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तीन  : वि० [सं० त्रीणि] जो गिनती में दो से एक अधिक हो। पुं० १. दो और एक के योग की संख्या। २. उक्त संख्या का सूचक अंक जो इस प्रकार लिखा जाता है–३ मुहावरा–तीन पाँच करना-घुमाव-फिराव बहानेबाजी या हुज्जत की बात करना। ३. सरयूपारी ब्राह्माणों में गर्ग, गौतम और शांडिल्य इन तीन विशिष्ट गोत्रों का एक वर्ग। मुहावरा–तीन तेरह करना-(क) अनेक प्रकार के वर्ग या विभेद उत्पन्न करना। (ख) इधर-उधर छितराना या बेखेरना। तितर-बितर करना। कहा०–न तीन में न तेरह में–जिसकी कहीं गिनती या पूछ न हो। स्त्री०=तिन्नी (धान्य।)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तीन काने  : पुं० [हिं०] चौपड़ के खेल में यह दाँव जो तीनों पासों पर एक ही एक बिंदी ऊपर रहने पर माना जाता है। (खेल का सबसे छोटा दाँव)।
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तीनपान  : पुं० [देश०] एक तरह का बहुत मोटा रस्सा। (लश०)।
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तीनपाम  : पुं०=तीनपान।
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तीनलड़ी  : स्त्री० [हिं० तीन+लड़ी] तीन लड़ियोवाला गले में पहनने का हार।
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तीनि  : वि० पुं०=तीन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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तीनी  : स्त्री० [हिं० तिन्नी] तिन्नी का चावल।
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