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तृषा  : स्त्री० [सं०√तृष् (लालच करना)+क्विप्-टाप्] [वि० तृषित, तृष्य] १. पानी अथवा कोई तरल पदार्थ पीने की आवश्यकता से उत्पन्न होनेवाली इच्छा। प्यास। २. अभिलाषा। इच्छा। ३. लालच। लोभ। ४. कलिहारी नाम की वनस्पति।
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तृषातुर  : वि० [तृषा-आतुर] तृषा से आतुर या विकल। बहुत अधिक प्यासा।
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तृषा-द्रुम  : पुं० [मध्य० स०] वह वृक्ष जिसमें से प्यास बुझाने का साधन अर्थात् जल मिलता हो। जैसे–नारियल ताड आदि।
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तृषाभू  : स्त्री० [ष० त०] पेट में जल रहने का स्थान। (क्लोम)।
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तृषालु  : वि० [सं०√तृष् (प्यास लगना)+आलुच्] बहुत अधिक प्यासा। तृषित।
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तृषावंत  : वि० [सं० तृषावान्] प्यासा।
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तृषावान्(वत्)  : वि० [सं० तृषा+मतुप्] प्यासा।
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तृषा-स्थान  : पुं० [ष० त०] पेट के अन्दर का वह स्थान जहां जल रहता है। (क्लोम)
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