सी जिस पर कपडे़ लटकाये या सुखाये जाते हैं। २. किसी प्रकार का आधार या आश्रय। सहारा। मुहावरा–(किसी के) डारे लगना=किसी के सहारे परचलना या होना। उदाहरण–-सौंधे के डारे लगी, अली चली सँग जाइ।–बिहारी।
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डारियास  : पुं० [देश०] बाबून बंदर की एक जाति।
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डारी  : स्त्री०=डार।
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डाल  : स्त्री० [सं० दारु-लकड़ी] १. पेड़-पौधे आदि के तने में से निकला हुआ बड़ा अंश जिसमें फल, फूल आदि लगते हैं। टहनी। शाखा। पद–डाल का टूटा=(क) डाल से पक कर गिरा हुआ (फल)। (ख) बिलकुल तुरंत या हाल का। बिलकुल नया आया हुआ। ताजा। जैसे–डाल का टूटा हुआ स्नातक। (ग) जिसे अभी तक विशेष ज्ञान या अनुभव न हुआ हो। (घ) अनोखा। विलक्षण। डाल का पका=(फल) जो पेड़ की डाल में लगे रहने की दशा में पका हो। उससे उतारकर पाल में न पकाया गया हो। २ किसी चीज में से निकली हुई उक्त आकार-प्रकार की कोई शाखा। जैसे–झाड़ या फानूस की डाल जिसमें गिलास लगाये जाते हैं। ३. तलवार का फल जो शाखा के रूप में आगे की ओर निकला रहता है। ४. मध्य भारत और मारवाड़ में पहने जानेवाला एक प्रकार का गहना। स्त्री० [सं० डलक, हिं० डला] १. फल-फूल आदि रखने की डलिया। चँगेरी। २. वे कपड़े, गहने, फल आदि जो विवाह के समय किश्चियों, चँगरों आदि में सजाकर लड़कीवालों के यहाँ वधू के लिए भेजे जाते हैं।
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डालना  : स० [हिं० तलन] १. किसी आधान या पात्र में कोई चीज कुछ ऊँचाई से गिराना, छोड़ना, फेंकना या रखना। जैसे–(क) गिलास में पानी डालना। (ख) कड़ाही में घी डालना। २. किसी आधान या पात्र में कोई चीज प्रायः सुरक्षा के उद्देश्य से भरना या रखना। जैसे–(क) झोले में पुस्तकें या बोरे में गेहूँ डालना। (ख) संदूक में कपड़े डालना। (ग) कैदी को जेल में डालना। ३. कोई चीज किसी आधार या तल पर गिराना, छोडना, या फेंकना। जैसे–(क) पेड़ की जड़ में पानी डालना। (ख) सिर या बालों में तेल डालना। ४. कोई चीज किसी को देने या सौंपने के उद्देश्य से उसके आगे रखना या गिराना। जैसे–(क) विजयी के आगे हथियार डालना। (ख) कुत्ते या बिल्ली को रोटी डालना। ५. लाक्षणिक अर्थ में, कोई काम या बात किसी के जिम्मे करना। जैसे–किसी पर खरच या काम का बोझ डालना। ६. कोई चीज किसी को पहनाना। जैसे–(क) हाथ में चूड़ियाँ या पैर में जूता डालना। (ख) कन्या का वर के गलें में जय-माल डालना। ७. कोई चीज किसी पर से या किसी में लटकाना। जैसे–(क) पेड़ की डाली पर झूला डालना। (ख) पानी निकालने के लिए कुएँ में बाल्टी डालना। ८. कोई चीज किसी में लगाना। जैसे–आँखों में काजल या सुरमा लगाना। ९. घुसाना। घुसेड़ना। १॰. किसी चीज को ढकने के लिए उसके ऊपर कोई दूसरी चीज फैलाना। जैसे–(क) सिर पर चादर डालना। (ख) आग पर पानी या राखी डालना। ११. वस्त्र आदि फैलाना। जैसे–(क) बिछे हुए गद्दे पर चादर डालना। (ख) टंगने पर सूखने के लिए गीली धोती डालना। १२. (स्त्री को रखेली के रूप में) घर में रख लेना। १३. परित्याग करना। १४. पशुओं के संबंध में गर्भपात करना। १५. किसी मद या विभाग में सम्मिलित करना। जैसे–खाते में किसी के नाम रकम डालना। विशेष–संयोज्य किया के रूप में ‘डालना’ कुछ सकर्मक क्रियाओं के साथ लगकर यह सूचित करता है कि कर्ता वह काम या क्रिया पूरी तरह से समाप्त करके उससे अलग या निवृत्त हो चुका है अथवा वह काम या चीज उसमें अपने से बिलकुल अलग या दूर कर दी है। जैसे–खा डालना, दे डालना, बेच डालना, मार डालना आदि।
