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तुर्रा  : पुं० [अ० तुरः] १. घुँघराले बालों की लट जो इधर-उधर या माथे पर लटकती है। काकुल। २. कुछ पक्षियों के सिर पर की परों या बालों की चोटी। कलगी। ३. टोपी, पगड़ी आदि में खोंसा या लगाया जानेवाला पक्षियों का सुदंर पर, फूलों का गुच्छा अथवा बादले, मोतियों आदि का लच्छा। कलगी। गोशवारा। ४. किसी चीज या बात में होनेवाली ऐसी विलक्षण विशेषता जो उस चीज या बात को दूसरी चीजों या बातों से भिन्न और श्रेष्ठ सिद्ध करती हो। विशेष–परिहास या व्यंग्य में इस शब्द का प्रयोग अनोखी असंबद्धता सूचित करने के लिए होता है। जैसे–जबरदस्ती हमारी किताब भी उठा ले गये, तिस पर तुर्रा यह कि हमें ही चोर (या झूठा) बनाते हैं। ५. किसी चीज में लगाया हुआ सुंदर किनारा या हाशिया। ६. मकान का छज्जा। ७. कोड़ा। चाबुक। मुहावरा–तुर्रा करना=(क) कोड़ा या चाबुक मारना। (ख) उत्तेजित या प्रोत्साहित करना। ८. एक प्रकार की बुलबुल जो जाड़े भर भारतवर्ष के पूर्वीय भागों में रहती है, पर गरमी में चीन और साइबेरिया की ओर चली जाती है। ९. एक प्रकार की बटेर। डुबकी। १॰. जटाधारी या मुर्गकेश नाम का पौधा और उसका फूल। गुलतर्रा। ११. मुहांसे आदि का ऊपरी नुकीला भाग। कील। वि० [फा०] अनोखा। विलक्षण। पुं० [?] दूध, भाँग आदि का थोड़ा-थोड़ा करके लिया जानेवाला घूँट। (क्व०) मुहावरा–तुर्रा चढ़ाना या जमाना-खूब ढेर सी भाँग पीना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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