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डालर  : पुं० [अं०] एक अमेरिकन सिक्का जो भारतीय ३ रुपयों से कुछ अधिक मूल्य का होता है।
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डाला  : पुं० [हिं० डला] बड़ी चँगेर या डलिया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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डाला छठ  : स्त्री० [हिं०] कार्तिक शुक्ला छठ, जिस दिन बड़ी चँगेर में फल आदि रखकर उदित होते हुए सूर्य की पूजा की जाती है।
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डालिम  : पुं०=दाडिम (अनार)।
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डाली  : स्त्री० [हिं० डाला या डला] १. छोटा डला या डाला। डलिया। २. वह डलिया जिसमें कोई चीज विशेषतः फल फूल मिठाइयाँ आदि रखकर किसी के यहाँ उपहार या भेंट स्वरूप भेजी जाती हैं। ३. उक्त प्रकार से भेजा जानेवाला उपहार या भेंट। क्रि० प्र०–भेजना।–लगाना। ४. दाँई हुई फसल का अनाज या हवा में उड़ाकर भूसे से अलग करने की क्रिया या भाव। ओसाने या बरसाने की क्रिया या भाव। क्रि० प्र०–देना। स्त्री० [हिं० डाल] वृक्ष की छोटी या पतली टहनी।
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डाव  : पुं० [हिं० दाँव का पुराना रूप] १. दाँव। बाजी। २. अवसर। मौका। उदाहरण–राम भगति बिनु जम कौ डाव।–कबीर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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डावड़ा  : पुं० [देश०] पिठवन। पृश्नपर्णी। पुं० [स्त्री० डावड़ी]=डावरा (लड़का)।
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डावरा  : पुं० [सं० डिंब] [स्त्री० डावरी] १. पुत्र। बेटा। २. बालक। लड़का।
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डास  : पुं० [देश०] चमारों का एक औजार जिसमें वे चमड़े का निचला भाग खुरचकर साफ करते हैं।
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डासन  : पुं० [सं० दर्भ, हिं, डाभ+आसन] १. वह चीज जिसे बिछाकर उसके ऊपर बैठा जाय। २. बिछौना। ३. शय्या। पुं० [हिं० डसना] वह जो उसे अर्थात् सर्प। उदाहरण–-डासन डासन भयउ पियारी।–जायसी।
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डासना  : स० दे० ‘बिछाना’। स०=डसना।
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डासनी  : स्त्री० [हिं० डासन] चारपाई। शय्या।
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डाह  : स्त्री० [सं० दाह]० १. मन में होनेवाली वह जलन जो ईर्ष्याजन्य हो। २. ईर्ष्या। (देखें)।
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डाहना  : स० [सं० दाहन] १. किसी के मन में डाह उत्पन्न करके उसे दुःखी करना। २. बहुत अधिक कष्ट देना या दुःखी करना। दाहना।
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डाहुक  : पुं० [देश०] टिटिहरी की तरह का एक जल-पक्षी।
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